समस्तीपुरः वैसे तो डॉक्टरी का पेशा इंसानियत व नैतिकता से परिपूर्ण माना जाता है पर आज की भौतिकतावादी दुनिया में इसकी परवाह करने वाले कम ही मिलते हैं.
सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली के न्यूरोसजर्न डॉक्टर राजेश आचार्य ने शहर के आदर्श नगर निवासी प्रीतम कुमार पंकज की पुत्री अमृता को नया जीवन दिया है. जिंदा रहने की उम्मीद छोड़ चुकी अमृता को बचपन से ही मस्तिष्क में टय़ूमर था. 2002 के दिसंबर में उसकी तबीयत खराब हो गई थी. उस वक्त अमृता के रोग को यहां के चिकित्सक नहीं पकड़ सक़े 2003 में ज्यादा तबीयत खराब होने पर पटना में उसका इलाज शुरू हुआ, जहां डॉ.गोपाल प्रसाद ने उसके ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहने की बात बतायी. उसी वर्ष 25 फरवरी को अमृता को कोमा की हालत में नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भरती किया गया.
निराश माता-पिता (दोनों नियोजित शिक्षक) के पास ऑपरेशन के लिए 1 लाख रुपए नहीं थ़े वहां के न्यूरोसजर्न डॉ. आचार्य के काफी आग्रह पर अस्पताल प्रबंधन मुफ्त सजर्री देने पर राजी हुआ़ 27 फरवरी 2003 को अमृता की 4 घंटे तक सजर्री की गयी. एक पखवाड़े बाद उसे होश आया. सजर्री के बाद डॉ. आचार्य ने उसे 14 साल तक सावधानी बरतने के बाद स्वास्थ्य जांच के लिये बुलाया था. गत 2 सितंबर को 14 साल बाद अपने दादा के साथ नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल पहुंची अमृता को जांच के बाद डॉ. आचार्य ने फीट घोषित किया.
इस बार की रिपोर्ट में अमृता की जगह अमृता आचार्य नाम जुड़ा देख डॉ. राजेश ने पूछा, तो अमृता के जवाब से भावुक हो उठे.
उनकी आंखें नम हो गईं. उसके माता पिता ने डॉक्टर के उपनाम से अमृता का नाम जोड़ अमृता को उनके नक्शे कदम पर चलने के लिये प्रेरित किया. अमृता आचार्य ने बताया कि मैं आज एक सामान्य जीवन व्यतीत कर रही हूं. कक्षा 8 में पढ़ रही अमृता की इच्छा डॉक्टर बनने की है.