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कम टीडीएसवाले पेयजल से खतरा

स्वास्थ्य-रक्षा. आरओ वाटर सिस्टम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पेयजल को शुद्ध करने लिए घरों में आरअो लगाना आम है. इन दिनों यह स्टेटस सिंबल भी बनता जा रहा है. लेकिन यह पानी को शुद्ध करने के लिए कई आवश्यक तत्व को भी बाहर कर देता है. इस वजह से यह शरीरिक क्षमता को कम कर […]

स्वास्थ्य-रक्षा. आरओ वाटर सिस्टम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

पेयजल को शुद्ध करने लिए घरों में आरअो लगाना आम है. इन दिनों यह स्टेटस सिंबल भी बनता जा रहा है. लेकिन यह पानी को शुद्ध करने के लिए कई आवश्यक तत्व को भी बाहर कर देता है. इस वजह से यह शरीरिक क्षमता को कम कर रहा है. इसे लगाने से पहले पुनर्विचार की जरूरत है.
सहरसा : साफ, स्वास्थ्यवर्धक पेयजल उपलब्ध कराने के लिए रिवर्स-ओस्मोसिस (आरओ) जल शोधक प्रणाली को एक अच्छा अविष्कार माना जाता है. लेकिन अब विशेषज्ञों का कहना है कि आरओ प्रौद्योगिकी का अनियंत्रित प्रयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है. कोसी क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय जलशोधकों में से एक आरओ प्रक्रिया खासतौर से दूषित पानी वाले इलाकों में आयरन, टीडीएस जैसे विषाक्त पदार्थो का शोधन करने में कुशल हैं. इसके साथ ही घरेलू और औद्योगिक स्तर पर लगे आरओ सिस्टम इन विषाक्त पदार्थो को वापस भूजल जलवाही स्तर पर पहुंचा देते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि आरओ के गैरपरीक्षित उपयोग को रोकने के लिए नियम बनाने की जरूरत है. खासबात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन पांच सौ तक टीडीएस को पीने योग्य पानी के अनुकूल मानती है. लेकिन घरों में लगाये जाने वाले आरओ सिस्टम में टीडीएस की मात्रा 50 से 80 के करीब रख लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है. दूसरी तरफ मेडिकल साइंस पेयजल में कम किये गये टीडीएस को स्वास्थ्य के प्रतिकूल मानती है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के प्रयोगशाला सहायक अमर कुमार बताते हैं कि इन दिनों आरओ मशीन लगाने की होड़ मची हुई है. जो मानक के अनुसार इंस्टॉल नहीं किये जाने की वजह से परेशानी का सबब बन रही है.
पानी में 5 पीपीएम तक आयरन की मात्रा
शुद्ध पेयजल में 0.3 से 1.0 पीपीएम तक आयरन की मात्रा को सुरक्षित माना गया है. लेकिन कोसी के इलाके में सहरसा सहित सुपौल व मधेपुरा में 5 पीपीएम तक जांच में पायी जा रही है. कोसी तटबंधीय इलाके में किये जाने वाले जांच में पेयजल ज्यादा दूषित मिल रहे हैं. आयरन से पेयजल को मुक्त करने के लिए राज्य सरकार द्वारा पूर्व से संचालित आयरण रिमूवल प्लांट लगाने की योजना अभी बंद है. नतीजतन लोग आरओ सिस्टम लगाने को बाध्य हो रहे हैं. दूसरी तरफ गरीब तबके के लोग अब भी दूषित जल पीने को विवश हैं. जिसका कुप्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
कम टीडीएस से स्वास्थ्य को खतरा
कम टीडीएस वाले पानी के लगातार सेवन से हृदय संबंधी विकार, थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, सिरदर्द आदि दुष्प्रभाव पाये गये हैं. यह कई शोधों के बाद पता चला है कि इसकी वजह से कैल्शियम, मैग्नीशियम पानी से पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं जो कि शारीरिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है. कम टीडीएस वाले पेयजल के सेवन से लोगों की सेहत धीरे-धीरे बिगड़ने लगती है.
इनसान ही नहीं, जानवरों को भी खतरा
मिली जानकारी के अनुसार, बोतल बंद पानी जैसे औद्योगिक फर्म और घरों में आरओ फिल्टर के बाद बचा दूषित पदार्थ युक्त बेकार पानी भूजल के जलवाही स्तर में वापस डालने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है. बेकार पानी जलवाही स्तर पर पहुंचने से इंसानों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. बेकार पानी में सल्फेट, कैल्सियम सहित कई रासायनिक पदार्थ शामिल रहते हैं. औद्योगिक प्रयोग के दौरान कुल उपयोग किये गये पानी में 30 से 40 फीसदी पानी बेकार हो जाता है.
आरअो लगाने से पहले एक बार सोच लें
क्या है टीडीएस
टीडीएस का मतलब कुल घुलित ठोस से है. पानी में मिट्टी में उपस्थित खनिज घुले रहते हैं. भूमिगत जल में ये छन जाते हैं. सतह के पानी में खनिज उस मिट्टी में रहते हैं जिस पर पानी का प्रवाह होता है (नदी/धारा) या जहां पानी ठहरा रहता है(झील/तालाब/जलाशय). पानी में घुले खनिज को आम तौर पर कुल घुलित ठोस, टीडीएस कहा जाता है. पानी में टीडीएस की मात्रा को मिलीग्राम/लीटर (एमजी/ली) या प्रति मिलियन टुकड़े (पीपीएम) से मापा जा सकता है. ये इकाइयां एक समान हैं. खनिज मूलतः कैल्शियम (सीए), मैग्नीशियम (एमजी) और सोडियम (एनए) के विभिन्न अवयव होते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन पांच सौ एमजी टीडीएस को मान रहा उपयुक्त
आरओ में 50 से कम टीडीएस कर स्वास्थ्य से हो रहा खिलवाड़

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