मत्स्य पालन से निकल रही है आर्थिक समृद्धि की राह खास बातें-वर्तमान में जिले के विभिन्न प्रखंडों में लगभग एक हजार हैक्टेयर से भी अधिक जमीन में हो रहा मछली उत्पादन-विभाग के अनुसार फिलहाल औसतन दो हजार टन से अधिक मछली का हो रहा उत्पादन-जिले के एक हजार हैक्टेयर भूमि में प्रति सीजन हाे रहा औसतन दो टन मछली प्रति हैक्टेयर उत्पादन -आंध्र प्रदेश में प्रति हैक्टेयर मछली उत्पादन दर पंद्रह टन, जबकि बिहार में प्रति हैक्टेयर मात्र दो से तीन टन ही हो रहा मछली उत्पादन -बिहार में मछली पालक किसान बिना वाटर ट्रीटमेंट के ही मछली के बीजों को पानी में छोड़ देते हैं, जिससे मछली का रुक जाता है विकास पूर्णिया. भौगोलिक दृष्टि से पूर्णिया में मछली पालन की अपार संभावनाएं हैं. इसलिए स्थानीय किसान अब मछली पालन की ओर आकृष्ट हो रहे हैं. वर्तमान में जिले के विभिन्न प्रखंडों में लगभग एक हजार हैक्टेयर से भी अधिक जमीन में मछली उत्पादन हो रहा है. विभाग के अनुसार फिलहाल औसतन दो हजार टन से अधिक मछली का उत्पादन हो रहा है. कम लागत में अच्छी आमदनी देख कर किसान मछली पालन की ओर आकर्षित हो रहे हैं. कम समय व लागत में अच्छी कमाईहाल के वर्षों में जिले के किसानो का मछली पालन में रुचि बढ़ी है. जिले में मछली पालन का आकार बढ़ कर लगभग एक हजार हैक्टेयर हो गया है. इसमें प्रति सीजन औसतन दो टन मछली प्रति हैक्टेयर उत्पादन हो रहा है. किसान महज छह से नौ माह के बीच हजारों की लागत में लाखों की कमाई ले रहे हैं. कम समय में अच्छा लाभ देखकर किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं. यही वजह है कि हाल के दिनों में बाजारों में आंध्रप्रदेश से आने वाली मछलियों में कमी आयी है और तालाब की मछलियां अधिक नजर आ रही है. यहां है कम उत्पादन दरविभाग के अनुसार आंध्र प्रदेश में प्रति हैक्टेयर मछली उत्पादन दर पंद्रह टन है. जबकि बिहार में प्रति हैक्टेयर मात्र दो से तीन टन ही उत्पादन हो पा रहा है. विभाग उत्पादन बढ़ाने को लेकर बेहद चिंतित है. विभाग का दावा है कि यहां के मछली पालक अपनी लापरवाही के कारण कम उत्पादन ले रहे हैं. यदि यहां के किसान विभाग के सुझाव अनुरुप मछली पालन करें तो कम से कम आठ से दस टन प्रति हैक्टेयर मछली का उत्पादन आसानी से प्राप्त हो सकता है. इसके लिए विभाग द्वारा समय-समय पर मत्स्य पालकों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. वैज्ञानिक पद्धति होगी लाभदायकयहां के मछली पालक किसान बिना वाटर ट्रीटमेंट के ही मछली के बीजों को पानी में छोड़ देते हैं, जिससे मछली का विकास रुक जाता है. साथ ही समय पर मछलियों के लिए उचित भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है. इसका सीधा असर मछली उत्पादन पर पड़ता है. राम भरोसे चलने वाले मछली पालन से किसानों को ही नुकसान उठाना पड़ता है. विभाग का दावा है कि यहां के किसान विभाग के बताये निर्देशों के आलोक में मछली का पालन करे तो वे तो समृद्ध होंगे ही साथ ही पूर्णिया भी मछली के हब के रुप में विकसित होगा. इन मछलियों का पालन है लाभकारी विभाग के अनुसार पूर्णिया के जलवायु के अनुसार रेहु,कतला,पनेसियस,सिल्वर कप आदि मछलियों के पालन हेतु अनुकूल है. इन सभी प्रजातियों के मछलियों की खासियत यह है कि कम समय में अच्छी वृद्धि होती है. इन मछलियों के बीज भी सस्ते एवं सहजता से उपलब्ध हो जाते हैं. मछली पालक किसान विधि पूर्वक मछली पालन करे तो लाखों की आमदनी प्रति सीजन मिलेगी. टिप्पणी मछली पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मत्स्य पालन विभाग समय समय पर मछली पालक किसानों को प्रशिक्षित करती है. इसके बावजूद किसान लापरवाही से उचित लाभ से वंचित रह जाते हैं. अनिल कुमार,जिला मत्स्य पालन पदाधिकारी,पूर्णियाफोटो:15 पूर्णिया 5परिचय:मछली
BREAKING NEWS
मत्स्य पालन से निकल रही है आर्थिक समृद्धि की राह
मत्स्य पालन से निकल रही है आर्थिक समृद्धि की राह खास बातें-वर्तमान में जिले के विभिन्न प्रखंडों में लगभग एक हजार हैक्टेयर से भी अधिक जमीन में हो रहा मछली उत्पादन-विभाग के अनुसार फिलहाल औसतन दो हजार टन से अधिक मछली का हो रहा उत्पादन-जिले के एक हजार हैक्टेयर भूमि में प्रति सीजन हाे रहा […]
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement