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मासूमों को बरतन बोलने की नहीं, मांजने की आदत
जागो समाज नन्हें हाथों में कलम की जगह जूठे बरतन व हथौड़ा विभागीय अभियान का नहीं होता असर बाजार में एक हजार से अधिक बाल मजदूर कर रहे काम सहरसा : शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के फूटपाथी होटल से लेकर गैराज व बड़े संस्थानों में बचपन संवरने के बजाय पेट की आग बुझाने […]
जागो समाज
नन्हें हाथों में कलम की जगह जूठे बरतन व हथौड़ा
विभागीय अभियान का नहीं होता असर
बाजार में एक हजार से अधिक बाल मजदूर कर रहे काम
सहरसा : शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के फूटपाथी होटल से लेकर गैराज व बड़े संस्थानों में बचपन संवरने के बजाय पेट की आग बुझाने में बरबाद हो रही है. भविष्य निर्माण की आस में मासूमों के सपने चकनाचूर हो रहे हैं. यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिन नन्हें हाथों में कलम होनी चाहिए. वहां जूठे बरतन और छेनी, हथौड़ी की आजमाइश हो रही है. समाज के सभ्रांत, धनाढ्य और अधिकारियों के घरों में झाड़ू पोछा लगाते बाल मजदूर समाज के गर्त में जाने की दास्तां बयां कर रही है. बाल श्रम कानून तो देश के रहनुमाओं ने बनाये जरूर, लेकिन उनके क्रियान्वयन को मजाक बनाकर छोड़ दिया गया है.
समारोह आयोजित कर सरकारी महकमा व राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्येक वर्ष बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है, सेमिनारों में तथाकथित विद्वान बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और श्रम विभाग द्वारा गाहे-बगाहे अभियान भी चलाये जाते हैं. लेकिन कुल मिला कर नतीजा ढाक के तीन पात साबित हो रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार, शहर के बंगाली बाजार, स्टेशन रोड, चांदनी चौक, पूरब बाजार, मीर टोला, रिफ्यूजी कॉलनी में अभी भी हजार के करीब बाल मजदूर ककहरे की जगह बरतनों व औजार की खनखनाहट में जीने को विवश हैं.
समाज नहीं हो रहा जागरूक: बाल श्रमिक का मुख्य कारण गरीबी, बढ़ती आबादी तथा अशिक्षा है. जब तक गरीबी रहेगी तब तक इसे पूरी तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता है. बाल श्रमिकों के वयस्क बन जाने के बाद भी पूरी जिंदगी कम आमदनी और गरीबी से घिरे रहते हैं. बाल श्रम पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती है. इसके लिए जागरूकता सबसे जरूरी हथियार है जिसके द्वारा ही बाल श्रम को समाप्त किया जा सकता है.
परियोजना से नहीं लौटी मुस्कान: वर्ष 2015 में राज्य की नीतीश सरकार द्वारा मुस्कान परियोजना चलायी गयी. जिसके तहत जिले की पुलिस को बाल श्रमिकों को मुक्त कराने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. जिला मुख्यालय में अगस्त से सितंबर माह में जोर-शोर से यह अभियान चलाया गया.
तत्काल इसके परिणाम भी सामने आये और दर्जनों बाल श्रमिकों को गैराजों और खानपान के होटल से मुक्त कराया गया. इसके बाद वर्ष 2016 के जनवरी एवं जुलाई माह में मुस्कान अभियान के तहत बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया. इसके बावजूद दोषी व्यक्तियों को कोई सजा नहीं दी गयी.
जानिये बालश्रम कानून को
वर्ष 1986 में बाल श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया. इसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का ढाबा, रेस्टोरेंट, होटल, चाय की दुकान, घरेलू कामगार, ईंट भट्ठा, गैराज, भवन निर्माण आदि स्थानों पर नियोजन प्रतिबंधित किया गया. ऐसा किये जाने पर दोषी नियोजकों को 20 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया. वहीं नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत 06 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी.
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