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बिहार कोिचंग रेगुलेशन एक्ट. पूरे हुए छह साल, पंजीयन का पड़ा है अकाल

छात्रों का हो रहा है आर्थिक दोहन कोचिंग संस्थानों की बढ़ती मनमानी पर नकेल कसने के लिए 30 मार्च 2010 को बिहार सरकार ने बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट पारित किया, लेकिन इसे प्रशासनिक नाकामी कहें या कुछ और जिले में इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है. पूर्णिया : शहर हो या ग्रामीण […]

छात्रों का हो रहा है आर्थिक दोहन

कोचिंग संस्थानों की बढ़ती मनमानी पर नकेल कसने के लिए 30 मार्च 2010 को बिहार सरकार ने बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट पारित किया, लेकिन इसे प्रशासनिक नाकामी कहें या कुछ और जिले में इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है.
पूर्णिया : शहर हो या ग्रामीण इलाका जिले की हर गली व मुहल्ले में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए हैं. दिन-प्रतिदिन कोचिंग संस्थानों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. साथ ही छात्र-छात्राओं का दोहन और शोषण भी बढ़ रहा है.
दरअसल कोचिंग संस्थान पूरी तरह बेलगाम है और सरकार के लाख कवायद के बावजूद इन पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है. हालांकि सरकार के स्तर पर भी कवायद के नाम पर खानापूर्ति ही हुई है.
कोचिंग संस्थानों की बढ़ती मनमानी पर नकेल कसने के लिए 30 मार्च 2010 को बिहार सरकार ने बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट पारित किया, लेकिन इसे प्रशासनिक नाकामी कहें या कुछ और जिले में इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका. वैसे एक हकीकत यह भी है कि कानून का अनुपालन कराने में जिला प्रशासन की कभी दिलचस्पी नहीं रही है. इस एक्ट को लागू करने वाला बिहार उस वक्त देश का इकलौता प्रदेश था.
2012-13 में हुई थी प्रशासनिक पहल
बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट 2010 का अनुपालन कराने के लिए एकमात्र पहल वर्ष 2012-13 में की गयी थी. हालांकि उस पहल का भी कोई नतीजा नहीं निकल सका था. तत्कालीन डीएम मनीष कुमार वर्मा ने कोचिंग संस्थानों की मनमानी को गंभीरता से लिया था. श्री वर्मा ने इसके लिए निर्धारित प्रारूप के अनुसार कमेटी का भी गठन किया. इसमें डीएम इसके अध्यक्ष बने. वही पुलिस अधीक्षक को कमेटी का उपाध्यक्ष,
जिला शिक्षा पदाधिकारी को सचिव व संबद्ध कॉलेज सदस्य के रूप में महिला कॉलेज के प्राचार्य को कमेटी का सदस्य बनाया गया. डीएम के आदेश पर कुछ कोचिंग संस्थानों में छापेमारी भी की गयी थी. हालांकि तब कोचिंग संचालकों ने आरोप लगाया था कि यह छापेमारी उन्हें डराने-धमकाने के लिए कराया गया था, लेकिन चाहे जो भी हो अभियान के कारण 138 कोचिंग संचालकों ने तत्काल ही पंजीयन के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में आवेदन जमा किया था.
कोचिंग संचालकों की भी नहीं है दिलचस्पी
जानकार बताते हैं कि कोचिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत आने के लिए कोचिंग संचालकों में भी दिलचस्पी नहीं है. प्रशासन मौन रहे तो कोई भी कोचिंग पंजीयन के लिए आवेदन तक नहीं करेगा. इसकी मूल वजह यह है कि कोचिंग रेगुलेशन एक्ट के कई ऐसे सुविधाओं के प्रावधान भी हैं, जो कोचिंग संस्थानों के लिए उपलब्ध कराना मुश्किल है. एक्ट में कोचिंग संस्थाओं को मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित करने को कहा गया है. प्रोसपेक्टस में कोचिंग में उपलब्ध कोर्स, फीस व शिक्षकों की योग्यता तथा अनुभव आदि की जानकारी भी उपलब्ध कराना अनिवार्य है. यह पूरी प्रक्रिया खर्चीले हैं तो दूसरी ओर सारी सूचना सार्वजनिक हो जायेगी, जो धंधे के लिए माकूल नहीं माना जाता है.
