मंदिर के तीन ओर बड़ी-बड़ी पोखरें हैं. वर्षो से इस पोखरों का पानी कभी नहीं सूखा है. जीव के बदले जीव से यह स्थान मां जीवछ स्थान कहलाती है. मंदिर के चारों ओर ऊंचा टीला है. मंदिर से सटे उत्तर में जीवछ पोखर, उत्तर-पूरब में ऐतिहासिक गंगा सागर और दक्षिण में मरोछ पोखर है. रमणीक दृश्य और शक्तिपीठ का यह स्थल आस-पड़ोस के क्षेत्रों में काफी प्रसिद्ध है.
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नि:संतानों की मन्नत पूरी करती हैं मां जीवछ
जलालगढ़: नि:संतानों को संतान प्रदान करने वाली मां जीवछ मंदिर में चार दिनों तक होने वाली पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी है. सभी की मनोकामना को पूरी करनेवाली मां जीवछ खास कर नि:संतान की मन्नतें पूरी करने के लिए प्रसिद्ध हैं. यह मंदिर जलालगढ़ रेलवे स्टेशन से दो किमी दक्षिण रेलवे लाइन […]
जलालगढ़: नि:संतानों को संतान प्रदान करने वाली मां जीवछ मंदिर में चार दिनों तक होने वाली पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी है. सभी की मनोकामना को पूरी करनेवाली मां जीवछ खास कर नि:संतान की मन्नतें पूरी करने के लिए प्रसिद्ध हैं. यह मंदिर जलालगढ़ रेलवे स्टेशन से दो किमी दक्षिण रेलवे लाइन के पश्चिम में स्थित है. यह स्थान आस्था, शक्ति व श्रद्धा का मुख्य केंद्र है. वीरान क्षेत्र में फैली यह मंदिर टीले की ऊंचाई में स्थित हैं.
कब लगता है जीवछ मेला : अप्रैल 13 यानी वैशाखी पर्व से यह मेला 16 अप्रैल तक लगता है. 13 और 14 अप्रैल को औरतें जीवछ पोखर में स्नान करती हैं और मां से संतान की मन्नतें मांगती हैं, जिनकी मन्नत पूरी होती है, वह मां को पाठी का चढ़ावा चढ़ाते हैं. साथ ही बच्चों के मुंडन भी जीवछ घाट पर की जाती है. बिहार सरकार की ओर से मेले का डाक होता है. जानकारी के अनुसार इस वर्ष मेले का डाक दो लाख 25 हजार रुपये में हुआ है.
क्या है कहानी: मंदिर व मंदिर से जुड़े क्षेत्र में कई किंवदंती है. स्थानीय पंडित चंद्रशेखर ठाकुर बताते हैं कि एक लड़की, जिसका नाम मरोच्छ था. विवाह के बाद कोई संतान नहीं होने के कारण उसे गांव में बांझ मरोच्छ के नाम से पुकारा जाने लगा. संतान नहीं होने से वह बीमार रहने लगी और अपने जीवन के अंतिम समय वह अपने परिजनों से बोली कि मेरे मरने के बाद यदि बांझ औरत जीवछ मंदिर से सटे पोखर में स्नान करेगी, तो उसे संतान प्राप्त होगी. वहीं एक और किंवदंती है कि जीवछी नाम की एक बांझ औरत थी. बांझपन के कारण मंदिर से सटे पोखर में कूद कर खुदकुशी कर ली. तब से इसे जीवछ स्थान कहते हैं. इतिहास में वर्णित मुगल काल में राजपूताना सम्राट अपने कुल की रक्षा के लिए यत्र-तत्र भटकते थे. इसी क्रम में राजपूताना अपने घर की कुल देवता जीवछ के स्थान से मिट्टी साथ ले जाते थे. राजपूत जीवछ को शक्ति की देवी मां दुर्गा का स्वरूप भी मानते हैं. जो भी कथा हो परंतु चार दिनों श्रद्धालुओं की भीड़ आस्था और श्रद्धा देख सारी किंवदंती फीकी लगती है. इस चार दिन में 350 से 400 पाठी का चढ़ावा होता है. इसमें सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां बलि प्रथा का प्रचलन नहीं है. नि:संतान औरत को संतान की प्राप्ति यानी जीव की प्राप्ति और उस संतान के बदले मां जीवछ को पाठी यानी जीव का चढ़ावा. जीव (जीवन) देने वाली मां जीवछ के इस मंदिर परिसर में चार दिनों तक क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला लगता है.
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