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ताक पर प्रशासनिक आदेश, डायलिसिस यूनिट आज भी बीमार

डीएम ने स्वास्थ्य विभाग को डायलिसिस यूनिट की मरम्मत के लिए दो लाख रुपये कराया था उपलब्ध पूर्णिया : सदर अस्पताल का डायलिसिस यूनिट लगभग दो वर्षों से खुद बीमार है. प्रशासनिक आश्वासन के बावजूद इस यूनिट का कायाकल्प नहीं हो सका है. लिहाजा अनुदानित कीमत पर डायलिसिस सेवा के लिए कोसी व सीमांचल के […]

डीएम ने स्वास्थ्य विभाग को डायलिसिस यूनिट की मरम्मत के लिए दो लाख रुपये कराया था उपलब्ध

पूर्णिया : सदर अस्पताल का डायलिसिस यूनिट लगभग दो वर्षों से खुद बीमार है. प्रशासनिक आश्वासन के बावजूद इस यूनिट का कायाकल्प नहीं हो सका है. लिहाजा अनुदानित कीमत पर डायलिसिस सेवा के लिए कोसी व सीमांचल के दूर दराज इलाके से यहां आने वाले गरीब मरीजों को निराश होना पड़ रहा है. स्वास्थ्य विभाग की इस शिथिलता का भरपूर लाभ खुले बाजार में डायलिसिस सेवा देने वाली दुकान उठा रहे हैं. जहां मरीजों का आर्थिक दोहन किया जाता है. इसके बावजूद किडनी रोग से ग्रसित मरीजों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है.
डीएम ने लिया था संज्ञान
14 दिसंबर 2015 को प्रभात खबर ने डायलिसिस सेवा से जुड़ी खबर ‘ सदर अस्पताल खुद बीमार कहां जायें मरीज ‘ को प्रमुखता से प्रकाशित किया था. प्रभात खबर में छपी खबर पर डीएम पंकज कुमार पाल ने 14 दिसंबर को ही संज्ञान लिया व सिविल सर्जन डॉ एमएम वसीम को तलब कर डायलिसिस यूनिट से संबंधित खराबियों की जानकारी ली. डायलिसिस यूनिट खराब रहने का कारण अस्पताल प्रशासन ने मरम्मत के लिए पैसे का अभाव बताया था. डीएम पंकज कुमार पाल ने समस्या जानने के बाद स्वास्थ्य विभाग को मरम्मत के लिए दो लाख रुपये उपलब्ध कराया था. इसके बावजूद सदर अस्पताल के डायलिसिस यूनिट की दशा नहीं बदली और वह आज भी बीमार है.
मरीजों को भेजा जाता है बाहर
सदर अस्पताल में मरीजों का डायलिसिस अनुदानित कीमत 900 रुपये में हो जाता था, लेकिन यहां डायलिसिस यूनिट खराब रहने के कारण मरीजों को पास ही एक निजी नर्सिंग होम की शरण लेनी पड़ती है. इसमें मरीजों से अमूमन 3300 रुपये वसूले जाते हैं. बताया जाता है कि बाजार की डायलिसिस सेवा स्थानीय डॉक्टरों के संरक्षण में संचालित हो रही है. कई जानकारों का मानना है कि डॉक्टरों के दबाव के कारण ही अस्पताल प्रशासन डायलिसिस यूनिट की मरम्मती में दिलचस्पी नहीं लेता है.
क्या है डायलिसिस
जिन लोगों की किडनी फेल हो चुकी है या फिर सही ढंग से काम नहीं कर रही हो, उनके लिए यह जीवनरक्षक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में विशेष तकनीक का इस्तेमाल करके कृत्रिम रूप से खून को फिल्टर किया जाता है. यानि इस प्रक्रिया में किडनी का काम मशीन करती है. खून को मशीन से होकर गुजारा जाता है. इसमें वह फिल्टर होता है. जब दोनों किडनी फेल हो जाते हैं, तो डायलिसिस की नौबत आती है. हमारे शरीर में करीब 1,500 लीटर ब्लड किडनी रोज फिल्टर करती है. किडनी फेल होने पर या जीएफआर 15 मिली प्रति मिनट ही कर पा रहा हो, तो फिर डायलिसिस की जरूरत पड़ती है.
बोले सीएस
डायलिसिस यूनिट को ठीक कराने के लिए इंजीनियर को बुलाया गया है. इसकी शीघ्र ही मरम्मत करा ली जायेगी.
डॉ एमएम वसीम, सिविल सर्जन, पूर्णिया

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