बंद है चीनी मिल, किसानों के दिन हुए बेरंग -वर्ष 1969 में हुई थी चीनी मिल की स्थापना -वर्ष 1997 में अंतिम रूप से मिल में लटक गया ताला -चीनी मिल बंद होने के बाद रोजगार के लिए पलायन बढ़ा-चीनी मिल के जीर्णोद्धार के लिए नहीं हुआ सकारात्मक पहल प्रतिनिधि, पूर्णिया’हमको उनसे है वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते थे वफा क्या है’ कुछ ऐसे ही हालात जिले के बनमनखी अनुमंडल क्षेत्र के किसानों की है जो आज भी बंद पड़े बनमनखी चीनी मिल की ओर उम्मीद भरी टकटकी लगाये हुए हैं कि कुछ चमत्कार होगा और उनके अच्छे दिन आ जायेंगे. लेकिन चीनी मिल को बंद हुए 18 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं और अच्छे दिन सपने तक सीमित रह गये. इस बीच केंद्र से लेकर राज्य तक में निजाम बदले, हुक्मरान बदले लेकिन नहीं बदली तो चीनी मिल की सूरत और स्थानीय किसानों की तकदीर. जबसे चीनी मिल बंद हुए, किसानों की मुश्किलें बढ़ गयी और रोजगार के लिए पलायन का दौर चला वह बदस्तूर जारी है. तब इलाके में आयी थी गन्ना क्रांति वर्ष 1969 इलाके के किसानों के लिए सुनहरे सपने और सुनहरी उम्मीदें लेकर आया था. इसी वर्ष बनमनखी-धमदाहा सड़क मार्ग में 119 एकड़ क्षेत्रफल में चीनी मिल की स्थापना हुई थी. यहां वर्ष 1970 से चीनी का उत्पादन आरंभ हो गया. चीनी मिल का आगाज जब हुआ तो इलाके में गन्ना क्रांति आ गयी थी. जिले के किसान के साथ-साथ मधेपुरा और अररिया जिले के किसान भी परंपरागत फसलों को छोड़ गन्ना की खेती से जुड़ गये थे. गन्ना की खेती के रास्ते बदहाल किसानों के घर में आर्थिक समृद्धि आयी और देखते ही देखते इलाके के किसानों के दिन बहुरंगे हो गये. ना केवल किसानों को लाभ हुआ बल्कि बड़ी संख्या में लोगों को स्थायी और अस्थायी रोजगार भी प्राप्त हुआ. यहां लगभग 250 स्थायी कर्मचारी नियुक्त हुए और लगभग 600 अस्थायी कर्मचारी को यहां रोजगार प्राप्त हुआ. कुल मिला कर चीनी मिल जिले के पश्चिमी इलाके के लिए वरदान साबित हुआ. मशीन पर ब्रेक के साथ बदल गये हालात बनमनखी चीनी मिल की पेराई क्षमता 10 हजार क्विंटल प्रति 24 घंटा थी. जबकि 24 घंटे में 1500 बोरा चीनी का उत्पादन होता था. लेकिन वर्ष 1995 में चीनी मिल के बुरे दिन की शुरुआत हुई. कल तक मुनाफे में चल रहा चीनी मिल संचालकों एवं कर्मियों की बदनीयती और किसानों को गन्ना की कीमत का भुगतान नहीं होने की वजह से बंदी के कगार पर पहुंच गया. अंतत: सरकारी स्तर पर 24 मार्च 1997 को इसको बंद करने की घोषणा कर दी गयी. मशीन पर ब्रेक के साथ ही चीनी मिल के कर्मियों और स्थानीय किसानों के दुर्दिन की शुरुआत हो गयी. किसान तो जूट और केला में अपना भविष्य तलाशने की कवायद में जुट गये लेकिन इसके कर्मी वर्षों तक चीनी मिल के पुनर्जीवित होने का इंतजार करते रहे. हालांकि ऐसे लोगों को अंतत: निराशा ही मिली और चीनी मिल अब अतीत का मिल बन कर रह गया है. जानकारों की माने तो वेतन के अभाव में इसके कर्मी जगत बहादुर, जय नारायण झा, रसिक लाल मंडल और राम नाथ राम जैसे दर्जनों लोग थे जिनकी असामयिक मौत हो गयी. राजनेता पिलाते रहे आश्वासन की चाशनी चीनी मिल से जुड़ा स्याह पक्ष यह है कि चीनी मिल को लेकर आज तक राजनीति होती रही है. जिन राजनेताओं को जब वोट की जरूरत पड़ी, चीनी मिल का राग अलापा और फिर चुनाव के बाद पटना और दिल्ली की गलियों में जनता को दिये गये आश्वासन को भुला दिया. लोकसभा में पूर्णिया का प्रतिनिधित्व राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, जयकृष्ण मंडल, उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह और अब संतोष कुशवाहा कर रहे हैं. लेकिन राजनेताओं द्वारा पिलायी गयी आश्वासन की चाशनी चीनी मिल की हकीकत में तब्दील नहीं हो सका. बनमनखी विधानसभा का प्रतिनिधित्व वर्ष 2000 से भाजपा विधायक कृष्ण कुमार ऋषि कर रहे हैं. खास बात यह है कि श्री ऋषि इसी मिट्टी के पले-बढ़े हैं. लगभग 8 वर्षों तक नीतीश कुमार के साथ सरकार के अंग भी बने रहे, लेकिन चीनी मिल के जीणार्ेद्धार के लिए दो कदम भी नहीं चल सके. स्पष्ट है कि किसानों की बेहतरी इन राजनेताओं के एजेंडे का हिस्सा नहीं बन सका. चीनी मिल लगा सकता है पलायन पर रोक स्थानीय लोगों की माने तो जिस जमाने में चीनी मिल संचालित था, उस समय इस इलाके में रोजगार के लिए पलायन कोई समस्या नहीं थी. पलायन की शुरुआत वर्ष 2000 के बाद तेजी से बढ़ी है. हालांकि चीनी मिल अब अंतिम सांसें गिन रहा है, इसके अधिकांश पार्ट-पुर्जे जर्जर हो चुके हैं और काफी पार्ट-पुर्जे की चोरी भी हो चुकी है. बावजूद लोगों का मानना है कि अगर चीनी मिल का जीर्णोद्धार हो जाये तो किसान के बीच आर्थिक खुशहाली आयेगी और गन्ने की खेती से रोजगार के लिए पलायन पर अंकुश लग सकेगा. आज भी इस इलाके की भूमि गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. देखना दिलचस्प होगा कि किसानों की उम्मीदें पूरी होती है या फिर चीनी मिल अतीत का हिस्सा बन कर रह जाता है. फोटो: 23 पूर्णिया 14परिचय: बंद पड़ा बनमनखी चीनी मिल.
बंद है चीनी मिल, किसानों के दिन हुए बेरंग
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