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करोड़ों खर्च, पर लोगों को लाभ नहीं

परेशानी. शहर में बने कम्युनिटी हॉल नहीं आ रहे किसी के काम सासाराम कार्यालय : किसी शहर के सांस्कृतिक, राजनीतिक व बौद्धिक आदि चेतना को बढ़ाने में कम्युनिटी हॉल का महत्वपूर्ण योगदान होता है. इसकी झलक कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के विभिन्न उपन्यासों में मिलती है. अधिकांश में मुंशी जी ने नायक को व्याध्यान सुनने […]

परेशानी. शहर में बने कम्युनिटी हॉल नहीं आ रहे किसी के काम

सासाराम कार्यालय : किसी शहर के सांस्कृतिक, राजनीतिक व बौद्धिक आदि चेतना को बढ़ाने में कम्युनिटी हॉल का महत्वपूर्ण योगदान होता है. इसकी झलक कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के विभिन्न उपन्यासों में मिलती है. अधिकांश में मुंशी जी ने नायक को व्याध्यान सुनने के लिए कम्युनिटी हॉल (टाउन हॉल) में जाने का जिक्र किया है. वहां से निकली बातें शहर में फैल कर समाज को सोचने पर मजबूर करती हैं. अपने शहर सासाराम में सरकारी स्तर पर तीन कम्युनिटी हॉल हैं, पर इन में से एक आम आदमी के लिए नहीं. दूसरा अपनी त्रुटिपूर्ण बनावट के कारण उपयोग के लायक नहीं और तीसरा 60 के दशक से आज भी साथ दे रहा है. करोड़ों खर्च कर बनाये गये कम्युनिटी हॉल पब्लिक के काम नहीं आ रहे हैं.
भीड़ का दबाव झेलने में सक्षम नहीं: 60 के दशक में शहर के मध्य ओझा टाउन हॉल का निर्माण हुआ था. उस समय शहर की आबादी काफी कम थी. दो सौ लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. दो सौ लोगों के बैठने की व्यवस्था वाला ओझा टाउन हॉल आज छोटा पड़ने लगा है. बड़े जलसे में सेमिनार आदि कराने के इच्छुक नागरिक मन मसोस कर रह जा रहे हैं. किसी स्कूल के वार्षिकोत्सव के समय ओझा टाउन हॉल भीड़ का दबाव झेलने में सक्षम नहीं हो पा रहा है. फिर भी छोटे कार्यक्रमों के लिए यह शहरवासियों को आज भी साथ दे रहा है.
ऑडिटोरियम से लोग करते हैं परहेज: कम्युनिटी हॉल की कमी महसूस होने पर प्रशासन ने कचहरी के समीप ऑडिटोरियम का निर्माण कराया. 90 के दशक में बन कर तैयार ऑडिटोरियम में पांच सौ लोगों के बैठने की जगह बनी. सिढ़ीनुमा बालकोनी है. मंच भी है. लेकिन, इस हॉल में आवाज स्पष्ट नहीं सुनायी पड़ती. गरम हवा को बाहर निकालने की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में लोग इस में मजबूरी में ही कार्यक्रम करने को तैयार होते हैं.
60 के दशक में बना ओझा टाउन हॉल अब भी दे रहा साथ
आम आदमी के लिए नहीं मल्टीपर्पस हॉल
प्रखंड कार्यालय के समीप पड़ाव के मैदान को प्रशासन ने एक वृहद स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स में बदल दिया. खेल मैदान के साथ एक कम्युनिटी हॉल का निर्माण 2010 में कराया गया. हॉल के मंच को हर कार्यक्रम के लायक बनाया गया. लेकिन, जिला प्रशासन ने आम लोगों के उपयोग के लिए उसे कभी नहीं खोला. हॉल में लकड़ी के फर्श वाला बैडमिंटन कोर्ट बना दिया. अपनी जरूरत पर कार्यक्रम आयोजित कर लेता है. आम आदमी कोई कार्यक्रम नहीं कर सकता.
खलती है कमी
अपराजय निराला संस्था शहर में नाटक का मंचन करती है. संस्था इसके लिए गरमी के दिनों का इंतजार करती है. क्योंकि अन्य दिनों में नाटक के मंचन के लिए उसे महफूज व माकूल स्थान नहीं मिल पाता. संस्था के डाॅ ममन ने बताया कि हमारे यहां कम्युनिटी हॉल की घोर कमी है. मन मसोस कर खुले मैदान में नाटक का मंचन करना पड़ता है. उसमें खर्च भी ज्यादा आता है. बढ़िया कम्युनिटी हॉल बन जाये तो वर्ष में तीन-चार नाटक का मंचन किया जा सकता है.

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