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अनदेखी. वर्षों बीते, नहीं बदल सकी प्रमंडलीय बस पड़ाव की सूरत प्रमंडलीय बस पड़ाव कुव्यवस्था की जद में है. यहां यात्रियों की सुिवधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. बात चाहे िफर शुद्ध पेयजल की हो या िफर शौचालय की ही. यहां चारों ओर गंदगी ही गंदगी है. पूर्णिया : जिला मुख्यालय की हृदयस्थली […]

अनदेखी. वर्षों बीते, नहीं बदल सकी प्रमंडलीय बस पड़ाव की सूरत

प्रमंडलीय बस पड़ाव कुव्यवस्था की जद में है. यहां यात्रियों की सुिवधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. बात चाहे िफर शुद्ध पेयजल की हो या िफर शौचालय की ही. यहां चारों ओर गंदगी ही गंदगी है.
पूर्णिया : जिला मुख्यालय की हृदयस्थली में अवस्थित प्रमंडलीय बस पड़ाव स्थायी रूप से बदहाली के मकड़जाल में उलझा हुआ है. बरसात हो या जाड़े का मौसम जलजमाव इसकी स्थायी पहचान है और चारों ओर फैली गंदगी के बीच यहां यात्रियों का खड़ा रहना भी दुश्वार है. यह अंतरराज्यीय बस पड़ाव है और यहां आकर हजारों लोग अपनी मंजिलें तय करते हैं. लेकिन इस बस पड़ाव को खुद अपनी मंजिल की तलाश है. विभागीय उपेक्षा और पेच में फंस कर यह बदहाली के दौर से गुजर रहा है.
कुल मिला कर बस स्टैंड की स्थिति हमेशा नारकीय बनी रहती है. दरअसल वर्ष 2013-14 में प्रमंडलीय बस पड़ाव को मरंगा शिफ्ट करने की घोषणा हुई थी. योजना बनी, डीपीआर तैयार हुआ लेकिन आगे की कार्रवाई ठंडे बस्ते में है. हाल यह है कि राजनेता से लेकर अधिकारी तक केवल वादे कर रहे हैं लेकिन बस पड़ाव के स्थानांतरण का मामला ठंडे बस्ते में पड़ा है. वहीं बस स्टैंड की स्थिति बद से बदतर बनी हुई है.
रोशनी से लेकर पेयजल तक का अभाव : मॉडल बस पड़ाव के निर्माण की घोषणा के बाद बस पड़ाव की बदहाली बढ़ती चली गयी. सफाई व्यवस्था के अभाव में जगह-जगह कूड़े जमा रहते हैं. बारिश का मौसम भले ही नहीं हो लेकिन पानी जरूर कई हिस्से में जमा रहता है. दुकानों से निकले कचरे के सड़ांध के बीच यात्री आते हैं और कुछ देर की बात मान समस्या को नजरअंदाज करते हैं और गंतव्य के लिए प्रस्थान कर जाते हैं. बस के एजेंट और चालक तथा खलासी इस माहौल में रहने के अभ्यस्त हो गये हैं. इतना ही नहीं रोशनी के अभाव में शाम होते ही बस पड़ाव अंधेरे में डूब जाता है. पेयजल की अगर यात्री को जरूरत हो तो बोतलबंद पानी के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है क्योंकि साधारण पेयजल के लिए चापाकल ढूंढ़ना यहां आसान नहीं है.
मरंगा के बकरी फार्म में िचह्नित की गयी थी जमीन : प्रमंडलीय बस पड़ाव को मरंगा स्थानांतरित करने का मामला भूमि अधिग्रहण के पेच में फंसा हुआ है. बताया जाता है कि नगर निगम द्वारा मरंगा स्थित बकरी पालन फर्म में जगह चिह्नित कर सभी कागजातों के साथ उक्त विभाग को जमीन ट्रांसफर के लिए 2015 में ही भेजा गया है. लेकिन पशुपालन विभाग द्वारा जमीन हस्तांतरण नहीं किये जाने से मामला फंसा हुआ है. जाहिर है कि प्रमंडलीय बस पड़ाव की सूरत फिलहाल बदलती नजर नहीं आ रही है.
बस पड़ाव के मरंगा स्थानांतरण का मामला भूिम अिधग्रहण के पेच में
बरसात हो या जाड़े का मौसम जलजमाव है इसकी स्थायी पहचान
चारों ओर फैली गंदगी के बीच यहां यात्रियों का खड़ा रहना भी होता है दुश्वार
वर्ष 2013-14 में प्रमंडलीय बस पड़ाव को मरंगा शिफ्ट करने की हुई थी घोषणा
योजना बनी, डीपीआर तैयार, पर ठंडे बस्ते में है आगे की कार्रवाई
बेहतरी का हुआ कई बार प्रयास िफर भी नतीजा रहा सिफर
वर्ष 2014-15 में बस पड़ाव को संवारने का प्रयास तत्कालीन एसडीएम कुंदन कुमार द्वारा किया गया था. उन्होंने बस पड़ाव का निरीक्षण के बाद तत्काल ही बस पड़ाव में रोशनी की व्यवस्था के लिए हाइमास्ट जलवाया था. इतना ही नहीं नगर निगम के माध्यम से बस पड़ाव में नालों की सफाई तथा अन्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त करवाया था. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद बस पड़ाव की सूरत फिर पहले जैसे हो गयी. बस पड़ाव को संवारने की जब भी बात सामने आयी, हर किसी ने पल्ला झाड़ लिया. जिला परिषद से लेकर नगर निगम और अन्य संबंधित विभाग केवल राजस्व उगाही तक ही बस पड़ाव से संबंध रखते हैं. जबकि सच यह है कि प्रतिवर्ष स्थानीय प्रशासन को लाखों रुपये का राजस्व बस पड़ाव से प्राप्त होता है लेकिन एवज में सुविधाएं नदारद है.

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