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अब डीपीआर नहीं, जीर्णोद्धार जरूरी

मत्स्यगंधा जलाशय. अब संवरने की आस भी होती जा रही है खत्म 19 वर्ष पूर्व विकास योजना के तहत 54 लाख रुपये से मत्स्यगंधा जलाशय का निर्माण किया गया था. 1997 में यह बन कर तैयार हुआ. यहां रंग-बिरंगे वोट पर लोग विहार करते थे. लोगों की आवाजाही से जलाशय गुलजार था. लेकिन अब दशकों […]

मत्स्यगंधा जलाशय. अब संवरने की आस भी होती जा रही है खत्म

19 वर्ष पूर्व विकास योजना के तहत 54 लाख रुपये से मत्स्यगंधा जलाशय का निर्माण किया गया था. 1997 में यह बन कर तैयार हुआ. यहां रंग-बिरंगे वोट पर लोग विहार करते थे. लोगों की आवाजाही से जलाशय गुलजार था. लेकिन अब दशकों से इस तालाब में जलकुंभी भरा है. घोषणाएं व डीपीआर तक आकर बात अटक रही है. इसे कार्य रूप देने की जरूरत है.
सहरसा : साल 1997 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी तेज नारायण लाल दास की साकार परिकल्पना ‘मत्स्यगंधा’ की सूरत कब सुधरेगी. इसकी पुरानी सुंदर रौनक कब लौटेगी. इधर आने वाले लोगों की निगाहें बस ऐसे ही सवालों का जबाव ढ़ूंढ़ती है. शासन और प्रशासन दोनों ने लोगों को आश्वासन की घु˜ट्टी खूब पिलाई. लेकिन सफाई के नाम पर इस झील में एक कुदाल तक नहीं चलाया जा सका है. कभी जिले का एकमात्र पिकनिक स्पॉट व अत्यंत रमणीक कहलाने वाला मत्स्यगंधा झील पशुओं का चारागाह व सन्नाटों का इलाका बन कर रह गया है. प्रशासनिक लापरवाही से इसकी रौनक लौटने की आस भी अब खत्म होती जा रही है.
काम नहीं, सिर्फ बनते रहे डीपीआर. टीएन लाल दास के तबादले के साथ ही झील की रौनक भी चली गयी. इसे संवारने के लिए न तो किसी अधिकारी ने कदम बढ़ाया और न ही सरकार ने. साल 2012 में सेवा यात्रा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सुबह के सैर व अवलोकन के लिए उधर गए. झील की दुर्दशा देख उन्होंने तुरंत पर्यटन विभाग के विशेषज्ञ अधिकारियों को बुला बेहतर मत्स्यगंधा बनाने के लिए शीघ्र डीपीआर तैयार करने का निर्देश दिया. पूर्व के डीएम आर लक्ष्मणन एवं वर्तमान डीएम बिनोद सिंह गुंजियाल ने एक करोड़ रुपये के डीपीआर बनने की भी बात कही थी. लेकिन बीतते समय के साथ भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. मत्स्यगंधा की पुरानी खुबसूरती लौटाने की ओर शासन या प्रशासन कोई सजग नहीं दिख रहा है.
मत्स्यगंधा के मनोरम इतिहास का बेतरतीब है वर्तमान
वर्ष 1997 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी टीएन लाल दास के निर्देश पर मत्स्यगंधा जलाशय का निर्माण जिले के विकास योजना की 54 लाख रुपये की लागत से हुआ था. उससे पूर्व तक यह क्षेत्र शहरी क्षेत्र का श्मसान स्थल था. दिन-रात यहां लाशें जला करती थी. लोग डर से इधर आना भी नहीं चाहते थे. श्री दास के प्रयास से यहां उपलब्ध बिहार सरकार की जमीन के अलावे कुछ रैयतों की जमीन भी ली गयी और परिकल्पना के अनुसार झील बनाने का कार्य शुरू हुआ. उस दौरान दर्जनों क्षत-विक्षत लाशें मिली. दिन रात मजदूरों को लगा कर दस फीट की गहराई तक मि˜ट्टी खुदवा हड्डी के एक-एक टुकड़े को चुनवा लिया गया. चारों ओर परिक्रमा पथ बनवाया गया. स्ट्रीट लाइट से क्षेत्र को रोशन कर दिया गया. दुर्लभ पेड़ लगाए गये. इसे मत्स्यगंधा जलाशय परियोजना का नाम दिया गया था. जिसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के हाथों हुआ था. झील में रंग-बिरंगे पैडल व पतवार वोट डाले गए थे. इसके अलावे इंजन से चलने वाली एक बड़ी जलपरी भी डाली गई थी. झील के मध्य पानी का फव्वारा बनाया गया था. जो रंग बिरंगी रोशनी से सबों को आकर्षित करता था. दिन भर नौका सैर करने वालों का तांता लगा रहता था. पूर्णिमा सहित चांदनी रात में भी लोग नौका विहार करने का मौका नहीं छोड़ते थे. नाव की सैर टिकट पर करायी जाती थी. जिससे प्रशासन को अच्छी-खासी आमदनी होती थी. जगह-जगह सीढ़ियां सहित बेंच भी बनवाये गए थे. इसके अलावे इस परियोजना को बहुद्देश्यीय बनाने के उद्देश्य से झील में रेहू व कतला जैसी मछली डाली गयी थी. मछलियों के विक्रय से भी राजस्व की प्राप्ति भी होती थी.

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