पूर्णिया : मिथिलांचलीय संस्कृति की पृष्ठपोषक रही पूर्णिया की धरती पर एक बार फिर मिथिला और मैथिली की पहचान स्थापित करने के लिए कवायद शुरू हो गयी है. इसके लिए जहां मैथिल कोकिल कवि विद्यापति की भव्य प्रतिमा स्थापना और भवन निर्माण के लिए पहल की जा रही है वहीं मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने के प्रयास किये जा रहे हैं. इसके लिए पूर्णिया जिले में कई रचनात्मक कदम भी उठाए गये हैं.
दरअसल, पुराने पूर्णिया के विस्तृत भू-भाग में आज भी मिथिला की संस्कृति रची-बसी है. इतिहास के जानकारों की मानें तो सन 1770 से 2018 के कालखंड से पूर्व यह पूरा इलाका मिथिलांचल का हिस्सा रहा है. जानकारों का कहना है कि इन इलाकों में पारिवारिक समारोहों, उत्सवों, शादी ब्याह के गीतों व रिवाजों में मिथिला की परंपराओं की झलक आज भी मिलती है पर बदलते दौर में इसका मिश्रित स्वरूप दिखने लगा है जिसे वास्तविकता देने की जरूरत महसूस की जा रही है .
बुजुर्गों का कहना है कि सन 1352 से 1448 के बीच के 16 वर्षों के कालखंड में मिथिला गौरव कवि विद्यापति द्वारा रचित गीत शादी विवाह व सुख दुख के अवसर पर आज भी हर जाति के हर परिवार में गाये और सुने जाते हैं जिसे इस संस्कृति का पोषक माना जाता है. बुजुर्ग मानते हैं कि बदलते परिवेश में इसे संबल देने की जरूरत है और यह काम विद्यापति भवन के निर्माण एवं उनकी भव्य प्रतिमा की स्थापना से सहज हो सकता है.
कुछ ऐसे ही उद्देश्यों को लेकर विद्यापति स्मृति सेवा संस्थान प्रयासरत है. इसी प्रयास का नतीजा है कि इस अभियान को अमलीजामा पहनाने की कोशिशों में एक बड़ा तबका जुट गया है. इस संबंध में रिटायर्ड बैंक मैनेजर गुरु कुमार झा बताते हैं कि कवि विद्यापति को स्मृति में बनाये रखने के लिए हर साल विद्यापति पर्व समारोह का आयोजन किया जाता है पर इसे स्थायी स्वरूप देने के लिए भवन निर्माण और प्रतिमा स्थापना भी लाजिमी है.
बनायी जा रही आम लोगों की सहमति
विद्यापति भवन निर्माण और प्रतिमा स्थापना के लिए पूर्णिया के बुद्धिजीवियों के बीच सहमति बनायी जा रही है. इस अभियान से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ा जा रहा है जबकि जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों से भी सार्थक पहल का आग्रह किया जा रहा है. इधर, विभिन्न विभागों के मंत्री एवं समाज कल्याण विभाग को भी इस बाबत लिखा गया है तथा जिलाधिकारी का ध्यान भी आकृष्ठ कराया गया है.