सहरसा नगर : विज्ञान के प्रति ललक कहे या मातृभूमि का प्रेम जिसने कहरा प्रखंड के पटुआहा निवासी वैज्ञानिक नरेश चंद्र मिश्रा की पहचान भीड़ से अलग कर दी है. वर्ष 1962 में रांची विश्वविद्यालय से एमएससी की डिग्री लेने के बाद नरेश का झुकाव लगातार शिक्षण की तरफ बढ़ने लगा.
देवघर कॉलेज व जेजे कॉलेज मुंगेर में व्यख्याता की नौकरी करते हुए इन्होंने अपने पहले प्रयास में ही मुम्बई स्थित भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की परीक्षा पास कर शोध टीम में शामिल हो गये़ वैज्ञानिक नरेश चंद्र मिश्रा बताते है कि परमाणु उर्जा पर केंद्रित शोध के दौरान उन्हें कैंसर मेडिसीन में प्रयुक्त होने वाले रेडियो आइसोटाप्स की प्रक्रिया को सरल व सुगम बनाने का मौका प्राप्त हुआ. वर्ष 1964 से 2000 ई तक वैज्ञानिक श्री मिश्रा ने संस्थान को अपनी सेवा दी. अपने पेंशन की राशि से ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशने की मुहिम पर श्री मिश्रा तन्मयता से लगे हुए हैं.
जीएसएम सेंटर की शुरुआत
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से सेवानिवृत होने के बाद साइंटिस्ट श्री मिश्रा ने मुंबई छोड़ गांव का रास्ता पकड़ लिया. उन्होंने बताया कि नौकरी के दौरान सेंटर से अवकाश मिलने पर महानगर के स्कूलों में पहुंच अक्सर बच्चों को विज्ञान के प्रति जागरुक करने का काम करता था. उस समय मन में इस बात को लेकर हमेशा चिंता रहती थी कि गांव के बच्चों को भी विज्ञान व अविष्कार के संबंध में जिज्ञासा रहती है. लेकिन उनका सामाधान नहीं हो पाता है.
इसी मंशा को लेकर पटुआहा में जीएसएम सेंटर की नींव डाली गयी. जिसकी शुरुआत अपने घर अक्षर दान में की गयी. जिसमें अभी तक आसपास के सैकड़ों बच्चें शिक्षित हो चुके हैं. सेंटर में बच्चों को नये व पूर्व में किये गये अनुसंधान को स्वयं करने के लिए प्रेरित किया जाता है.
साइंस क्लब का हुआ निर्माण
निजी खर्च से वैज्ञानिक श्री मिश्रा द्वारा गांव के मुख्य सड़क के किनारे साइंस क्लब की स्थापना की गयी है. जिसके पीछे उद्देश्य बताते कहते है कि बच्चों को विज्ञान के जरिये आत्मनिर्भर बनाने की पहल है. उन्होंने बताया कि सड़क किनारे व लोगों के घरों में बेकार पड़े सामान व कचड़ों को संग्रहित कर व्यवसायिक उपयोग में लाने की विधि से अवगत कराया जाता है. श्री मिश्रा ने बताया कि विज्ञान के क्षेत्र में देश को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा करने के लिए गांव के बच्चों को उचित मार्गदर्शन देना ही उनके जीवन का लक्ष्य है.