छपरा : लक्ष्य जब बड़ा हो तो बाधाएं चाहे कितनी भी आएं, सफलता उन बाधाओं को चीरकर इंसान का कदम जरूरी चूमती है. सारण जिले के मांझी प्रखंड उत्तर टोला निवासी अंकित कुमार सिंह सीमित सुविधाओं के बीच गांव की माटी को अपना आदर्श मान निशानेबाजी जैसे कठिन प्रतिस्पर्धा में प्रदेश का नाम रोशन करने […]
छपरा : लक्ष्य जब बड़ा हो तो बाधाएं चाहे कितनी भी आएं, सफलता उन बाधाओं को चीरकर इंसान का कदम जरूरी चूमती है. सारण जिले के मांझी प्रखंड उत्तर टोला निवासी अंकित कुमार सिंह सीमित सुविधाओं के बीच गांव की माटी को अपना आदर्श मान निशानेबाजी जैसे कठिन प्रतिस्पर्धा में प्रदेश का नाम रोशन करने की दिशा में अग्रसर हैं.
दो माह पूर्व आसनसोल राइफल क्लब में आयोजित इस्टन जोन शूटिंग में ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों के निशानेबाजों को हराकर अंकित ने गोल्ड जीता. इस चैंपियनशिप में अंकित को 50 मीटर प्रोन के जूनियर सेक्शन में गोल्ड मिला था.
वहीं 50 मीटर थ्री पोजिशन के सीनियर वर्ग में सिल्वर और 10 मीटर एयर राइफल के सीनियर वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल मिला था. इस प्रतियोगिता के दौरान मौजूद नेशनल राइफल एसोसिएशन के अधिकारियों ने अंकित में छुपी काबिलियत को पहचान कर उन्हें आगे की तैयारियाें में हर संभव मदद करने की बात कही.
दोस्तों की मदद से खुद को किया तैयार : मांझी इंटर कॉलेज के 12वीं के छात्र अंकित ने शूटिंग में देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के बारे में अखबार और टीवी पर देखा था. अंकित ने दो वर्ष पहले ही इस इवेंट से जुड़कर आगे बढ़ने का मन बना लिया था. ट्रेंनिग से जुड़ी जानकारी उन्होंने नेट से निकाल ली.
इसी बीच एक दोस्त ने पश्चिम बंगाल में हो रहे एक इवेंट को देखने चलने की बात कही. पिता की सहमति के साथ अंकित इवेंट देखने चले गये. अपने हमउम्र बच्चों को निशाना लगाता देख उनका निर्णय एक संकल्प में बदल गया, जिसके बाद कोलकाता की जयदीप करमाकर शूटिंग एकेडमी में दाखिला लिया. अंकित की ट्रेंनिग आज भी जारी है. प्रभात खबर से बातचीत में अंकित ने बताया को देश के लिए ओलिंपिक में गोल्ड जीतना उनका लक्ष्य है.
बेटे के कैरियर के लिए मां ने तोड़ दी कसम
अंकित के पिता अभिषेक कुमार सिंह उर्फ पंकज एक मध्यमवर्गीय किसान हैं. क्षेत्र के सामाजिक कार्यों में भी उनकी रुचि रहती है. आय सीमित है. हालांकि, उन्होंने कभी अपने बेटे को इस फील्ड में आगे बढ़ने से नही रोका. अंकित अपने पिता को प्रेरणास्रोत मानते हैं. खेतीबारी और अन्य सामाजिक कार्यों से समय निकालकर उनके पिता उन्हें शूटिंग की तैयारियों में मदद करते हैं.
जब पहली बार गांव में एक एयरगन को उठाकर अंकित में निशाना लगाने की जिद की थी, तब मां विद्यावती देवी ने उन्हें बंदूक को कभी हाथ न लगाने की कसम दिलायी थी. बाद में जब मां को पता चला कि बंदूक से निशाना लगाकर देश के लिए पदक भी जीता जा सकता है तो मां ने कसम तोड़ कर उन्हें इस इवेंट में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया.