लीड—-चुनावी मैदान में प्रत्याशियों के छूट रहे हैं पसीने खास बातें-आश्विन की दोपहरी में भी जेठ की गरमी सा हो रहा एहसास-प्रत्याशी जब तक लग्जरी वाहनों में होते हैं,
सब ठीक गाड़ी से उतरते ही हाल बेहाल-जनता जनार्दन के बीच जाने के लिए प्रत्याशियों को जाना पड़ता है पैदल ही क्षेत्र में-जितने दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं,
उससे तीन गुणा बागी प्रत्याशी अखाड़े में ठोंक रहे हैं ताल -दलीय प्रत्याशियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं बागी प्रत्याशी-एनडीए हो या महागंठबंधन या फिर तीसरा मोरचा, सबको है भितरघातियों से डर
पूर्णिया : हिंदी व्याकरण में मुहावरों की जो फेहरिस्त है, उसमें ‘ पसीने बहाना ‘ भी शामिल है. स्कूल में गुरुजी ने जो इसका शाब्दिक अर्थ बताया था, उसका मतलब था मेहनत करना. अब चुनावी अखाड़ा है, तो मेहनत भी जायज है. कोई नामांकन दाखिल करने के बाद तो कोई नामांकन से पहले ही गांव और शहर की गलियों की खाक छान रहा है.
ऐसे में प्रत्याशियों के पसीने छूट रहे हैं. लेकिन पसीने बहने के कई कारण सामने आ रहे हैं. स्पष्ट है कि इस पसीने के अलग निहितार्थ भी हैं. निगोरी धूप बनी है आफतआश्विन महीने में जेठ की गरमी जैसा एहसास प्रत्याशियों को हो रहा है. हालांकि प्रतिकूल मौसम को अनुकूल बनाने के लिए प्रत्याशी लग्जरी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
लेकिन राहत तब तक ही मिलती है, जब तक वाहन की सवारी होती है. जनता जनार्दन के दर्शन के लिए पैदल होना पड़ता है और पसीने छूटते रहते हैं. निगोरी धूप प्रत्याशियों के लिए आफत साबित हो रहा है. मौसम के तेवर तल्ख बने हुए हैं. लेकिन चुनाव का समय है तो मौसम चाहे जैसी भी हो,
प्रचार करना मजबूरी है. बहरहाल तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से हमेशा ऊपर ही रह रहा है. शुक्रवार को अधिकतम तापमान 33 डिग्री और न्यूनतम तापमान 27 डिग्री, शनिवार को अधिकतम 33 डिग्री और न्यूनतम 25 डिग्री, रविवार को अधिकतम 31 डिग्री और न्यूनतम 22 डिग्री दर्ज किया गया.
सोमवार को भी अधिकतम तापमान 31 डिग्री तथा न्यूनतम तापमान 22 डिग्री रहने की संभावना है. जाहिर है आने वाले दिनों में भी प्रत्याशियों के पसीने छूटते रहेंगे. बागियों की वजह से छूट रहे पसीनेचुनाव के मैदान में उम्मीदवारों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी हुई नजर आ रही है. जितने दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं,
उससे तिगुणा बागी प्रत्याशी अखाड़े में ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में दलीय प्रत्याशी को बागियों की वजह से पसीने छूट रहे हैं. बागी प्रत्याशी हर दल के लिए बहरहाल सिरदर्द बना हुआ है.
दलीय प्रत्याशी बातचीत में बागियों को खारिज करने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर उठ रहे भाव और चेहरे पर मौजूद तनाव को बखूबी देखा जा सकता है. वही दूसरी ओर बागी प्रत्याशी भी इस वजह से अधिक पसीने बहा रहे हैं, जिससे कि भविष्य में भी उनका दावा बरकार रहे. सीधी सी बात है, यह राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई है. भितरघात की आशंका से हो रहे पसीना-पसीनाबात भीतरघात की चली तो एक और मुहावरा सामने आया ‘ घर का भेदी, लंका ढ़ाये ‘.
एनडीए हो या महा गंठबंधन या फिर तीसरा मोरचा के उम्मीदवार, बागियों से अधिक उन्हें चिंता घर के भेदी की सता रही है. टिकट से वंचित लेकिन आज भी दल में बरकरार ऐसे भीतरघाती कोई भी गुल खिला सकते हैं.
मंशा स्पष्ट है कि सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे. इन भीतरघातियों को दलीय उम्मीदवार की हार में ही अपनी भलाई और अपना कैरियर नजर आता है. मजे की बात यह है कि गंठबंधन के स्तर पर भी ‘ भीतरघतिया ‘ मौजूद है. ऐसे भीतरघतिया की पहचान और उससे निबटने में प्रत्याशी पसीना-पसीना हो रहे हैं.
समस्या यह है कि दूसरे दल के भीतरघाती पर दबाव और अनुशासन का चाबुक भी नहीं चलाया जा सकता है. एक प्रत्याशी ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा ‘ सब कुछ जानते हुए भी ऐसे भीतरघाती से चिकनी-चुपड़ी बातें करना मजबूरी है. शायद यही वक्त का भी तकाजा है ‘. रूठने-मनाने में छूट रहे पसीनेप्रत्याशियों की हालत दुल्हे के पिता की तरह है, जो कुछ ही देर बाद बेटे की बरात लेकर प्रस्थान करने वाला है.
अक्सर ऐसा होता है कि बरात जाने से पहले दुल्हे का करीबी रिश्तेदार मसलन बहनोई, मामा, फूफा या फिर चचेरा भाई रूठ जाता है. दुल्हा टुकुर-टुकुर देखता रहता है और पिता के पसीने छूटते रहते हैं. अंतत: कुछ लोग रूठे ही रह जाते हैं और कुछ लोग मना लिये जाते हैं. राजनीतिक दल हो या स्वतंत्र उम्मीदवार का खेमा,
अभी से ही रूठने और मनाने का दौर आरंभ हो गया है. ऐसे में गरमी के इस मौसम में प्रत्याशियों के कुछ अधिक ही पसीने छूट रहे हैं. जनता के सवाल छुड़ा रहे पसीनेगत चुनाव में जीते हुए उम्मीदवार हो या पहली बार लड़ने वाले उम्मीदवार या फिर बागी उम्मीदवार, जनता के तल्ख सवालों का उन्हें सामना करना पड़ रहा है और उनके पसीने छूट रहे हैं.
दरअसल जनता को पांच वर्ष में एक बार ही नेताजी का पसीना छुड़ाने का मौका मिलता है, जिसे वे यूं ही नहीं गंवा देना चाहते हैं. पांच वर्ष तक प्रतिनिधित्व करने वालों से सवाल लाजिमी भी है. बागियों को भी जनता के दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों का जवाब देना पड़ रहा है. नेताजी भी मुस्कुरा कर कठिन से कठिन सवालों का जवाब दे रहे हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि जनता ही उनकी जन्म कुंडली का निर्धारण करेगी.