बाढ़ से बचने को करोड़ों की लागत से बना था आश्रय-स्थल
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वजूद खो रहा है आसरा
बाढ़ से बचने को करोड़ों की लागत से बना था आश्रय-स्थल मॉनसून का आगमन होनेवाला है. बारिश व बाढ़ कोसी के इलाके लिए हमेशा से शाप की तरह है. ऐसे में कुसहा त्रासदी के दौरान बनाया गया आश्रय स्थल भी प्रशासन की लापरवाही की भेंट चढ़ गया. सहरसा : वर्ष 2008 के आयी कुसहा त्रासदी […]
मॉनसून का आगमन होनेवाला है. बारिश व बाढ़ कोसी के इलाके लिए हमेशा से शाप की तरह है. ऐसे में कुसहा त्रासदी के दौरान बनाया गया आश्रय स्थल भी प्रशासन की लापरवाही की भेंट चढ़ गया.
सहरसा : वर्ष 2008 के आयी कुसहा त्रासदी में सहरसा, सुपौल व मधेपुरा जिले के दर्जनों गांवों में काफी तबाही मची थी. इन जिलों के कई गांवों में उस तबाही के जख्म आज भी हरे हैं. हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़ अन्यत्र शरण लेना पड़ा था. हजारों लोगों को कैंप में रहना पड़ा था तो हजारों ने रेलवे स्टेशन अथवा सड़कों के किनारे शरण लिया था. हर साल आने वाली बाढ़ से बेघर होने वाले लोगों के लिए सरकार ने जगह-जगह राहत कैंप बनाया था. लेकिन प्रशासनिक देख रेख के अभाव में अधिकतर कैंपों का वजूद खत्म हो गया है.
टाटा ने बनवाया था शेड
2008 में बिहार सरकार की पहल पर देश के प्रसिद्ध उद्योग घराना टाटा कंपनी ने बाढ़ से बेघर हुए लोगों के सर छिपाने के लिए सहरसा, सुपौल व मधेपुरा जिले में कई जगहों पर करोड़ों की लागत से लोहे की पाईप के सहारे चदरा का शेड निर्माण कराया था. शेड की जमीन पक्की करायी गई थी. त्रासदी के दौरान ऐसे बने शेडों में हजारों लोगों ने शरण पायी थी. सहरसा के पटेल मैदान, कोसी कॉलोनी, बैजनाथपुर, सौरबाजार के कपसिया में बाढ़ आश्रय स्थल का निर्माण कराया गया था. त्रासदी के बाद भी लगभग तीन महीने तक लोग उस शरण स्थली में रहे थे. लेकिन त्रासदी के बाद इस बाढ़ आश्रय स्थल को यूं ही छोड़ दिया गया.
बना गंजेड़ियों का अड्डा
शेड पर सरकार की कोई नजर नहीं होने से शेड पर जंगल का कब्जा हो गया है. ऐसे स्थल या तो अतिक्रमित हो गये या फिर यह असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया. पटेल मैदान सहित अन्य आश्रय स्थल शराबी, गंजेड़ी व जुआरियों का अड्डा बन गया है. लेकिन प्रशासन ने इस ओर कभी कोई ध्यान नहीं दिया है. जिससे ये बाढ़ आश्रय स्थल अपना अस्तित्व खो चुके हैं. लाखों रुपये का चदरा सहित पाइप कोसी कॉलनी व बैजनाथपुर के आश्रय स्थल से करोड़ों की लागत से बने शेड का चदरा व पाइप स्थल से गायब हो जाने के बावजूद जिला प्रशासन की नींद नहीं खुली है. शहरी मुख्यालय में अधिकारियों व घनी बस्ती के बीच स्थित कोसी कॉलोनी स्थित आश्रय स्थल से पाइप व चदरे की चोरी होना व किसी के विरुद्ध मामले का दर्ज नहीं होना प्रशासन की लापरवाही बताता है.
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