दो वर्षों से नहीं हुई बैठक
कोचिंग रेगुलेशन एक्ट को लेकर वर्ष 2012-13 में तत्कालीन डीएम मनीष कुमार वर्मा द्वारा गठित कमेटी का गठन किया गया. कमेटी का कार्य एक्ट का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए पहल करना था. इसके तहत नियमित अंतराल पर कमेटी की बैठक भी आयोजित होनी थी. लेकिन श्री वर्मा के स्थानांतरण के बाद सब कुछ एक बार फिर से सामान्य हो गया. गत दो वर्षों में कमेटी की एक भी बैठक नहीं हुई है. नतीजा है कि एक्ट के अनुपालन को लेकर भी कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है.
कोचिंग एक्ट के कुछ खास प्रावधान
सभी कोचिंग को राज्य सरकार से पंजीयन कराना होगा, जो तीन साल के लिए होगा. वैसे कोचिंग संस्थान या शिक्षक जिनके यहां 10 या उससे कम विद्यार्थी हैं, कोचिंग एक्ट में नहीं आयेंगे. अधिक विद्यार्थी होने पर पंजीयन अनिवार्य है. कोचिंग में पेयजल तथा महिला व पुरुष के लिए अलग-अलग शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा होनी चाहिए.
अब तक नहीं हो सकी आवेदनों की जांच
जिला शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2012-13 में प्रशासन द्वारा चलाये गये छापेमारी अभियान के बाद कुल 138 कोचिंग संचालकों ने आवेदन जमा कराया. आवेदन के साथ निर्धारित 05 हजार रुपये का डीडी भी कोचिंग संचालकों द्वारा जमा कराया गया. लेकिन जिला शिक्षा पदाधिकारी के खाता में 131 डीडी की राशि ही जमा हो सकी. 07 डीडी देर से जमा होने के कारण कैश में नहीं तब्दील हो सका. हालांकि यह डीडी किन संस्थानों के थे, यह भी विभाग को पता नहीं है. इसके अलावा बीते तीन सालों में आवेदनों की जांच भी पूरी नहीं करायी जा सकी है. जो आवेदनों के प्रति विभागीय उपेक्षा को बंया करने के लिए काफी है.
न प्रमाणपत्र दिया, न राशि लौटायी
वर्ष 2012-13 में प्रशासन ने पहल की तो कोचिंग संचालक भी कानून के दायरे में आने के लिए तैयार हो गये. संचालकों द्वारा आवेदन भी जमाया कराया गया और निर्धारित 05 हजार रुपये का शुल्क भी जमा किया गया. बावजूद कोचिंग को न तो वैध होने का प्रमाणपत्र मिला है और ऐसे संस्थान त्रिशंकु बन कर रह गये. खुद विभाग भी इसको लेकर आज तक असमंजस की स्थिति में है. शायद यही वजह है कि कोचिंग संस्थानों को उनकी राशि भी नहीं लौटायी गयी है. हालांकि गौर करने वाली बात यह भी है कि प्रमाणपत्र लेने में कोचिंग संस्थानों की भी कोई दिलचस्पी नहीं है. यही कारण है कि आवेदनों की वर्तमान स्थिति का पता लगाने के लिए भी कोचिंग संचालक कभी दोबारा लौट कर जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय नहीं गये.
बिना पंजीयन के ही संचालित हैं कोचिंग संस्थान
जिले में पांच हजार से अधिक हैं कोचिंग संस्थान
वर्ष 2012-13 में प्रशासन द्वारा बरती गयी थी सख्ती
2012-13 में 138 कोचिंग संचालकों ने किया था आवेदन
आज तक आवेदन पर नहीं हुआ विचार
एक्ट के तहत बनी कमेटी, डीएम अध्यक्ष, एसपी उपाध्यक्ष
आज तक नहीं हुई कमेटी की बैठक
जानकारों की मानें तो जिले में कोचिंग संस्थानों की संख्या हजारों में है. गली का नुक्कङ हो या कोई चौक-चौराहा, किसी भी दुकान से अधिक शिक्षकों की दुकानदारी चलती है. शिक्षा दान के नाम पर बच्चों के अभिभावकों से हजारों रुपये वसूल किये जाते हैं. लेकिन यह संस्थान अब तक प्रशासन के नियंत्रण से बाहर हैं.
आंकड़ों के अनुसार जिला मुख्यालय में ही 700 से अधिक कोचिंग संस्थान संचालित हैं. जिले में यह आंकड़ा 05 हजार के पार है. हाल के पांच-सात वर्षों में कोचिंग संस्थानों के विस्तार में काफी तेजी है, जो अभी भी बरकार है. विडंबना यह है कि कोचिंग संस्थान महज कमाने का एक जरिया मात्र रह गया है और बिना किसी नियंत्रण के यहां अराजकता की स्थिति है.

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