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दिव्यांगता को मात देकर पैरों से खींच रहा किस्मत की लकीर

छपरा : लक्ष्य को कदम बना दुनिया के साथ चल रहा हूं, खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रहा हूं. जिले के सदर प्रखंड के लोहरी पंचायत में रहने वाले पांचवीं कक्षा के छात्र अभिषेक इन पंक्तियों को अपने जज्बे से सार्थक बना रहे हैं. दोनों हाथ बचपन से ही पोलियोग्रस्त होने के बाद […]

छपरा : लक्ष्य को कदम बना दुनिया के साथ चल रहा हूं, खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रहा हूं. जिले के सदर प्रखंड के लोहरी पंचायत में रहने वाले पांचवीं कक्षा के छात्र अभिषेक इन पंक्तियों को अपने जज्बे से सार्थक बना रहे हैं.

दोनों हाथ बचपन से ही पोलियोग्रस्त होने के बाद भी अभिषेक ने पढ़ने का हौसला कम नहीं होने दिया. पढ़ने की ललक लिए वह रोजाना अपने घर से पाठशाला के लिए निकलते हैं. बचपन से ही हाथ नाकाम होने के कारण अभिषेक ने अपने पैरों को ही हाथ बना लिया और आज उसी से लिखकर सामान्य बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं.
पैरों से ही करते हैं सुंदर लिखावट : इनके हाथ भले ही काम नहीं करते, लेकिन पैर, कॉपी व ब्लैक बोर्ड पर साफ-साफ लिखावट करते हैं. अपने पैर में पेंसिल पकड़ कर आराम से सभी अक्षरों को लिख पाते हैं.
अभिषेक पढ़ने में काफी होशियार भी हैं. सुबह आठ बजे घर के बगल में चलने वाली निःशुल्क पाठशाला में पढ़ने जाते हैं. जहां पढ़ेगा इंडिया बढ़ेगा इंडिया के बैनर तले पाठशाला के शिक्षक रंजीत कुमार गांव के बच्चों को पढ़ाते हैं. वहां से एक घंटे पढ़ने के बाद गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय लोहरी में पढ़ने जाते हैं.
डॉक्टर बनना चाहता है अभिषेक
अभिषेक खुलकर लोगों से बात करता है. भले ही हाथ कमजोर हैं, लेकिन पांव और आवाज दोनों से मजबूत हैं. 20 तक का पहाड़ा कंठस्त है. अंग्रेजी के शब्दों को बखूबी बोल लेता है. हमने जब उससे पूछा कि बड़े होकर क्या बनना है तो अभिषेक ने डॉक्टर बनने की बात बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कही. स्कूल के बच्चे भी उसके साथ मित्रवत व्यवहार करते हैं. गांव के लोग अभिषेक के इस जज्बे को देख गर्व का अनुभव करते हैं.
सामान्य परिवार का होकर भी रखा हौसला
अभिषेक गांव के एक सामान्य परिवार का लड़का है. पिता मोहर लाल रोजी-रोटी के लिए बिहार से बाहर मुंबई में जाकर काम करते हैं. वहां से जो रुपये भेजते हैं, उसी से अभिषेक की मां मीरा देवी अपने तीन बेटे और एक बेटी की परवरिश करती है.
पुराने कपड़े, पांव में धूल से भरी चप्पल और एक साधारण सा बैग लिए जब अभिषेक अपने मजबूत कदम स्कूल तक बढ़ाता है तो उसकी मां को काफी सुकून मिलता है. ग्रामीण परिवेश में रहने वाले अभिषेक ने दिव्यांग होकर भी शिक्षा को आत्मसात करने का जो प्रयास किया है.

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