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आठ वर्ष बाद भी पुल पर नहीं लग सका गार्टर

सहरसा: वर्ष 1981 में धमारा घाट रेल हादसा विश्व में अब तक क ी बड़ी दुर्घटना में शामिल है. यहां उस समय भी सड़क मार्ग उपलब्ध नहीं था, 32 वर्षों के बाद आज भी नहीं है. पहले भी इस इलाके के लोग रेल पटरियों के किनारे-किनारे ही रुक-रुक कर गांव तक का सफर करते थे, […]

सहरसा: वर्ष 1981 में धमारा घाट रेल हादसा विश्व में अब तक क ी बड़ी दुर्घटना में शामिल है. यहां उस समय भी सड़क मार्ग उपलब्ध नहीं था, 32 वर्षों के बाद आज भी नहीं है. पहले भी इस इलाके के लोग रेल पटरियों के किनारे-किनारे ही रुक-रुक कर गांव तक का सफर करते थे, आज भी कर रहे हैं. दुर्घटना के कुछ दिनों के बाद बात पुरानी हुई तो रेल यातायात भी शीघ्र चालू कर दी गयी. मीटर गेज की पटरियों पर छोटी लाइन की ही सही, धीरे-धीरे ही सही, ट्रेनें चलती रही, दौड़ती रही. 1981 के बड़े और वीभत्स हादसे के 24 वर्षों बाद सहरसा-मानसी रेलखंड में आमान परिवर्तन हुआ. छोटी रेल लाइन के समानांतर बड़ी रेल लाइन की पटरियां बिछायी गयी. रास्ते में कुछ नये और बड़े पुल भी बनाये गये. कोपरिया से बदलाघाट तक पुरानी और छोटी रेल लाइन को लगभग उसी हाल में छोड़ दिया गया. वर्ष 2005 में लगभग छह माह का मेगा ब्लॉक लेने के बाद जून में देश के तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने सहरसा-मानसी आमान परिवर्तन कार्य का उदघाटन किया. तब से छोटी लाइन क ा पुराना रेल पथ उस इलाके के लोगों का पैदल पथ बन गया, जो आज तक बना हुआ है.

फिर बज रही है खतरे की घंटी

वर्ष 1981 में हुई पहली दुर्घटना के 24 साल बाद ग्रामीणों को कहीं-कहीं पटरी वाली पुरानी और जर्जर सड़क तो मिली. बड़ी रेल लाइन चालू होने के आठ सालों से स्वत: वैकल्पिक मार्ग तो मिला. एक पुल पर स्लैब ढाल कर बिछा उनके मार्ग को आसान बना भी दिया गया. मालूम हो कि मुंगेर घाट से गंगा जल लेकर बलवाहाट के मटेश्वरधाम, महिषी के उग्रतारा व चैनपुर के नीलकंठ मंदिर में चढ़ाने वाले श्रद्धालु भी इसी पथ का उपयोग करते हैं. लेकिन स्थायी समाधान होने तक सुरक्षित घर तक आने जाने के लिए उस पुल पर गार्टर नहीं लगाये जा सके हैं. 32 साल के बाद इसी रेलखंड में एक और बड़ा रेल हादसा हुआ. गार्टर नहीं होने के कारण ये पुल इस होकर गुजरने वाले हरिपुर, फनगो, कचौत सहित अन्य गांव के लोगों के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है.

जर्जर व खतरनाक है वैकल्पिक मार्ग

कोपरिया रेलवे स्टेशन के बाद और फनगो से पहले कोसी बागमती नदी पर रेल पटरियों के समानांतर दो पुराने पुल का उपयोग ग्रामीण आवागमन के रूप में कर रहे हैं. यह कहना नहीं होगा कि दोनों पुराने पुल जर्जर हो चुके हैं. किसी भी पुल का न तो बेस मजबूत है और न ही उस पर गार्टर ही लगे हैं. कोपरिया स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर दक्षिण के पुल पर पटरियों की जगह स्लैब ढाल कर बिछा तो दिया गया है. लेकिन स्लैब की चौड़ाई बमुश्किल तीन फीट है, लेकिन दोनों में से किसी ओर भी गार्टर लगाने की जरूरत नहीं समझी गयी. स्लैब से ही दोनों ओर एक -एक सरिया निकला हुआ है, आवाजाही अधिक रहती है. जल्दबाजी में जाने-आने वालों के लिए हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है.इस पुल से ठीक आगे धमारा घाट स्टेशन से पहले एक बड़ा पुल और भी है. वह भी नये और बड़े रेल पुल के समानांतर ही है. इसका भी उपयोग लोग पैदल पथ के रूप में करते हैं. पुल की जर्जरता पैदल पार करते समय पुल के नीचे से आने वाली आवाज बयां कर देती है. जब इस पटरे से कोई बाइक गुजर रही होती है तब पूरा का पूरा पुल किसी हादसे को बुलाता प्रतीत होता है. यहां गुजरने वाले अक्सर बाइक से उतर पैदल ही पुल पार करते हैं. इस पुल पर पश्चिम दिशा की ओर पुराना ब्रेकेट तो है, लेकिन पूरब दिशा पूरी तरह खुला हुआ है. लगभग 30 फीट नीचे से कोसी बागमती की मुख्य धारा अपने वेग से बह रही है.

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