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इनडोर से बाहर नहीं आ रही हैं खेल प्रतिभाएं

इनडोर से बाहर नहीं आ रही हैं खेल प्रतिभाएं इनडोर स्टेडियम खस्ताहाल, नहीं मिल रही हैं खिलािड़यों को सुविधाएं1 करोड़ 10 लाख की लागत से हुआ था इंडोर स्टेडियम का निर्माणतालों में बंद रहता हैं टेबुल टेनिस व बिलियर्ड्स के सामानखेलना का सारा सामान खिलाड़ियों को ही जुटाना होता हैजिमनेजियम में भी नहीं बढ़ायी जा […]

इनडोर से बाहर नहीं आ रही हैं खेल प्रतिभाएं इनडोर स्टेडियम खस्ताहाल, नहीं मिल रही हैं खिलािड़यों को सुविधाएं1 करोड़ 10 लाख की लागत से हुआ था इंडोर स्टेडियम का निर्माणतालों में बंद रहता हैं टेबुल टेनिस व बिलियर्ड्स के सामानखेलना का सारा सामान खिलाड़ियों को ही जुटाना होता हैजिमनेजियम में भी नहीं बढ़ायी जा रही हैं सुविधाएंसहरसा मुख्यालय ग्रामीण क्षेत्र से विक सित होता-होता ही सहरसा भी शहर बना. यहां भी पहले गिल्ली-डंडा, गुल्ली, सिट्टो, नुक्का-चोरी, डेंगा पानी, मछरी जाल, चुक्का, कबड्डी, बूढ़ी कबड्डी जैसे खेलों का ही प्रचलन था. जो समय के साथ-साथ गांवों तक ही सिमट कर रह गया. इन खेलों की जगह पहले लूडो, कैरम, शतरंज, बेगा-डिला, चैनी चक्कर जैसे इनडोर गेम ने लिया तो आउटडोर गेम में खो-खो, फुटबॉल, हॉकी, बैडमिंटन व क्रिकेट घर करता गया. शहर के परिवेश से ग्रामीण खेल धीरे-धीरे पूरी तरह विलुप्त तो हो गये. लेकिन सुविधाओं के अभाव में शहरी व आधुनिक खेलों का भी पूरी तरह समावेश नहीं हो सका. समाजिक व सरकारी लापरवाही का ही नतीजा है कि कोसी जैसे पिछड़े इलाके से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों की कड़ी में कोई शामिल नहीं हो सका. तकरीबन चार वर्ष पूर्व शहर में एक बड़े इनडोर स्टेडियम का निर्माण कराये जाने के बाद खिलाड़ियों को अपने क्षेत्र में बेहतर करने की उम्मीद जगी थी. लेकिन अभी तक पूर्ण नहीं हो पाने के कारण खिलाड़ियों को फायदा नहीं मिल पा रहा है.एक करोड़ 10 लाख से बना शहर में इनडोर स्टेडियम की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही थी. सांसद शरद यादव ने स्थानीय सांसद क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत इनडोर स्टेडियम के निर्माण के लिए 60 लाख की राशि दी. योजना के विस्तार एवं मजबूती के लिए बिहार सरकार ने भी मुख्यमंत्री जिला विकास योजना से 49 लाख 58 हजार रुपये की राशि दी. 23 मई 2009 को कुल एक करोड़ नौ लाख 58 हजार रुपये से बनने वाली योजना का शिलान्यास सांसद शरद यादव के हाथों संपन्न हुआ. कार्य एजेंसी एनआरईपी द्वारा मात्र 20 महीनों के बाद इनडोर स्टेडियम को लगभग तैयार कर दिया गया. अंदर काम काफी हद तक बांकी ही है. यहां लगे 28 में आधे से अधिक मेटल लाइट खराब हो चुके हैं. पवेलियन तो कंप्लीट है. पर गैलरी का काम अधूरा ही है. कला भवन की तरह बिना पूरा किये इनडोर स्टेडियम का भी उद्घाटन 13 फरवरी 2011 को तत्कालीन सांसद शरद ने कर दिया था. टीवी तक सीमित रहा बिलियर्डकाफी विशाल बनाये गये इनडोर स्टेडियम में बैडमिंटन के दो कोर्ट हैं. जिनमें से एक पूरा है. जबकि दूसरे का फर्श अब तक नहीं बनाया जा सका है. इसके अलावे टेबुल टेनिस व बिलियर्डस रूम की चाबी अधिकारियों के पास रहने के कारण लोगों को दर्शन तक नहीं हुए हैं. लिहाजा सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी टेबुल टेनिस व बिलियर्डस जैसे खेल टीवी पर दिखने वाले गेम बनकर रह गये हैं. बैडमिंटन का कोर्ट है. नेट भी लगा है. लेकिन खेलने के लिए आने वालों को रैकेट व कॉक साथ लाना होता है. गेम होम से मिली जानकारी के अनुसार टेबुल टेनिस के रैकेट तो हैं पर बॉल कब का गुम हो चुका है. इनडोर स्टेडियम में जिमनाजियम भी है. व्यायाम करने वालों से चंदा स्वरूप राशि भी ली जाती है. लेकिन इस पैसे से जिम का सुधार नहीं किया जाता है. दशा दयनीय हो गयी है. झाड़ू तक लाते हैं खिलाड़ी सुबह 6 से 10 बजे तक एवं शाम छह से दस बजे रात तक के निर्धारित अवधि तक इंडोर स्टेडियम खुला रहता है. अधिकारी या उनके निकटतम के अलावा आने वालों की संख्या काफी कम होती है. इतने बड़े स्टेडियम की देख रेख के लिए गोपनीय का नाईट गार्ड कुलेंद्र प्रसाद यादव अकेला प्रतिनियुक्त है. यहां की साफ -सफाई के लिए न तो मेहतर हैं और ना ही झाड़ूसाज. कुलेंद्र बताता है कि यहां खेलने के लिये यदा-कदा आने वाले खिलाड़ियों से ही झाड़ू मंगवाना पड़ता है. खेल प्रेमी व खिलाड़ियों के अनुसार इनडोर स्टेडियम का फायदा लेने के लिये सदस्य बनाया जाना चाहिए. ताकि खिलाड़ियों को अपने अंदर छिपी खेल प्रतिभा को निखारने का भरपूर मौका मिले. साथ ही खेल के राजकीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी पहचान बना सके. फोटो- स्टेडियम 1 – इंडोर स्टेडियम में खिलाड़ियों को नहीं मिलती है कोई सुविधा

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