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दशकों से ग्रामीणों को पक्की सड़क का इंतजार

दशकों से ग्रामीणों को पक्की सड़क का इंतजार बैसा. जिले का बायसी अनुमंडल आज भी विकास के निचले पायदान पर खड़ा है. खासकर बैसा प्रखंड की बात करें तो आजादी के 68 साल बाद भी विकास की रोशनी पूरी तरह यहां नहीं पहुंच पायी है. प्रखंड के मंझौक पंचायत का कोल्हा ऐसा गांव है, जहां […]

दशकों से ग्रामीणों को पक्की सड़क का इंतजार बैसा. जिले का बायसी अनुमंडल आज भी विकास के निचले पायदान पर खड़ा है. खासकर बैसा प्रखंड की बात करें तो आजादी के 68 साल बाद भी विकास की रोशनी पूरी तरह यहां नहीं पहुंच पायी है. प्रखंड के मंझौक पंचायत का कोल्हा ऐसा गांव है, जहां आज भी रोजमर्रे की जिंदगी पगडंडी से जुड़ी हुई है. एक अदद सड़क का यहां के लोगों को वर्षों से इंतजार है. सड़क के इंतजार में अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. नतीजा यह है कि वर्ष के लगभग 06 माह तक स्थानीय लोग टापू के बीच जैसा जिंदगी बसर करते हैं और इन महीने में कच्ची सड़क का अस्तित्व ही लगभग समाप्त हो जाता है. लिहाजा बरसात-दर-बरसात अब यह कच्ची सड़क भी जर्जर हो चुका है. गांव के मो आजम बताते हैं कि जर्जर कच्ची सड़क का सबसे अधिक खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है. किसान अनाज तो उपजाते हैं, लेकिन किसानों को उनका वाजिब दाम नहीं मिल पाता है. क्योंकि कच्ची सड़क की वजह से व्यवसायी गांव तक आने से परहेज करते हैं. इसलिए मजबूरी में किसान अपने अनाज को औने-पौने दाम में बिचौलिये के हाथ बेच देते हैं. वहीं मो शमीम आलम बताते हैं कि कच्ची सड़क के कारण रोगियों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र वाहन के बजाय खटिया पर ले जाना पड़ता है. वहीं रूकसेद आलम बताते हैं कि बरसात के मौसम में तो सड़क की हालत और भी बदतर हो जाती है. सड़क पर कीचड़ ही कीचड़ नजर आने लगती है लोग सवारी के बजाय पैदल ही चलना पसंद करते हैं. गांव वाले बताते हैं कि चुनावी मौसम में वोट मांगने हर कोई आता है परंतु चुनाव खत्म होने के बाद गांव वालों का खैरियत पूछने वाला भी कोई नहीं रहता है. ग्रामीणों ने समस्या के बाबत कई बार विधायक और सांसद से गुहार लगायी, आश्वासन भी मिला, लेकिन आश्वासन अभी तक हकीकत में तब्दील नहीं हो सका है. फोटो:-17 पूर्णिया 02परिचय:- जर्जर अवस्था में सड़क

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