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मधुबनी मंदिर : यहां आज भी है बलि की प्रधानता

प्रशांत चौधरी पूर्णिया: मधुबनी दुर्गा मंदिर में नवमी को सर्वाधिक बलि दी जाती है. यहां छागर बलि की सर्वाधिक प्रधानता है. पिछले वर्ष 300 छागरों की बलि दी गयी थी, इस वर्ष 350 छागरों की बलि दी जायेगी. दुर्गा पूजा शुरू होने के बाद ही बलि के लिए पंजीयन शुरू हो जाता है. समिति द्वारा […]

प्रशांत चौधरी पूर्णिया: मधुबनी दुर्गा मंदिर में नवमी को सर्वाधिक बलि दी जाती है. यहां छागर बलि की सर्वाधिक प्रधानता है. पिछले वर्ष 300 छागरों की बलि दी गयी थी, इस वर्ष 350 छागरों की बलि दी जायेगी. दुर्गा पूजा शुरू होने के बाद ही बलि के लिए पंजीयन शुरू हो जाता है. समिति द्वारा प्रति छागर 30 रुपये पंजीयन शुल्क लिया जाता है. मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु यहां छागर की बलि देते हैं. मधुबनी दुर्गा पूजा का अपना इतिहास है. इससे पूर्व यहां का मंदिर चूनापुर में स्थापित था. कालांतर में इसे देवी दुर्गा का आह्वान कर मधुबनी लाकर स्थापित किया गया. तभी से यहां श्रद्धा और भक्ति के साथ मधुबनी वासी प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा धूमधाम से करते हैं. दालकोला के मूर्तिकार तारापद दास पिछले 72 वर्ष से यहां मां दुर्गा के मूर्ति का निर्माण कर रहे हैं. सप्तमी, अष्टमी, नवमी एवं दशमी को मंदिर परिसर में भव्य मेला का आयोजन होता है. मेले में प्रमुख रूप से बिक्री के लिए लकड़ी के लिए फर्नीचर और लोहे से बने घरेलू सामान रहता है.

जागरण है आकर्षण

पूर्णिया. शक्तिनगर स्थित दुर्गा पूजा के दौरान संध्या आरती महा अष्टमी जागरण आकर्षण का मुख्य विंदु बन गया है. यहां इसका विशेष महत्व है. संध्या बेला में आसपास की महिलाएं घर से दीप लाकर मंदिर पहुंचती है. पुजारी के अगुआई में महिलाएं दीप प्रज्वलित कर देवी दुर्गा की श्रद्धापूर्वक आरती करती है. सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि शाम 5.30 बजे से सात बजे तक मंदिर में आरती होती है, जिसमें महिलाओं की संख्या करीब एक हजार से अधिक तक हो जाती है. उन्होंने कहा कि दुर्गा पूजा में संध्या आरती के प्रति महिलाओं की विशेष आस्था है. उन्होंने कहा कि यह सिलसिला वर्षो से चल रहा है.

महा अष्टमी जागरण

उन्होंने बताया कि महा अष्टमी को यहां जागरण का कार्यक्रम होगा. जिसमें बाहर के कलाकारों को बुलाया गया है. इसी दिन देवी को खीर का भोग लगाया जाता है, जिसे श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है. नवमी को खिचड़ी प्रसाद का वितरण किया जाता है. वर्ष 2002 से यहां दुर्गा पूजा किया जा रहा है. कालांतर में उक्त स्थल के जमीन का मां दुर्गा के नाम रजिस्ट्री कराया गया और 2009 से यहां पक्का मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ.

समिति ने की बेरिकेटिंग

गुलाबबाग. पूर्णिया सिटी मार्ग स्थित दुर्गा पूजा समिति के सदस्यों ने मंदिर में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ व बच्चों महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मुख्यमार्ग पर खुद पहल करते हुए बांस बल्ले से बना गति अवरोधक बेरिकेटिंग लगा कर स्वयं गाड़ियों के साथ भक्तों की सुरक्षा का ख्याल रखना शुरू कर दिया है बल्कि पूजा कमेटी के इस पहल से गाड़ियों की गति धीमी हुई है वहीं पूजा कमेटी की इस पहल का अनुसरण कई पूजा कमेटियों द्वारा किये जाने के उम्मीद के साथ महिलाओं एवं स्थानीय लोगों ने कमेटी के इस पहल पर हर्ष जताया है.

आकर्षण का केंद्र बना रेलवे दुर्गा मंदिर

बनमनखी. शक्ति स्वरुपा देवी दुर्गा की पूजा से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है. श्रद्धालुओं में नवरात्र की उमंग पूरी तरह परवान पर है. मेला को लेकर बाजारों में रौनकता छाने लगी है तो मंदिरों व पूजा पंडालों में सजावटी कामों को अंजाम दिया जा रहा है. बनमनखी मुख्य बाजार में इस वर्ष दो जगहों पर होने वाली मूर्ति पूजा को लेकर आयोजन समितियां अपने स्तरों से इसमें लीन है. दशकों से रेलवे दुर्गा मंदिर में चली आ रही देवी पूजा को कायम रखते हुए इस बार आयोजन समिति खास इंतजाम में लगी है. लिहाजा उक्त स्थान पर आयोजित हो रही भगवती पूजा श्रद्धालुओं के लिए खासा आकर्षण का केंद्र है. खासकर सजावट के विहंगम दृश्य आस पास की छटा में चार चांद लगा रही है.

