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इनसानियत व उसूलों के लिए कुरबानी का प्रतीक है मुहर्रम

इनसानियत व उसूलों के लिए कुरबानी का प्रतीक है मुहर्रम पूर्णिया : मुहर्रम को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. आज मुहर्रम की दसवीं को हुसैन के चाहने वालों की भीड़ जुलूस के शक्ल में अलम के निशान के साथ करबला तक तक जायेगी. वहीं जंग-ए-मैदान में हुसैन का घोड़ा दुलदुल भी सिटी […]

इनसानियत व उसूलों के लिए कुरबानी का प्रतीक है मुहर्रम

पूर्णिया : मुहर्रम को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. आज मुहर्रम की दसवीं को हुसैन के चाहने वालों की भीड़ जुलूस के शक्ल में अलम के निशान के साथ करबला तक तक जायेगी. वहीं जंग-ए-मैदान में हुसैन का घोड़ा दुलदुल भी सिटी से निकल कर मातमी जुलूस के साथ करबला पहुंचेगा.

जिला प्रशासन की ओर से मुहर्रम को लेकर विभिन्न स्थानों पर पुलिस तथा दंडाधिकारी की नियुक्ति की गयी है.दिखी गंगा जमुनी तहजीबमुहर्रम के आठवीं को पूर्णिया सिटी में गंगा-जमुनी तहबीज की जीवंत मिसाल देखने को मिली. पूर्णिया सिटी के बड़े इमामबाड़ा से दुलदुल घोड़े के साथ निकला मातमी जुलूस सराय दुर्गा मंदिर के पास ठहर गया.

जहां दुर्गा पूजा समिति के सदस्यों द्वारा शीतल पेयजल और शरबत पिला कर मुहर्रम के मातमी जुलूस में शामिल लोगों का स्वागत किया गया. इस मौके पर मौजूद मौलाना रजी इमाम ने कहा कि मुहर्रम सिर्फ धार्मिक त्योहार नहीं मुहर्रम समाज में सत्य और सौहार्द का संदेश देने का जरिया भी है. जिस तरह विजयादशमी को अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है, ठीक उसी तरह मुहर्रम भी इनसानियत की जंग में इमाम हुसैन की शहादत,

उनकी इनसानी उसूलों की कुरबानी के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है. यह दुनिया को उसूल और इनसानियत का पैगाम देता है.इनसानियत और उसूलों के पैरोकार थे इमाम हुसैन मुहर्रम के आठवीं पर पूर्णिया सिटी के बड़ा इमामवाड़ा में आयोजित मजलिस का. इस मौके पर बड़ी संख्या में उपस्थित इनसानियत के पैरोकार इमाम हुसैन के चाहने वाले मौजूद थे. उपस्थित लोगों ने इमाम हुसैन को याद कर मातम मनाया इसके बाद ईरान से आये इमाम रजी साहब ने कहा कि जुल्म के खिलाफ इनसानियत के लिए करबला का जंग और इमाम हुसैन की शहादत पूरी दुनिया में इनसानियत और उसूलों की मिसाल है.

मौलाना रजी के मुतल्लिक मौजूद मुल्क ईरान के कर्बला में घटी यह घटना पूरी दुनिया के लिए सत्य और इनसानियत के लिए जान न्योछावर करने का मिसाल है.कहा कि महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू, डा राधा कृष्णन, अंटोनी बारा, स्वामी शंकराचार्य, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों भी इमाम हुसैन की कुरबानी को इनसानियत और इसलाम के लिए सत्य का प्रतीक बताया है.इसलाम में आतंकवाद को जगह नहीं : मौलाना रजीईरान के रहनुमा मौलाना रजी इमाम ने कहा कि इनसानियत के लिए इमाम हुसैन की शहादत 1400 साल बाद भी पूरी दुनिया में इसलाम को इनसानियत से जोड़ता है.

