सहरसा : शहर के दिव्य ज्योति आइ केयर में इन दिनों शहर सहित ग्रामीण इलाकों के मरीज नये टोपिकल फेको विधि से आंख का उपचार करा रहे हैं. मालूम हो कि कोसी के इस भाग में मोतियाबिंद के मरीजों की संख्या काफी है और सदर अस्पताल का आंख विभाग अभी लचर व्यवस्था में है.
* नयी विधि से हो रहा ऑपरेशन
स्थानीय क्लिनिक में मरीजों का बढ़ना इस बात का संकेत है कि विदेशी इलाज से अब मरीजों को संतुष्टि नहीं मिल रही है. साथ ही लेंसों की खराबी के कई मामले भी प्रकाश में आये हैं. दिव्य ज्योति के सजर्न डॉ सीबी चौधरी बताते हैं कि नयी फेको तकनीक मोतियाबिंद के मरीजों के लिए वरदान साबित हुई है. बिना चीर फाड़ और पट्टी के ऑपरेशन से मरीज राहत महसूस करते हैं.
ऑपरेशन के दो से तीन घंटे बाद ही मरीज सामान्य काम करने लगता है, जबकि पुरानी विधि में ऐसी बात नहीं थी. साथ ही चीरा भी सात एमएम का लगता था, जो कष्टदायक था. पट्टी बांधी जाती थी. फेको के विधि में एक दो एमएम के हल्के सुराग से ही कैटेरेक्ट निकाल कर लेंस का प्रत्यारोपण किया जा रहा है. यह फेको के द्वारा ही संभव है.
* मोतियाबिंद के रोगियों को बड़ी राहत
* बिना चीर–फाड़ के हो रहा ऑपरेशन
* टोपिकल फेको विधि का उपयोग
* लहान नेपाल से बेहतर सुविधा कम लागत : डॉ विभाष
* विदेशों में हो रहा शोषण
खगेश कुमार बताते हैं कि उसने अपनी मां की आंखों का इलाज लहान में कराया. उसकी मां के आंखों की रोशनी कम हो गयी और सिर्फ धुंधलापन के सिवाय कुछ नजर नहीं आता. साहूकार से कर्ज लेकर उसने 13 हजार रुपया मां के इलाज में खर्च किये. इस तरह के कई मरीज हैं, जिसका शोषण हो रहा है. लहान नेपाल में आंखों के ऑपरेशन की फीस 675 रुपया और लेंस की कीमत 12 सौ रुपया होती है. दिव्य ज्योति के डॉ विभाष बताते हैं कि उनके यहां भी लगभग इसी राशि में मरीज अच्छी सुविधा का लाभ उठा रहे हैं. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों से मरीज का भरोसा बढ़ने लगा है.