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केंद्र के फैसले से एलोपैिथक डॉक्टरों में नाराजगी व्याप्त

केंद्र सरकार का निर्णय लागू हो जाता है, तो छह महीने का ब्रीज कोर्स करने के बाद आयुष चिकित्सक भी एलोपैथिक पद्धति से इलाज कर सकेंगे पूर्णिया : अगर केंद्र सरकार का निर्णय लागू हो जाता है तो 06 महीने का ब्रीज कोर्स करने के बाद आयुष चिकित्सक भी एलोपैथ का इलाज कर सकेंगे. इस […]

केंद्र सरकार का निर्णय लागू हो जाता है, तो छह महीने का ब्रीज कोर्स करने के बाद आयुष चिकित्सक भी एलोपैथिक पद्धति से इलाज कर सकेंगे

पूर्णिया : अगर केंद्र सरकार का निर्णय लागू हो जाता है तो 06 महीने का ब्रीज कोर्स करने के बाद आयुष चिकित्सक भी एलोपैथ का इलाज कर सकेंगे. इस फैसले से जहां आयुष चिकित्सकों में खुशी व्याप्त है वहीं एलोपैथ डाक्टरों में नाराजगी है.
यहीं वजह रही कि मंगलवार को केंद्र के इस फैसले के खिलाफ पूरे देश के एलोपैथ डाक्टरों ने एक दिवसीय हड़ताल रखा था. गौरतलब है कि जिले में भी खासकर पीएचसी में आयुष चिकित्सक तैनात हैं और धड़ल्ले से वे न केवल ओपीडी में हिस्सा लेते हैं बल्कि मरीजों को अंग्रजी दवा भी लिखते हैं. जबकि नियमत: यह गलत है. लेकिन सरकारी मातहत होकर भी उनसे गलत कराया जा रहा है. गाहे-बगाहे आयुष चिकित्सक के अंग्रेजी दवा लिखने पर भी सवाल उठते रहे हैं.
ऐसे में ब्रीज कोर्स करने के बाद आयुष चिकित्सकों की मुश्किलें भी कम हो सकती है. वहीं एक बड़ा सवाल यह भी है कि महज 06 माह के ब्रीज कोर्स के बाद एलोपैथ की चिकित्सा किस हद तक मुकम्मल हो सकती है.
एलोपैथिक डॉक्टर भी लिखते हैं आयुर्वेदिक दवा
जानकारों का मानना है कि सिर्फ आयुष डॉक्टर ही एलोपैथिक इलाज नहीं कर रहे हैं बल्कि एलोपैथिक डॉक्टर भी आयुर्वेद की दवा लिख रहे हैं. इसका उदाहरण लीव 52, नीरी, सिस्ट एवं अन्य प्रकार की आयुर्वेदिक दवा है. लीव 52 लिवर टॉनिक है जबकि नीरी और सिस्ट किडनी रोग से संबंधित दवा है. यह सभी दवाइयां आयुर्वेदिक है लेकिन एलोपैथिक डॉक्टर इन दवाओं को सेवन करने के लिए मरीजों को सलाह देते हैं. दरअसल इस पर कोई सवाल नहीं उठा है, क्योंकि डाक्टरों का मकसद मरीजों को जल्द स्वस्थ करना होता है.
एलोपैथी और आयुष में कई समानता
आयुष और एलोपैथ में कई समानताएं हैं. दोनों ही क्षेत्र में साढ़े चार वर्ष की पढ़ाई एवं प्रैक्टिकल का कोर्स होता है. इसके अलावा एक वर्ष का इंटर्नशिप होता है. एमबीबीएस और बीएचएमएस दोनों ही में साढ़े पांच वर्ष लगता है.
इसके अलावा भी पढ़ाई में कई अन्य समानता है. एमबीबीएस और बीएचएमएस में बायो केमिस्ट्री, फिजीयोलॉजी, फोरेंसिक मेडिसीन एवं टोक्सीकोलॉजी, माइक्रो बायोलॉजी, फार्माकोलॉजी, पैथोलॉजी, एनेस्थेसिया, कम्युनिटी मेडीसिन, डेरमाटोलॉजी एवं मेनरोलॉजी, मेडिसीन, गाईनोकोलॉजी, ओपथलमोलॉजी, आर्थोपेडिक्स, पैडियाट्रीक्स आदि की पढाई होती है. आयुष और एलोपैथिक में फर्क सिर्फ इतना है कि दवा और सेवन करने की विधि अलग-अलग है.
एलोपैथी और आयुष पद्धति में काफी अंतर है. जब एलोपैथिक डॉक्टर को आयुष का इलाज करने पर पाबंदी है तो आयुष डॉक्टर को भी एलोपैथिक इलाज करने पर पाबंदी लगना चाहिए. दोनों ही पद्धति की पढ़ाई अलग-अलग तरीके से होती है. यदि आयुष डॉक्टर एलोपैथिक इलाज करने लगे तो मरीजों के लिए हितकर नहीं होगा. मात्र 06 महीने के ब्रिज कोर्स से एलोपैथिक इलाज करना जोखिम पूर्ण है.
डाॅ संजीव कुमार, आइएमए सचिव, पूर्णिया
एलोपैथिक चिकित्सा में ऐसा कोई विषय और जानकारी नहीं है जो आयुष से अलग है. दोनों ही पद्धति में सिर्फ दवा का अंतर है. जबकि एलोपैथिक डॉक्टर भी आयुर्वेदिक दवा का सहारा लेते रहे हैं. यदि आयुष डॉक्टरों को 06 महीना का ब्रीज कोर्स कराया जाता है तो इससे आयुष डॉक्टरों में और भी गुणवत्ता बढ़ेगी और मरीजों का बेहतर इलाज हो सकेगा.
डाॅ मनोज कुमार, सदस्य ऑल इंडिया आयुष चिकित्सक एसोसिएशन.

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