उन्होंने कहा इसलाम में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है. हुसैन को मानने वाले आतंकवाद को उसी 1400 वर्ष पुराने जालिम बादशाह याजीद की तरह मानते हैं, जिसके आतंक के खिलाफ हमारे हुसैन ने कर्बला में लड़ते हुए सत्य और इनसानियत के रास्ते पर खुद को कुरबान कर दिया. मुहर्रम पर फ्लैश बैकइसलाम के जानकारों एवं इसलामिक ग्रंथों के मुतल्लिक हिजरी संवत के 60 हिजरी के दौर में तत्कालीन ईरान मे बेहद जालिम बादशाह याजीद इसलाम धर्म का खलीफा बना था. खलीफा बनने के साथ ही उसके अत्याचार, जुल्म बढ़ने लगे.

उसी दौरान उसने हजरत मुहम्मल (सल्ल) के नवासे इमाम हुसैन से उसने अपनी सरकार के लिए समर्थन मांगा, तो सत्य अहिंसा और इनसानियत के राह पर चलने वाले इमाम हुसैन ने अत्याचारी याजीद के इसलाम और उसके समर्थन को ठुकरा दिया. जानकार बताते हैं कि तब याजीद ने इमाम हुसैन के कत्ल का फरमान जारी किया.इसकी जानकारी मिलते ही इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कुफा की तरफ निकल पड़े. लेकिन जालिम याजीद को यह गवारा न था और हुसैन को उसने रोक लिया.

तब इमाम हुसैन ने कहा था कि उन्हें पूरब के मुल्क हिंदुस्तान जाने दिया जाये, ताकि शांति और अमन कायम रहे. लेकिन याजीद को यह स्वीकार नहीं था और कर्बला की जंग में शांति अमन और इनसानियत के लिए लड़ते हुए इमाम हुसैन शहीद हो गये.———————हजरत अब्बास की याद में निकला दुल-दुल व अलम का जुलूस पूर्णिया. मुहर्रम की आठवीं को पूर्णिया सिटी के बड़ा इमामवाड़ा से इमाम हुसैन के जंगे कर्बला के शाथी दुल-दुल घोड़ा एवं आलमी जुलूस निकाला गया.

मुहर्रम के आठवीं पर बड़ा इमामवाड़ा से निकले जुलूस में ईरान के रहनुमा सैयद मौलाना रजी साहब, सैयद अली हासिम बड़ा गांव जौनपुर यूपी सैयद मो असगर रिजवी के साथ सैयद शाहिद रजा, सैयद नासिर रजा, अतहर अली जैदी, मिर्जा कौशर अली,नफीस जाफरी, सैयद ताजदार अब्बास सहित सैकड़ों हुसैन के रास्तों पर चलने वाले एवं उनके शहादत पर आंसू बहाने साले शामिल थे.

जुलूस के दौरान सिया समुदाय के लोग नौहा और मातम मनाते हुए इमामवाड़ा से सैयदवाड़ा पहुंचे और जुलूस बड़ा इमामवाड़ा पहुंचे. इस मौके पर ईरान के रहनुमा मौलाना रजी साहब ने कहा कि हजरत अब्बास इमाम हुसैन के फौज के सिपहसलार थे. उनके नेतृत्व में छह माह से लेकर निन्यानवे वर्ष तक के सैनिकों ने कर्बला के जंग में लंबी लड़ाई लड़ी और अपनी शहादत दी थी.

आज मुहर्रम की आठवीं को इसलाम को मानने वाले सभी घरों में हाजिरी होती है. इसलाम में ऐसा मानना है कि मुहर्रम के आठवीं को अलम के पास हाजिरी (नियाज) के समय मांगी गयी मन्नतें पुरी होती है.फोटो: 23 पूर्णिया 1-अलम के जुलूस में शामिल लोग 2-अखाड़े में करतब दिखाते लोग 3-दुलदुल घोड़े के साथ निकला मातमी जुलूस 4-मौलाना रजी इमाम

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