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दस हजार बकायेदार, 76 करोड़ बकाया

कुव्यवस्था. कर्जदारों के कर्ज के बोझ तले दबा भूमि विकास बैंक, ऋण वसूली का कार्य ठप छपरा (सदर) : आजादी के बाद किसानों को दीर्घकालीन ऋण देकर बेहतर उत्पादन के उद्देश्य से स्थापित बहुराज्यीय सहकारी भूमि विकास बैंक (पूर्व में भूमि बंधक बैंक, सहकारी भूमि विकास बैंक) अपने दायित्वों को निभाने में विफल हो रहा […]

कुव्यवस्था. कर्जदारों के कर्ज के बोझ तले दबा भूमि विकास बैंक, ऋण वसूली का कार्य ठप

छपरा (सदर) : आजादी के बाद किसानों को दीर्घकालीन ऋण देकर बेहतर उत्पादन के उद्देश्य से स्थापित बहुराज्यीय सहकारी भूमि विकास बैंक (पूर्व में भूमि बंधक बैंक, सहकारी भूमि विकास बैंक) अपने दायित्वों को निभाने में विफल हो रहा है. इसके पीछे सरकार की उदासीनता व करोड़ों रुपये ऋण लेकर नहीं चुकाने वाले किसानों की कारगुजारियां मुख्य वजह है.
हालांकि इन्हीं कारणों से विगत ढाई दशक में यह बैंक महज सात लाख का ऋण वितरित कर पाया. जबकि इसका बकाया किसानों के यहां 76 करोड़ से ज्यादा है. ऐसी स्थिति में बैंक के कम से कम तीन दर्जन पदाधिकारियों व कर्मियों की ऊर्जा ऋण वसूली में ही लग जा रही है.
नाबार्ड के माध्यम से किसानों को ऋण देता था यह बैंक : सरकार की गारंटी पर ही 1958 में स्थापित यह सरकारी बैंक किसानों को ट्रैक्टर, पंपिंग सेट आदि विभिन्न कृषि यंत्रों के लिए ऋण देता था. आज की तिथि में इस बैंक के 9629 ऋणी हैं, जिनके यहां ऋण तथा ब्याज की बकाया राशि है. ऐसी स्थिति में जिले के छपरा मुख्यालय के कोऑपरेटिव बैंक परिसर स्थित किराये के भवन में चलने वाले छपरा, गड़खा, दिघवारा, एकमा, मढ़ौरा तथा मशरक की शाखाओं के माध्यम से ऋण किसानों को दिया जाता था. सरकार के इस बैंक से ऋण तब भी मिलता था, जब सरकार गारंटी देती थी.
ऐसी स्थिति में बिहार व झारखंड के विभाजन के बाद इस बैंक का नाम बहुराज्जीय सहकारी भूमि विकास तो हो गया, परंतु न तो बिहार सरकार और न झारखंड सरकार इस मामले में रूचि दिखाती है, जिससे सरकारी स्तर के इस बैंक की सुविधा किसान अपने खेती को बेहतर करने में ले सकें. ऋण की वसूली नहीं होने तथा सरकारी उदासीनता के कारण 1988 से ही किसानों को ऋण देने का काम सरकार ने बंद कर दिया. हालांकि वर्ष 2004 में महज सात लाख रुपया किसानों के बीच ऋण बांटने के लिए मिला. परंतु, अब तक किसानों से ऋणी की वसूली नहीं हो पायी, जिससे किसानों को इस बैंक का कोई फायदा नहीं मिल रहा है. हालांकि स्वर्णिम ऋण योजना के तहत इस बैंक में अतिरिक्त सूद योजना माफी योजना के तहत बकाया रखने वाले ऋणियों को उनके ऋण भुगतान पर विशेष छूट देने की योजना चलायी है.
साथ ही इस योजना का लाभ उठाने की अवधि बैंक ने मार्च तक निर्धारित की है. परंतु, अभी भी बकाया रखने वाले किसान ऋण भुगतान के प्रति उदासीन है. उधर बकाया रखने वाले ऋणियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया भी करने की तैयारी में बैंक प्रबंधन है. ऋण वितरण बंद होने के कारण यहां किसानों को सरकार की कई नई योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है.
बहुराज्यीय सहकारी भूमि विकास बैंक की शाखाओं में बुनियादी सुविधा का अभाव
संसाधनों का अभाव
जर्जर छत, चापाकल, शौचालय एवं विद्युत के अभाव में काम करने की मजबूरी छपरा मुख्यालय स्थित शाखा की है. इस शाखा के किराया मद में चार सौ रूपये बैंक वहन करता है. इस बैंक से प्रबंधन द्वारा 2004 में छटनी किया गया. जिसमें 168 कर्मचारी हटाये गये. इन हटाये गये कर्मियों में से दीनानाथ प्रसाद का कहना है कि सरकार की उदासीनता के कारण एक तो कर्मियों की छटनी हो गयी. वहीं किसानों को बैंक का लाभ नहीं मिल रहा है. बैंक के कर्मचारी व पदाधिकारी सिर्फ बकाया वसूली में ही परेशान है. वहीं छपरा शाखा में टूटी छत व फाइलों की रख-रखाव के लिए व्यवस्था नहीं होने के कारण जहां अलमीरा में रखे कागजात को बरसात के दिनों में पानी से बचाने के लिए पॉलीथिन से ढ़क कर रखा गया है, वहीं सैकड़ों फाइलें एक कमरे में धूल फांक रही है.
क्या कहते हैं अधिकारी
जिले के लगभग दस हजार किसानों के यहां कृषि ऋण के मद का 76 करोड़ 32 लाख रुपये बकाया है. वहीं किसानों को ऋण नहीं मिलने की वजह नाबार्ड के द्वारा सरकार से गारंटी मिलने के बाद ही ऋण देने की शर्त रखा जाना है. बकायेदारों से बकाया ऋण वसूली के लिए स्वर्णिम ऋण योजना के तहत अतिरिक्त सूद माफी योजना चलायी गयी है. जिससे मार्च तक बकाया ऋण जमा कर किसान अतिरिक्त सूद पर भारी लाभ पा सकते है.
आशुतोष कुमार, क्षेत्रीय प्रबंधक, बहुराज्जीय सहकारी भूमि विकास बैंक छपरा

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