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यह साल भी गुजर जायेगा लेकिन….गिरीन्द्र नाथ झाकुछ दिनों में यह साल विगत हो जायेगा. 2015 बस यादों में रह जायेगी. हम सब आगामी नये वर्ष में अपने फ्रेम से इस साल की बात करेंगे. ऐसे में यादों के बीच मुझे कुछ विवादों पर बात करने का मन कर रहा है. विवाद की जब बात […]

यह साल भी गुजर जायेगा लेकिन….गिरीन्द्र नाथ झाकुछ दिनों में यह साल विगत हो जायेगा. 2015 बस यादों में रह जायेगी. हम सब आगामी नये वर्ष में अपने फ्रेम से इस साल की बात करेंगे. ऐसे में यादों के बीच मुझे कुछ विवादों पर बात करने का मन कर रहा है. विवाद की जब बात छिड़ी तो सबसे पहले मैगी की विदाई और अवार्ड वापसी का ख्याल मन में आया. मैगी ही शायद एक ऐसा शब्द है, जिसकी व्याख्या देश का हर बच्चा कर सकता है. गांव-देहात से लेकर शहर-महानगरों के ज्यादातर घरों की रसोई में जगह बना चुके मैगी नूडल्स पर इस साल तब अचानक बिजली गिरी जब उसके उत्पादन से लेकर बिक्री तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया. हालांकि अगस्त में बांबे हाइकोर्ट ने मैगी से कुछ शर्तों के साथ पाबंदी हटा दी थी जिन्हें पूरा करने के बाद 9 नवंबर, 2015 को मैगी को फिर बाजार में उतारा गया. लेकिन तब तक दो मिनट वाला मैगी निराश हो चुका था. हर जगह इसकी बात हो रही थी. किसी खाद्य पदार्थ को लेकर इतनी बातें वो भी विवादों के जरिये बहुत कम ही सुनने को मिलती है. इसके बाद जिस विवाद पर सबकी नजर टिकी रही वह था- ‘अवार्ड वापसी’ का मामला. देश में कथित रूप से फैल रही असहिष्णुता ने ही 2015 के एक और बड़े मामले को जन्म दिया जिसे ‘अवार्ड वापसी’ का नाम दिया गया. इसकी शुरुआत हुई हिंदी साहित्यकार उदय प्रकाश से जिन्होंने अंधविश्वास के खिलाफ लड़ रहे कन्नड़ विद्वान कलबुर्गी की हत्या की निंदा करते हुए अपना साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि पिछले समय से देश में लेखकों, कलाकारों, चिंतकों और बौद्धिकों के प्रति जिस तरह का हिंसक, अपमानजनक, अवमानना पूर्ण व्यवहार लगातार हो रहा है, उसने उन्‍हें भीतर से हिला दिया है. उदय प्रकाश के बाद मशहूर लेखिका और जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल ने अपना साहित्य अकादमी सम्मान वापस लौटा दिया. साहित्यकारों के साथ ही फिल्मकार, कलाकार और वैज्ञानिक भी अवार्ड वापसी अभियान में शामिल हो गये, वहीं श्याम बेनेगल और विद्या बालन जैसे कुछ नाम ऐसे भी थे जो विरोध दर्ज करने के लिए सम्मान लौटाने के तरीके से सहमत नज़र नहीं आये. लेखकों और कलाकारों के अवार्ड वापसी अभियान के विरोध में अभिनेता अनुपम खेर ने दिल्ली में एक मार्च का नेतृत्व किया और राष्ट्रपति से मुलाकात की. आप कह सकते हैं कि साल के अंत में ऐसी बातें मैं क्यों कर रहा हूं. दरअसल इसके पीछे वजह है. मैं यह उम्मीद पाले बैठा हूं कि नये साल में हम सब ऐसा कुछ करेंगे ही नहीं जिससे विवाद का जन्म हो. सुर्खियों में बने रहने के लिए हम अच्छा काम करेंगे, न कि विवाद में फंस कर हम फिर खबर बन जायेंगे. फणीश्वर नाथ रेणु अक्सर कहते थे कि मुखौटा उतार कर जीवन जीना चाहिए. हम अक्सर मुखौटा लिए घुमते हैं ऐसे में कई विवादों से हमारा पाला पड़ता है. मैगी या फिर अवार्ड वापसी तो बस एक बानगी है, ऐसी कई बातें 2015 में हुई जिससे हमारी छवि खराब हुई लेकिन यह भी सच है कि इन्हीं 12 महीने में हमने कई अच्छी चीजें भी देखी. दुनिया भर में भारतवंशियों की उपलब्धियों पर हम बातें कर सकते हैं. गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर पहली बार महिला सैन्य दस्ते ने हिस्सा लिया. यह सब बात करते हुए गूगल के नये सीइओ सुंदर पिचाई को हम कैसे भूल सकते हैं. उन्हें इसी साल गूगल का नया सीइओ बनाया गया. उसी तरह साइना नेहवाल और सानिया मिर्जा ने भी अपने-अपने क्षेत्र में कामयाबी हासिल की. बस मेरा कहना यही है कि नये साल में हम कुछ न कुछ नया करेंगे ताकि हम बातों ही बातों में विवादों की ही केवल बातें न करने लगे.(लेखक किसान और ब्लॉगर हैं. हाल ही में राजकमल से इनकी किताब आई है – ‘इश्क में माटी सोना’)

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