कवि संध्या में चले शब्दों की व्यंग्य वाणसम-सामयिक मुद्दों पर कवियों ने परोसे काव्यसमस्तीपुर. वर्ष चौदह जा रहे हो कहां हमको छोड़ कर…, कोहरे की चादर ने सूरज को छिपाया…जैसी कविताओं के शब्द रविवार की देर रात तक फूटते रहे. बीच बीच में श्रोताओं की तालियां कवियों का हौसलाफजाई करते रहे. मौका था कुसुम पांडेय स्मृति साहित्य संस्थान के तत्वावधान में काव्य संध्या का. शहर के मगरदही स्थित कुसुम सदन परिसर में आयोजित काव्य संध्या की अध्यक्षता चांद मुसाफिर ने की. संचालन प्रवीण कुमार चून्नू ने किया. कार्यक्रम का आरंभ संस्था के अध्यक्ष शिवेंद्र कुमार पांडेय ने दिसंबर महीने में उत्पन्न अध्यात्म, शिक्षा व साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान करने वाले भारत के सुप्रसिद्ध सपूतों आचार्य रजनीश, मुल्क राज आनंद, उपेंद्र नाथ अश्क, भिखारी ठाकुर जैसे लोगों के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखांकित कर किया. काव्य पाठ का शुभारंभ कवयित्री शैलजा कनिष्ठा के आपस में लड़ना छोड़ेंगे से हुआ. कवि पंकज कुमार देव के वर्ष चौदह जा रहे हो खूब भाया. वहीं कोहरे की चादर वाली कविता विष्णु कुमार कोडिया की जमकर वाहवाही लूटी. इस अवसर पर भुवनेश्वर मिश्र, शंकर अज्ञानी, विजय कुमार अरोड़ढ़, राजेश वर्मा, रवींद्र ठाकुर, सुबोध नाथ मिश्र, अजीत कुमार सिंह, आशीष कुमार झा, मो. फखरुद्दीन अली जौहर, डा. राम पुनीत ठाकुर तरुण, राज कुमार राय राजेश, रामाश्रय राय राकेश, आचार्य परमानंद प्रभाकर, डॉ अशोक कुमार सिन्हा, वेद प्रकाश, रुपा देवी आदि रचनाकारों ने श्रोताओं की प्रशंसा बटोरी. कार्यक्रम का समापन डॉ धर्मेंद्र आशुतोष के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ.
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वर्ष चौदह जा रहे हो कहां हमको छोड़ कर…
कवि संध्या में चले शब्दों की व्यंग्य वाणसम-सामयिक मुद्दों पर कवियों ने परोसे काव्यसमस्तीपुर. वर्ष चौदह जा रहे हो कहां हमको छोड़ कर…, कोहरे की चादर ने सूरज को छिपाया…जैसी कविताओं के शब्द रविवार की देर रात तक फूटते रहे. बीच बीच में श्रोताओं की तालियां कवियों का हौसलाफजाई करते रहे. मौका था कुसुम पांडेय […]
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