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मनमौजी हुईं नदियां, तो टूटे सारे मिथक, मचायी तबाही

पूर्णिया : यूं तो पहले भी जिले में बाढ़ आया करती थी, लेकिन इस वर्ष बाढ़ ने जो तबाही और बरबादी का मंजर बिखेरा, वह वर्ष 1987 के इतिहास को भी अपने साथ बहा ले गया. पहली बार एक साथ जिले के 13 प्रखंडों में बाढ़ आयी और 12.31 लाख आबादी एक साथ प्रभावित हुई. […]

पूर्णिया : यूं तो पहले भी जिले में बाढ़ आया करती थी, लेकिन इस वर्ष बाढ़ ने जो तबाही और बरबादी का मंजर बिखेरा, वह वर्ष 1987 के इतिहास को भी अपने साथ बहा ले गया. पहली बार एक साथ जिले के 13 प्रखंडों में बाढ़ आयी और 12.31 लाख आबादी एक साथ प्रभावित हुई. इसमें प्रभावित होने वाले गांवों की संख्या 788 थी.

जिले में कुल बाढ़ से 44 लोगों की मौतें हुई. लेकिन बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित बायसी अनुमंडल का इलाका हुआ, जहां की लगभग 10.30 लाख आबादी बाढ़ से गंभीर रूप से प्रभावित हुई. 564 गांव ऐसे थे, जहां के लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा. वजह यह रही कि इस बार का बाढ़ पूरी तरह अप्रत्याशित था. पहली बार ऐसा हुआ कि इलाके की सभी नदियां एकाकार हुई और नतीजा यह रहा कि व्यापक तौर पर तबाही और नुकसान देखने को मिला.

खास बात यह है कि बाढ़ के साथ नदियों से जुड़े मिथक भी टूट गये. लोगों ने जो नदियों के लिए एक लक्ष्मण रेखा तय कर रखी थी, बाढ़ में वह भी समाहित होता नजर आया. नदियां अब स्थिर हो चुकी है और चारों तरफ तबाही का मंजर पसरा हुआ है. लोग एक बार फिर से जिंदगी को वापस पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुट गये हैं.

सभी नदियों की रही है निश्चित धारा
यह सच है कि सभी नदियों की एक निश्चित धारा रही है. यही वजह भी रही है कि लोग बाढ़ के बीच जिंदगी जीना सीख चुके हैं. लेकिन इस बार की बाढ़ ने निश्चित धारा की परंपरा को भी छिन्न-भिन्न कर डाला. आम तौर पर परमान नदी अमौर के तियरपाड़ा, अधांग, पोठिया गंगैली, परबत्ता, विशनपुर, नितेंदर, अमौर पंचायत से होकर गुजरती है.
जबकि परमान बायसी के आसजा मबैया, खपड़ा, हरिणतोड़, बायसी और खुटिया से गुजरते हुए सुगवा महानंदपुर में महानंदा में विलीन हो जाती है. जबकि महानंदा बैसा के चंदवाग, धुसमल, कनफलिया, सिरसी होते हुए अमौर के हफनिया के बाद बायसी के गांगर, चरैया, श्रीपुर मल्लाह टोली, पुरानागंज, बनगामा, सुगवा महानंदपुर और मीनापुर होकर गुजरती है.
नदियों के जानकार भी इस बार आयी बाढ़ से हैं हतप्रभ : नदियों के जानकार भी इस बार आयी बाढ़ से हतप्रभ हैं. वजह साफ है कि जिले में अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ वर्ष 1987 में आयी थी. लेकिन प्रभावितों की संख्या से लेकर क्षति तक के स्तर बता रहे हैं कि जब मनमौजी हुई नदियां तो सारे मिथक टूट गये. जानकार इस बार आयी बाढ़ को फ्लैश फ्लड कह रहे हैं.
जानकार चाहे जो भी कहें, यह आने वाले समय के लिए चेतावनी कही जा सकती है. स्थानीय लोगों की मानें तो पहली बार ऐसा हुआ कि परमान का पानी कनकई में और कनकई का पानी परमान में जा पहुंचा. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पनार का पानी परमान तक पहुंचा हो, लेकिन यह मिथक टूट गयी.
दरअसल इस बार इलाके की सभी छह नदियां एकाकार हो गयी, जो बड़ी तबाही का कारण बनी. जबकि पनार बेलगच्छी बांध के टूटने से डगरूआ के इलाके में पहली बार बांध से इतनी बड़ी तबाही मची. सरकारी आंकड़ा के अनुसार अनुमंडल के 62 पंचायत के 345 गांव को संभावित बाढ़ प्रभावित इलाका माना जाता था. लेकिन इस बार की बाढ़ ने इस मिथक को भी तोड़ डाला.
नाव, थर्मोकोल बोट और चचरी से बंध गयी जिंदगी
बाढ़ के दौरान और बाढ़ के बाद बायसी अनुमंडल क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित इलाके में लोगों की जिंदगी नाव और थर्मोकोल बोट के साथ-साथ चचरी से बंध गयी है. बाढ़ की वजह से आज भी कई ऐसे इलाके हैं, जो पानी से घिरा हुआ है और वहां तक पहुंचने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है. खासकर आज भी बायसी के ताराबाड़ी पंचायत तक बिना नाव के पहुंचना असंभव है. ऐसी ही हालत अमौर के खाड़ी महीनगांव, हफनिया पंचायत की है, जो पूरी तरह से पानी से घिरा हुआ है. जबकि ज्ञानडोभ, हरिपुर, शीशाबाड़ी और सिमलबाड़ी के कई गांव तक पहुंचने का साधन नाव ही है. बैसा के मंझौक, नंदनिया, शीशाबाड़ी और खपड़ा पंचायत बिना नाव के सहारे नहीं पहुंचा जा सकता है. जबकि सरकारी स्तर पर जो नाव उपलब्ध कराये गये हैं, वह नाकाफी है. ऐसे में लोग जुगाड़ तकनीक के सहारे आवागमन कर रहे हैं. इस हाल में थर्मोकोल बोट काफी मददगार साबित हो रहा है. थर्मोकोल से बनाया हुआ यह बोट बाढ़ के दौरान हजारों लोगों की जान बचाने में मददगार साबित हुआ है. वहीं सड़कें बाढ़ में सबसे अधिक ध्वस्त हुई. प्रशासनिक स्तर पर इसे चलने लायक बना लिया गया है, लेकिन कई जगहों पर जहां पुल-पुलिये ध्वस्त हुए, वहां चचरी ही सहारा बना हुआ है. जाहिर है बाढ़ के बाद भी आम लोगों की जिंदगी मुश्किलों से भरी हुई है.

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