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कटनी और रोपनी के बीच महिलाएं करती हैं पढ़ाई

पूर्णिया : हटा दो सब बाधाएं मेरे पथ की / मिटा दो सब आशंकाएं मन की / जमाने को बदलने की शक्ति को समझो / कदम से कदम मिलाकर चलने तो दो मुझको. अपनी इसी शक्ति को पहचान कर बेलौरी के महादलित समाज से आने वाली महिलाओं ने जब शिक्षा की मशाल जलायी तो इसकी […]

पूर्णिया : हटा दो सब बाधाएं मेरे पथ की / मिटा दो सब आशंकाएं मन की / जमाने को बदलने की शक्ति को समझो / कदम से कदम मिलाकर चलने तो दो मुझको. अपनी इसी शक्ति को पहचान कर बेलौरी के महादलित समाज से आने वाली महिलाओं ने जब शिक्षा की मशाल जलायी तो इसकी रोशनी ने विकास की एक नयी इबारत लिख दी.

दृढ इच्छाशक्ति के आगे ढलती उम्र और पिछड़ेपन की बाधाएं पीछे रह गई. कल तक जो महिलाएं अनपढ थीं वे आज बस्ती में घुसते ही पूछती हैं — हू आर यू, ह्वाट इज योर नेम ?
महादलित समाज की ये महिलाएं और भी बहुत कुछ बोलती हैं और मतदान का मतलब भी खूब समझती हैं. वहां जाने वाले लोग हैरान रह जाते हैं. पढ़ाई के प्रति महिलाओं की यह जागरूकता सिर्फ बेलौरी की महादलित बस्ती में ही नहीं है.
जिले के बायसी समेत कई गांवों में महिलाएं इतनी सजग हो गई हैं कि उन्हें बरगलाया नहीं जा सकता. यह करामात है शाम की पाठशाला का जिसका आगाज बायसी कला मंच ने किया था.
गांव की अनपढ़ महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए पूर्णिया के बायसी से शुरू हुआ शाम की पाठशाला का यह अभियान जिले के प्रखंडों से निकल कर बिहार के कई हिस्सों तक पहुंच गया है जहां झुग्गी झोपड़ियो में शिक्षा की अलख जगायी जा रही है.
मौसम चाहे धान की रोपनी का हो या फिर गेहूं की कटनी चल रही हो, महिलाएं काम से फुर्सत पाते ही शाम की पाठशाला पहुंच जाती हैं. गांव के पढ़े लिखे युवाओं ने भी बागडोर संभाल ली है. वे उन्हें न केवल अक्षर ज्ञान देते हैं बल्कि अंग्रेजी में लिखना और बोलना भी सिखाते हैं. कई सेन्टरों पर तो वही महिलाएं खुद शिक्षक भी बन गई हैं.
बेलौरी सेन्टर पर लालो देवी अब दूसरी महिलाओं को पढाती हैं. पूछने पर वे बताती हैं कि सरकार की योजना का लाभ उठाने में कोई दिक्कत नहीं होती है. पहले अंगूठे की छाप लेकर सरकारी बाबू ठग लिया करते थे पर अब कागज लेकर वे पढ़ती समझती हैं तब दस्तखत करती हैं.
बेलौरी, बैरगाछी, चूनापुर समेत जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां शाम की पाठशाला चलायी जा रही है.
यह पाठशाला खास तौर पर उनके लिए है जो खेत खलिहानों में मजदूरी करते हैं और जिन्हें पढाई के लिए समय नहीं मिलता. शाम की पाठशाला की नींव डालने वाले रंगकर्मी शशिरंजन बताते हैं कि शुरुआती दौर में कई मुश्किलें आयीं पर अब महिलाएं खुद सजग हो गयी हैं.
अब स्कूल जाने लगे हैं बच्चे
शाम की पाठशाला में अक्षर ज्ञान प्राप्त करने वाली महिलाएं अब अपने बच्चों के भविष्य के लिए भी सजग हो उठी हैं. पहले वे अपने साथ काम पर बच्चों को भी ले जाती थी. बच्चे की मजदूरी से मिले पैसों से वे घर चलाती थी. मगर शाम की पाठशाला ने उनकी जिंदगी बदल दी है .
अब उनके बच्चों ने निकट के स्कूलों में दाखिला ले लिया है. बेलौरी में पूजा देवी और सुनीता देवी कहती हैं कि बच्चे यदि पढ लिख लेंगे तो सरकारी नौकरी मिल सकती है. उनका कहना है कि अपने सुख के लिए वे बच्चों को जिन्दगी खराब नहीं करेंगे.

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