* पूर्व सांसद लवली आनंद ने लगाया आरोप
* कहा, कार्यकर्ताओं का नहीं किया गया ख्याल, संवाद सम्मेलन में औपचारिक निमंत्रण न मिलने पर जताया खेद
पूर्णिया : कार्यकर्ताओं से रायशुमारी किये बगैर बिहार में समर्थन के इतने बड़े फैसले हो गये और गंठबंधन के फैसले लिये जा रहे हैं. उक्त बातें जारी बयान में पूर्व सांसद लवली आनंद ने कही है. उन्होंने कहा है कि कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ख्याल किये बगैर वफादारों की छाती पर गद्दारों को बिठाया जा रहा है.
कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष युवा नेता राहुल गांधी का टास्क है कि कांग्रेस को जमीनी स्तर पर खड़ा करे और इसके लिए ग्रास रूट के कार्यकर्ताओं से संवाद किया जाय. उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि संवाद सम्मेलन का औपचारिक निमंत्रण उन्हें नवनियुक्त प्रमंडलीय संयोजक एवं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा नहीं दी गयी थी और उनके जैसे लोग स्वाभिमान बेच कर राजनीति नहीं करते.
पूर्व सांसद लवली आनंद ने कहा कि अनुशासन किसी भी दल या संगठन का मेरुदंड होता है. इसके बगैर कोई संस्था चल नहीं सकती, लेकिन इस मामले में यहां की स्थिति विचित्र है. उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव में आलाकमान का फैसला था कि लगातार चार बार हारने वालों को पार्टी टिकट नहीं देगी और पार्टी की इस नीति के तहत जिनका टिकट कट गया, उन लोगों ने इस्तीफा देकर माहौल बिगाड़ा. पार्टी कार्यालय में तोड़–फोड़ और आगजनी की.
पार्टी के उम्मीदवारों का विरोध किया और अब नेताओं का गणोश परिक्रमा कर ओहदे लेकर वफादार कार्यकर्ताओं का मुंह चिढ़ाके सर पर चढ़ गये. ऐसे में पार्टी के ईमानदार कार्यकर्ता हतोत्साहित हैं. पूर्व सांसद श्रीमती आनंद ने कहा कि ऐसी कौन सी परिस्थिति आयी कि एनडीए के टूट के बाद कांग्रेस एकाएक बिहार सरकार के साथ खड़े हो गये और बिना मांगे एक डूबती सरकार को समर्थन देकर बचा लिया. जहां कांग्रेस को टूट का लाभ लेना चाहिए था, वहां उसके पाप की गठरी ढो रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हमारे समर्थन से सरकार चलाने वाले, बिहार की योजना आकार बढ़ाने वाले और 12 हजार करोड़ का पैकेज लेने वाले केंद्र के पैसे से अपना चेहरा चमकाने वाले कृतघ्न की तरह हमें ही भ्रष्ट और चोर कह कर गालियां देते हैं और भविष्य में कोई गंठबंधन नहीं करने की कसमें खाते हैं. हमारे विधायक दल के नेता विधायकों के साथ सदन में बिन मांगें सरकार का समर्थन करते हैं और प्रदेश अध्यक्ष सड़क पर विरोध करते हैं. बिहार में पार्टी के नेता सरकार के खिलाफ बोलते हैं और केंद्र के मंत्री बिहार आ कर मुख्यमंत्री का स्तुति गान करते हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसे में यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम कहां हैं, सत्ता पक्ष, प्रतिपक्ष या कहीं नहीं. फिर इतनी मेहनत का क्या अर्थ है. पूर्व में राजद सरकार के भागीदार बनकर एक गलती हुई थी, जिसके खामियाजा से हम 24 से चार पर आ गये और फिर डूबती जहाज की सवारी करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बिहार में समानधर्मी सेक्युलर पार्टी से समझौता होना चाहिए, जो विश्वसनीय भी हो.
गत दिनों अचानक पार्टी के रुख में आये परिवर्तन से कार्यकर्ता ऊहापोह में है. जब हम बिहार में विपक्ष में थे, तो जनता के सवालों पर खड़े मिलते थे. एनडीए में टूट के साथ हम किंकर्त्तव्यविमूढ़ हैं. किसी कार्यक्रम से पहले सवालों का समाधान होना चाहिए.