विकास वर्मा, पूर्णिया : शहर की घनी आबादी के बीच जगह-जगह डंप होने वाला कचड़ा महामारी का सबब बन सकता है. शहरी क्षेत्र में डंप होने वाले कचड़े से अब दुर्गंध निकलने लगा है जिससे परेशान शहरवासी यह सवाल उठाने लगे हैं कि अगर इन कचड़ों के कारण बीमारी फैली तो जवाबदेह कौन होगा.
आलम यह है कि कचड़ों से निकलने वाले दुर्गंध के कारण आते जाते लोगों को सांस लेने में मुश्किलें होने लगी हैं. दरअसल, शहर के कप्तान पुल के पूर्वी व पश्चिमी दिशा में सड़क किनारे विगत कई वर्षों से कचड़े की डंपिंग की जा रही है. गुलाबबाग जीरोमाइल चौक से नेवालाल चौक जाने वाली बायपास सड़क के किनारे भी कचड़े डंप किये जा रहे हैं.
आज की तारीख में दोनों ही इलाके में आबादी बसी हुई है जबकि सड़क से लोगों का गुजरना होता है. बायपास रोड में कचड़ा वहीं डंप हो रहा है जहां एचपी गैस का गोदाम है और आने-जाने वाले लोगों को विवश होकर नाक पर रुमाल रखना पड़ता है.
सर्वाधिक गंभीर स्थिति कप्तान पूल के नजदीक है जहां हर रोज कचड़े की डंपिंग की जा रही है. समीप में ही लाइन बाजार का इलाका है और उसी रास्ते से रामबाग जाने वाले गुजरते भी हैं. आस पास निजी अस्पताल भी खुले हुए हैं जहां मरीजों का जमावड़ा लगता है. गुलाबबाग और खुश्कीबाग से आने वाले इसी कचड़े के बगल से गुजरते हैं क्योंकि यही मुख्य मार्ग है.
हालांकि अभी बरसात का मौसम नहीं आया है पर हाल के दिनों में हुई बारिश से पूरे कचड़े भींग गये हैं जिससे दुर्गंध निकलना शुरू हो गया है. इसमें भी अव्वल यह कि कचड़े में आग लगा दी जाती है जिससे धुएं का बवंडर दिन भर उठता रहता है. दुर्गन्ध और धुएं से बचने के लिए लोग नाक पर रुमाल रख कर किसी तरह गुजर जाते हैं.
विडंबना यह है कि दोनों ही सड़क मार्ग से आये दिन प्रशासनिक अधिकारियों की लग्जरी गाड़ियां गुजरती हैं. जनप्रतिनिधियों की आवाजाही भी इसी रास्ते से होती है पर कभी किसी की नजर इस पर नहीं जाती और कभी जाती भी है तो सभी इसकी अनदेखी कर निकल जाते हैं.
कचड़ों को इस तरह डंप किये जाने और उसमें आग लगा दिये जाने से उठते धुएं के बवंडर को लेकर शहरवासियों को महामारी फैलने की आशंका है. यही वजह है कि शहरवासी यह सवाल उठाने लगे हैं कि यदि ऐसा हुआ तो इसकी जवाबदेही कौन लेगा.
शहरवासियों का कहना है कि कचड़ों की डंपिंग शहर से दूर किसी खाली स्थान पर होनी चाहिए और इसके लिए भी कचड़ा प्रबंधन के नियमों का अनुपालन किया जाना चाहिए. शहरवासियों ने जिला प्रशासन का ध्यान इस तरफ आकृष्ठ करते हुए शीघ्र ही इसके समाधान की पहल का आग्रह किया है.
शहर से बाहर हो डंपिंग जोन की व्यवस्था
आज जिस और देखिए उस ओर शहर में ठेले व ट्रैक्टर पर ले जाते हुए कचड़े का अंबार नजर आयेगा. निश्चित रूप से एक तरफ तो सफाई अभियान जोरों पर चल रहा है. लेकिन दूसरी तरफ कचड़े की डंपिंग शहर में की जा रही है. शहर में कचड़ा डंपिंग होने से शहरवासियों की मुश्किलें बढ़ गयी हैं. कचड़े निकल रहे धुआं व बदबू शहर की आबोहवा में जहर घोल रहा है.
अनिल चौधरी, समाजसेवी
आज शहर में सफाई के साथ साथ कचड़े का प्रबंधन भी बहुत ही जरूरी है. यह एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. आज खुले में कचड़ा जलाया जाता है. जिससे स्वास्थ्य व पर्यावरण पर खतरा पैदा हो रहा है. इसके लिए शहर से बाहर डंपिंग जोन की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा हो सके.
पंकजा कुमारी, संयोजिका, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
शहर के बीचों बीच कचड़े की डंपिंग की जा रही है. इससे पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंच रहा है. जिस तरह से शहर के कप्तान पुल, बायपास रोड आदि जगहों पर कचड़े की डंपिंग हो रही है उससे महामारी की की आशंका बनी हुई है. लाइन बाजार थोड़ा आगे से कप्तान पूल तक नाक पर रुमाल लेकर गुजरना पड़ रहा है.
डा. निशा प्रकाश, साहित्यकार
शहर में कचड़ा फेंकने की सही व्यवस्था नहीं है. जहां तहां कचड़ा फेंक दिया जाता है और उसकी डंपिंग की जाती है. इससे कई तरह की बीमारी जन्म ले सकती है. कप्तान पूल के आस-पास सांस लेने में दिक्कतें होती है. लोगों को सांस रोक कर गुजरना पड़ रहा है. यदि शहर को खूबसूरत देखना है तो डंपिंग शहर से बाहर करने की आवश्यकता है.
शेखर कुमार भारती, छात्र
कहते हैं डॉक्टर
कचड़ा से निकलने वाला दुर्गंध और धुआं मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. उन्हें एलर्जी हो सकती है जो आगे चलकर दमा की बीमारी बन कर जीवन तबाह कर सकती है.
धुएं से निकलने वाले कार्बन मोनोक्साइड मनुष्य के फेफड़ा में पहुंच कर रक्त के ऑक्सीजन की मात्रा कम कर देता है जिससे दम फूलने की बीमारी हो सकती है.
डॉ राजू कुमार, फिजिशियन, पूर्णिया