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रेट लिस्ट का वरदान दो धरती के भगवान

मनमानी. अधिकांश जगह नर्सिंग होम सेवा का माध्यम बनने के बजाय ले चुका है व्यवसायिक रूप निजी अस्पताल में सार्वजनिक हो रेट लिस्ट सहरसा : कहते हैं चिकित्सक भगवान का दूसरा रूप होता है. कुछ चिकित्सक ऐसे भी हैं जो मरीजों की सेवा नारायण सेवा की तरह ही करते हैं. दशकों से चिकित्सा सेवा कर […]

मनमानी. अधिकांश जगह नर्सिंग होम सेवा का माध्यम बनने के बजाय ले चुका है व्यवसायिक रूप

निजी अस्पताल में सार्वजनिक हो रेट लिस्ट
सहरसा : कहते हैं चिकित्सक भगवान का दूसरा रूप होता है. कुछ चिकित्सक ऐसे भी हैं जो मरीजों की सेवा नारायण सेवा की तरह ही करते हैं. दशकों से चिकित्सा सेवा कर रहे इन चिकित्सकों की ख्याति दूर-दूर तक फैली है. हालांकि अधिकांश जगह नर्सिंग होम सेवा का माध्यम बनने के बजाय व्यवसायिक रूप ले चुकी है. जहां मरीज क्लाइंट के रूप में पहचाने जाते हैं. कुछ लोगों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ग्रामीण चिकित्सक नर्सिंग होम से व्यवसायिक ताल्लुकात रखते हैं. इन लोगों द्वारा हजार से दो हजार रुपये मरीज को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए नर्सिंग होम प्रबंधन से नजराना के रूप में वसूल किये जाते हैं.
इस काम में कई एंबुलेंस संचालक भी शामिल होते हैं. इतना ही नहीं शहर में दर्जनों ऐसे भी लोग हैं जो सरकारी व निजी अस्पताल का चक्कर काटते रहते हैं. जहां मरीज के परिजनों को भ्रमित कर दूसरे अस्पताल में पहुंचाया जाता है. प्रभात खबर द्वारा हॉस्पिटल में रेट लिस्ट लगाने के लिए शुरू की गयी मुहिम को जिले के जनमानस का भरपूर समर्थन भी प्राप्त हो रहा है. इसके बाद कुछ नर्सिंग होम प्रबंधन द्वारा रेट लिस्ट लगाये जाने की जानकारी भी दी गयी है. लेकिन आम व खास को प्रभावित कर रही रेट लिस्ट मामले पर अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक खामोश हैं.
सुनिए डॉक्टर साहब, जनता की आवाज: प्रभात खबर के हेल्पलाइन नंबर पर प्रतिक्रिया देते महिषी के मो रब्बान कहते है कि एक ही डॉक्टर शहर के कई नर्सिंग होम में अपनी सेवा देते हैं. जहां इलाज करने का उनका चार्ज अलग-अलग होता है. इसमें एक समान व्यवस्था होनी चाहिए. भारतीय नगर के रजनीश कहते हैं
कि आंख का चश्मा बनाने में ज्यादा रुपये लिए जाते हैं. डॉक्टर को भी ऐसे मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए. डीबी रोड के पंकज कहते हैं कि अस्पताल में रेट लिस्ट देने से प्रबंधन को सुविधा होगी. एक ही प्रकार की सर्जरी के एक अस्पताल में अलग-अलग चार्ज में भी किये जाते है. प्रताप नगर के सुमन कहते हैं कि सभी अस्पताल में ओपीडी शुल्क कम होना चाहिए. मरीज को मशवरा लेने के लिए भी ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
केस स्टडी 1
शहर के डीबी रोड में डॉ ए के चौधरी दशकों से अपना क्लिनिक चलाते हैं. इन्हें गरीबों का डॉक्टर भी लोग कहते हैं. आप कभी भी पहुंच जाये वहां गरीब तबके के ज्यादातर मरीज मिल जायेंगे. हालांकि डॉक्टर साहब के यहां भी रेट लिस्ट नहीं लगी हुई है. लेकिन ओपीडी चार्ज अन्य जगहों से काफी कम है. डॉक्टर साहब रविवार को जिले के मरीजों का मुफ्त इलाज करते हैं. इस वजह से रविवार के दिन इनके क्लिनिक पर मरीजों की संख्या दो सौ के पार हो जाती है. डॉ चौधरी के क्लिनिक में जांच या दवाई की सुविधा नहीं है. मरीज इस प्रकार की सेवा के लिए अन्यत्र जाते हैं. क्लिनिक का आकार छोटा रहने की वजह से मरीज व उनके परिजन सड़क किनारे इंतजार करते हैं.
केस स्टडी 2
बनगांव रोड रूपवती स्कूल गली में इएनटी विशेषज्ञ डॉ सतीश चंद्र झा का क्लिनिक है. लोग कहते हैं कि अन्य चिकित्सकों से पच्चीस फीसदी फीस भी कम है. इनके क्लिनिक में भी रेट लिस्ट का कोई जिक्र नहीं है. लोगों ने बताया कि डॉक्टर झा बनगांव व कहरा के मरीजों से फीस नहीं लेते हैं. उनलोगों को गांव का नाम बताने पर फीस माफ कर दी जाती है. हालांकि इस प्रकार की व्यवस्था अन्य किसी चिकित्सक के क्लिनिक पर नहीं है. जबकि सहरसा में प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश डॉक्टर स्थानीय जगहों से ही ताल्लुकात रखते हैं. बाहरी मरीजों की भीड़ भी ज्यादा रहती है. क्लिनिक पर आधारभूत संरचना का अभाव भी है.
केस स्टडी 3
शहर के डीबी रोड में भूषण गुप्ता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस नाम से नर्सिंग होम संचालित होता है. नर्सिंग होम में मरीज व उनके परिजनों के बैठने के लिए बड़ा कक्ष है. परिसर में ही सभी प्रकार की जांच व दवाई लेने की सुविधा है. अस्पताल में जांच व सर्जरी का रेट लिस्ट सार्वजनिक नहीं किया गया है. मरीज के परिजनों ने बताया कि बिल ज्यादा होता है. लेकिन भुगतान के समय डॉक्टर रियायत भी करते हैं. अस्पताल में उपद्रव फैलाने वालों पर होने वाली कार्रवाई के संदेश डिस्प्ले किये गये हैं.
गंभीर मरीज इलाज के लिए ज्यादा पहुंचते हैं. अस्पताल में साफ-सफाई की कोई कमी नहीं है. कई प्रकार के असाध्य मर्ज व सामान्य बीमारी से निजात के लिए दूसरे जिले से भी लोग पहुंचते हैं.

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