मंदिर का इतिहास

मुख्य बाजार में दुर्गा पूजा के अवसर पर आकर्षण का केंद्र बना रेलवे दुर्गा मंदिर का इतिहास कोई लंबा नहीं है. रेलवे दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष अरुण कुमार सिन्हा कहते हैं कि वर्ष 1970-71 में मंदिर की स्थापना स्थानीय रेल प्रशासन व जनसहयोग से किया गया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि झोपड़ी में मूर्ति स्थापित कर यहां पूजा की शुरुआत की गयी. कालांतर में यहां टीन के छतदार घर को मंदिर का रूप दिया गया था तत्पश्चात कुछ वर्षो बाद ही लोगों के सहयोग से पक्के का स्थायी मंदिर निर्माण किया गया. पिछले साल पूजा समिति के अध्यक्ष श्री सिन्हा, कोषाध्यक्ष कुलदीप सिंह, सचिव नटवर झा, मेहताब आलम, कुणाल सिंह, प्रकाश झा, गुड्डू चौधरी, अवधेश सिंह, संतोष भगत आदि के प्रयास तथा जनसहयोग से मंदिर में बनारस से लायी गयी बेशकीमती पत्थर की देवी प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा दशहरे के अवसर पर किया गया. पिछले साल से देवी दुर्गा की स्थायी मूर्ति की पूजा की परिपाटी यहां चली.

मेला का आयोजन

हर वर्ष की भांति दुर्गा मंदिर के आस पास मेला का खास आयोजन इस वर्ष भी नवमी तथा दशमी के रोज किया जायेगा. इसके अलावा अष्टमी तथा नवमी संध्या महाआरती का आयोजन किया जायेगा. पूजा समिति के सचिव नटवर झा ने बताया कि नवमी की रात स्थानीय बाल कलाकारों की प्रस्तुति दी जायेगी. जबकि दशमी की सारी रात बनारस, पटना एवं भागलपुर से पहुंच रहे गायक व गायिकाओं के द्वारा माता जागरण का कार्यक्रम आयोजित होगा.

263 वर्षो से देवधारा मंदिर में होती है दुर्गापूजा

शाहजहां,श्रीनगर. सघुवैली देवधारा दुर्गा मंदिर में करीब 263 वर्ष से दुर्गापूजा का आयोजन होता है. वर्तमान समय में पूजा की तैयारी अंतिम चरण में है. पंडालों के निर्माण सहित मेला के दुकानदारों द्वारा तैयारी शुरू की जा चुकी है. प्रतिदिन दर्जनों श्रद्धालु महिला-पुरुष मंदिर पहुंच कर पूजा-अर्चना कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में मन्नतें मांगने वालों की अवश्य ही मुरादें पूरी होती है. पहली पूजा के दिन से मंदिर में पूजा प्रारंभ होने के साथ ही पूरा इलाका भक्तिमय हो जाता है. वैसे वर्ष के 365 दिन इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. गांववासी इतने पुराने मंदिर को आज भी पूरी आस्था के साथ संवारे हुए हैं और दुर्गा मां की पूजा-अर्चना में समर्पित है. बुजुर्ग ग्रामीणों ने बताया कि देवधारा दुर्गा मंदिर की स्थापना 1750 में हुई थी और मंदिर का निर्माण राजा दुलार सिंह ने किया था. 1778 से लेकर 1851 तक राजा वेदानंद बहादुर सिंह के काल तक मंदिर के इलाके का नाम बनैली राज के नाम से मशहूर हुआ. 1816 से लेकर 1883 तक राजा लीलानंद सिंह की हुकूमत तक दुर्गा मंदिर के स्थल का नाम बनैली, रामनगर एवं चंपानगर के नाम से मशहूर हुआ जो आज तक कायम है.

263 वर्ष पुराना है मंदिर

मंदिर के अध्यक्ष विनोद मिश्र, मुकेश कुमार साह एवं मंदिर के संचालक दिलीप कुमार गुप्ता ने बताया कि मंदिर लगभग 263 वर्ष पुराना है.

उस समय विभिन्न शासकों की फौज का आवागमन मंदिर के बगल स्थित रास्ते से होता था और फौजी महीनों मंदिर स्थल पर रूकती थी और यहां से नेपाल तक जाती थी. महीनों फौज ठहरने के कारण ही उक्त स्थल पर राजा दुलार सिंह द्वारा दुर्गा मंदिर के स्थापना का कारण माना जाता है. कुछ बुजुर्गो ने कहा कि फौज ने राजा दुलार सिंह से मंदिर स्थापना का आग्रह किया था. उसी समय से मंदिर कायम है जो बनैली राजा के नाम से मशहूर है.

दुर्गा मंदिर के समीप एक काली मंदिर भी है जो प्राचीन दुलारश्वरा काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की स्थापना 1750से 1821 के बीच हुआ और तभी से मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है. बनैली राज के देवधारा मंदिर में बनैली, सघुवैली, नवादा मुशहरी, ब्राrण टोला, जियनगंज, गुरही, बथनाहा, विश्वास टोला, चौहान टोला एवं ठाठर सहित कई गांवों के लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं और मन्नतें मांगते हैं.

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