21.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दशकों से जारी है अस्तित्व के लिए संघर्ष

पूर्णिया : असमंजस, मजबूरी और गुरबत के बीच कोसी के कछार पर जिंदा रहने की जीजीविषा लिए रूपौली प्रखंड के लाखों लोग दशकों से अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सावन-भादो में जब कोसी उच्छृंखल होकर अपनी सीमा को लांघती है तो इन इलाकों में विनाश की पटकथा लिखी जाती है. अब लोगों ने […]

पूर्णिया : असमंजस, मजबूरी और गुरबत के बीच कोसी के कछार पर जिंदा रहने की जीजीविषा लिए रूपौली प्रखंड के लाखों लोग दशकों से अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सावन-भादो में जब कोसी उच्छृंखल होकर अपनी सीमा को लांघती है तो इन इलाकों में विनाश की पटकथा लिखी जाती है. अब लोगों ने कोसी के संग जीने का तरीका भी सीख रखा है. इसी सलीके ने उन्हें चचरी बनाना सिखाया है तो आशियाने से हट कर बासा संस्कृति के बीच जीना भी सिखाया है. जाहिर है कि ऐसी ही व्यवस्था के बीच उग्रवाद और अपराध पनपता है, जिसका जीता-जागता उदाहरण धमदाहा अनुमंडल का यह इलाका है.

भवानीपुर से भाया मोहनपुर विजय लालगंज तक की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है. यह सड़क सरकारी फाइलों में पक्की सड़क के रूप में दर्ज है, जबकि स्याह सच यह है कि इस सड़क को भी पक्की कहलाने पर शर्म का एहसास होता है. इसी रास्ते होकर और फिर बीच से मुड़ कर जंगल टोला साधुपुर पहुंचा जा सकता है. यह इलाका भागलपुर की सीमा से सटा हुआ है. साधुपुर गांव पूर्णिया जिले में भी है और भागलपुर जिले का भी हिस्सा है. लेकिन कोसी के कटाव ने दोनों जिला को जोड़ने वाली सड़क को लील लिया है. लिहाजा ग्रामीणों ने अपने पैसे से इस पर चचरी का निर्माण कराया. लेकिन अब वह भी कोसी के वेग के सामने विलीन हो चुकी है. यह कहानी हर वर्ष की है, कोई नयी बात नहीं है. जंगल टोला में मध्य विद्यालय भी अवस्थित है. इस विद्यालय के चारों तरफ अभी ही पानी फैल चुका है. बस कुछ ही दिनों की बात है, जब विद्यालय में अघोषित रूप से बाढ़ की छुट्टी हो जायेगी और बच्चे खूब मस्ती करेंगे.
हीन्हों पानी, उन्हों पानी, बियाह के बाद अइलयो, आब मरबो तब एत्ते सय जैबो ‘
जंगल टोला गांव में धनिया देवी से मुलाकात हुई. उन्होंने कहा ‘ हीन्हों पानी, उन्हों पानी, बियाह के बाद अइलयो, आब मरबो तब एत्ते सय जैबो ‘ . गांव के ही कारू मंडल ने कहा ‘ जब हमारे बाप-दादा आये थे, यहां जंगल था, सुविधा के लिहाज से आज भी हम जंगल में हैं और नाम भी जंगल टोला ही है ‘ . जबकि कैलाश मंडल ने कहा ‘ पानी जब अधिक बढ़ जाता है तो घर के अंदर ही ‘ मचान ‘ बना लेते हैं, यह बाढ़ में आखिरी सहारा होता है ‘ . दरअसल पूरे प्रखंड क्षेत्र की पहचान ‘ चचरी ‘ और ‘ बासा ‘ है. यहां सड़कों का अस्तित्व नहीं है तो पुल-पुलिये की बात ही बेमानी है. लिहाजा लोग चचरी बना कर अपने गांव तक पहुंचते हैं. प्रखंड के अंझरी पंचायत की सांस चचरी से ही जुड़ी हुई है. गांव के मो मुमताज बताते हैं कि ‘ किसी भी रास्ते से गांव जाना हो तो कम से कम चार से पांच चचरी को पार करना हमारी मजबूरी है. कोसी के किनारे लालगंज अवस्थित है. बेदर्द कोसी ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया है. लालगंज के लोग चिंतित हैं, लेकिन भयभीत नहीं हैं. दरअसल कोसी किनारे रहने वाले लोगों ने बासा संस्कृति को बखूबी विकसित कर रखा है. बासा का तात्पर्य एक अलग प्रकार के आशियाने से है. किसी उंची जगह पर फूस की घर बनी होती है, जहां लोग बरसात के समय में अपने मवेशी को रखते हैं और अनाज का भंडारण करते हैं. जरूरत हुई तो परिवार के सदस्य भी यहां पनाह पाते हैं. इस प्रकार यहां पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें