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इस बार निशाना साध पायेगा विभाग!
समस्तीपुर : वर्ष 2006 से अब तक शिक्षा विभाग ने नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक व प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच कराये जाने से संबंधित 17 पत्र जारी किये लेकिन हैरत इस बात की है कि कुल नियोजित शिक्षकों में से 17 फीसदी के प्रमाण पत्रों की जांच का काम भी अभी तक पूरा नहीं हो […]
समस्तीपुर : वर्ष 2006 से अब तक शिक्षा विभाग ने नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक व प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच कराये जाने से संबंधित 17 पत्र जारी किये लेकिन हैरत इस बात की है कि कुल नियोजित शिक्षकों में से 17 फीसदी के प्रमाण पत्रों की जांच का काम भी अभी तक पूरा नहीं हो सका है़ इस पूरे प्रकरण में पंचायत व प्रखंड नियोजन इकाइयों की भूमिका सदैव संदेह के घेरे में रही है़
जिले में बहाल तकरीबन 15 हजार से अधिक नियोजित शिक्षकों में से फर्जी प्रमाण पत्र पाये जाने के आधार पर विभाग ने कितने को बरखास्त किया अथवा उनके खिलाफ कौन सी विभागीय कार्रवाई अभी तक हो पायी है़ कोई नहीं जानता़ सरायरंजन, कल्याणपुर सहित चार ऐसे प्रखंडों में शुमार हैं जहां थोक भाव में शिक्षकों को बहाल किया गया़ एक दो मामले ऐसे भी हैं जहां निर्धारित रिक्तियों से ज्यादा शिक्षक बहाल कर लिये गये लेकिन विभाग की कान पर जूं तक नहीं रेंगा़
चार वर्षों बाद एक बार फिर सरकार की कुंभकर्णी निद्रा टूटी है़ जिला शिक्षा पदाधिकारी बीके ओझा ने जिले के सभी पंचायत व प्रखंड नियोजन इकाइयों को निर्देशित किया है कि वे पत्र प्राप्ति के तीन दिनों के अंदर वर्ष 2003, वर्ष 2005, प्रथम शिक्षक नियोजन 2006 व द्वितीय शिक्षक नियोजन 2008 के तहत नियोजित शिक्षक शिक्षिकाओं के प्रमाण पत्रों की जांच व सत्यापन से संबंधित तमाम दस्तावेज अधोहस्ताक्षरी कार्यालय में अचूक रूप से उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें़ अब इस बात पर गौर कीजिये कि नियोजन से संबंधित दस्तावेज के तहत संधारित कुल पांच पंजियों को प्रस्तुत करना है़
वे हैं आवेदन पत्रों की संधारित मूल पंजी, मेधा सूची की मूल प्रति, काउंसिलिंग की मूल पंजी, नियोजन से संबंधित रोस्टर पंजी की छाया प्रति व नियोजन से संबंधित मूल बैठक पंजी़ प्रखंड नियोजन इकाइयों ने कुछ हद तक उपरोक्त पंजियों का संधारण तो किया लेकिन मजे की बात यह है कि एक दो पंचायतों को छोड़ किसी पंचायत नियोजन इकाई के पास ऐसी कोई पंजी नहीं है़ अब देखना है विभाग सर्टिफिकेट जांच करवा पाने में कितना सक्षम साबित हो पाता है़ नियोजन इकाइयों में भ्रष्टाचार का प्रचार प्रसार इस हद तक हुआ कि विभाग से संबंधित कर्मियों ने असमर्थ असक्षम परिजनोंको भी शिक्षक बना दिया़ जिले के विभागीय बाबूओं ने नियोजन इकाइयों की मिलीभगत का जमकर फायदा उठाया व माल काट़े
प्रमाण-पत्रों की जांच का काम यहां शुरू भी हो पायेगा अथवा नहीं, संशय की स्थिति है़ यहां जांच पदाधिकारियों के कई रिश्तेदार भी फर्जीवाड़े में शामिल हैं. सरायरंजन में नियोजन इकाइयों पर राजनीतिक दबाव भी कम नहीं. फर्जीवाड़े में शामिल लोग हिम्मती होते है.
पिछले सात साल से जांच का काम जब नहीं हो पाया तो इस दफे भी उक्त फरमान कहीं दफन न हो जाय़ विभाग ने प्रमाण पत्रों की जांच का आदेश देकर कम से कम वैसे शिक्षकों की नींद कुछ दिनों के लिए हराम तो जरूर कर दी जो पैमाने पर खरा नहीं उतर रह़े ऐसी बात नहीं कि तमाम नियोजित शिक्षक इस दायरे में आते हैं. फिर भी जांच प्रक्रिया एक स्वागतयोग्य कदम है.
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