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नहाय-खाय आज, कल व्रती रखेंगी निराहार व्रत

पुत्र की दीर्घायु के लिए होगी पूजा जिउतिया व्रत के दौरान महिलाएं 24 घंटे तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी 24 सितंबर की सुबह सात बजे के बाद होगा व्रत का पारण मड़ुआ रोटी,नोनी साग की है परंपरा पूर्णिया : शुक्रवार यानि कृष्ण पक्ष अष्टमी 23 सितंबर को महिलाएं वंश वृद्धि और संतान की लंबी आयु […]

पुत्र की दीर्घायु के लिए होगी पूजा

जिउतिया
व्रत के दौरान महिलाएं 24 घंटे तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी
24 सितंबर की सुबह सात बजे के बाद होगा व्रत का पारण
मड़ुआ रोटी,नोनी साग की है परंपरा
पूर्णिया : शुक्रवार यानि कृष्ण पक्ष अष्टमी 23 सितंबर को महिलाएं वंश वृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए जिउतिया व्रत रखेंगी. सनातन धर्म मानने वालों में इस व्रत का बड़ा महत्व है. व्रत के दौरान व्रती महिलाएं 24 घंटे तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी. व्रत का पारण 24 सितंबर की सुबह सात बजे के बाद होगा. ज्योतिषाचार्य उपेंद्र नाथ तिवारी के अनुसार गुरुवार को स्नान-ध्यान के बाद व्रती महिलाएं भोजन करेंगी. शुक्रवार को प्रात: 08 बज कर 58 मिनट के बाद अष्टमी में व्रती दिन भर भूखी रह कर व्रत करेंगी. इस दौरान व्रती निर्जला और निराहार रह कर कुश के जीमूतवाहन व मिट्टी-गोबर से सियारिन व चुल्होरिन की प्रतिमा बना कर जिउतिया पूजा करेंगी. फल-फूल और नवैद्य चढ़ाये जायेंगे. इसके बाद व्रती महिलाएं एक साथ एकत्रित होकर जिमूतवाहन की कथा सुनेंगी. शनिवार की सुबह आठ बजे के बाद पारण के बाद ही व्रत समाप्त हो जायेगा.
मछली व मड़ुआ खाने की है परंपरा : व्रत की मान्यताओं के अनुसार सप्तमी के दिन अर्थात महाव्रत से एक दिन पहले व्रती महिलाओं द्वारा मड़ुआ रोटी और नोनी के साग खाने की परंपरा रही है. ऐसा कहा जाता है कि मड़ुआ और नोनी साग उसर जमीन पर भी उगता है. आशय यह है कि उनके संतान की विपरित परिस्थिति में भी रक्षा होती रहेगी. जबकि मिथिलांचल के इलाके में मड़ुआ की रोटी के साथ मछली खाने की परंपरा रही है. जो शाकाहारी होते हैं वे मछली की जगह नोनी का साग खाते हैं.
पितर पूजा से होगी व्रत की शुरुआत
गुरुवार को नहाय-खाय के साथ इस पर्व की शुरुआत होगी. चूंकि इस बार जिउतिया पितृ पक्ष में पड़ रहा है, इसलिए व्रती महिलाएं स्नान करने के बाद पितरों की पूजा कर व्रत का संकल्प लेंगी. व्रती स्नान के बाद भोजन ग्रहण करेंगी और पितरों की पूजा करेंगी. पितरों को चूड़ा अर्पित करने की परंपरा रही है. कहीं-कहीं चूड़ा-दही दोनों अर्पित किया जाता है.
राजलक्षण का है योग
लंबे अरसे के बाद जिउतिया पर्व के मौके पर ग्रह-गोचर का खास संयोग राजलक्षण योग बन रहा है. ज्योतिषाचार्य उपेंद्र नाथ तिवारी के अनुसार सूर्य और वृहस्पति के कन्या राशि में रहने से राजलक्षण योग का निर्माण होता है. यह योग व्रती के साथ-साथ जिनके लिए व्रत किया जा रहा है, उनके लिए भी फलदायी माना जाता है. इसके अलावा शासन और सत्ता के लिए भी यह फलदायी माना जाता है.

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