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80 हजार में बचे सिर्फ 8710 उपभोक्ता

सहरसा मुख्यालय: ‘अहर्निशं सेवामहे- मैं दिन रात आपकी सेवा में हूं’ का स्लोगन देने वाले बीएसएनएल की स्थिति लगातार गिरती जा रही है. काफी तेजी से उपभोक्ता निगम से अपना संबंध तोड़ निजी कंपनियों से संबंध जोड़े जा रहे हैं. लेकिन उन्हें रोकने या बांधे रखने की निगम के पास कोई स्कीम नहीं है. स्थिति […]

सहरसा मुख्यालय: ‘अहर्निशं सेवामहे- मैं दिन रात आपकी सेवा में हूं’ का स्लोगन देने वाले बीएसएनएल की स्थिति लगातार गिरती जा रही है. काफी तेजी से उपभोक्ता निगम से अपना संबंध तोड़ निजी कंपनियों से संबंध जोड़े जा रहे हैं. लेकिन उन्हें रोकने या बांधे रखने की निगम के पास कोई स्कीम नहीं है. स्थिति यह है कि सहरसा, मधेपुरा व सुपौल तीनों जिले में अभी मात्र 8710 बेसिक टेलीफोन उपभोक्ता हैं. उनमें से सभी 90 फीसदी उपभोक्ताओं ने ब्रॉडबैंड के लिए बीएसएनएल का कनेक्शन ले रखा है. बीएसएनएल के बेसिक फोन का उपयोग अब सिर्फ सरकारी दफ्तरों तक ही सीमित रह गया है. निगम की लापरवाही व खराब व्यवस्था के कारण आम उपभोक्ता इससे दूर होते जा रहे हैं.

80 हजार से आठ हजार तक गिरा ग्राफ: साल 1990 तक बेसिक टेलीफोन सभी कार्यालय अथवा आम लोगों की पहुंच से काफी दूर था. उसके बाद आयी संचार क्रांति ने बेसिक टेलीफोन को घर-घर की जरूरत बना दिया. 2000 के आसपास तीनों जिलों में इसके उपभोक्ताओं की संख्या 80 हजार तक पहुंच गयी. लेकिन फिर पहले मोबाइल और उसके बाद विभाग की लापरवाही से उपभोक्ताओं ने अपना बेसिक फोन सरेंडर करना शुरू कर दिया. कभी अनाप-शनाप बिल तो कभी फोन डेड रहने के बाद भी बिलिंग. और तो और शिकायत पर भी फोन की गड़बड़ी को ठीक नहीं करने के कारण लोग बेसिक फोन हटाते चले गये. विभागीय आंकड़े के अनुसार 2005 में ही इन तीनों जिले में 48 हजार उपभोक्ता बचे थे. घर में लगे बेसिक फोन के डिस्कनेक्शन का सिलसिला अभी भी जारी है. अभी स्थिति यह है कि कोसी प्रमंडल के तीनों जिलों में महज 8710 बेसिक टेलीफोन उपभोक्ता ही बचे हैं. इनमें से अधिकतर फोन सरकारी कार्यालयों अथवा ब्रॉडबैंड यूजर्स के यहां ही लगे हुए हैं.

मोबाइल नेटवर्क भी सीमित व खराब : बेसिक फोन में आयी कमी का सबसे बड़ा कारण मोबाइल युग का आना माना जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि बीएसएनएल के मोबाइल सफल रहे हैं. सबसे घटिया व सीमित क्षेत्रों तक काम करने वाले इसके नेटवर्क से परेशान हो लोग बीएसएन के सिम भी फेंकते जा रहे हैं. उपभोक्ताओं का स्पष्ट कहना है कि उन्हें कम पैसे में अधिक टैरिफ का फायदा जब निजी कंपनियां दे रही हैं तो वे बीएसएनएल को क्यों और कब तक ढोयें. वे बताते हैं कि शहरी क्षेत्र छोड़ने के साथ ही बीएसएनएल का टावर भी साथ छोड़ने लगता है. किसी भी निजी कंपनी के मुकाबले बीएसएनएल का नेटवर्क सबसे अधिक धोखा देता है. वे मोबाइल अपनों से टच में रहने के लिए रखते हैं, दूर होने के लिए नहीं.

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