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लघुशंका लगी तो धैर्य रखिये, जगह ढूंढ़िए

पूर्णिया : शहर तेजी से तरक्की कर रहा है. लेकिन विकास के इस दौर में जिला मुख्यालय का शहरी इलाका मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है. हजारों लोग हर दिन जिला मुख्यालय आते हैं, लेकिन यहां शौचालय और यूरिनल जैसी मामूली लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी यहां लोगों को खूब खटकती है. ऐसे में […]

पूर्णिया : शहर तेजी से तरक्की कर रहा है. लेकिन विकास के इस दौर में जिला मुख्यालय का शहरी इलाका मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है. हजारों लोग हर दिन जिला मुख्यालय आते हैं, लेकिन यहां शौचालय और यूरिनल जैसी मामूली लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी यहां लोगों को खूब खटकती है.

ऐसे में बाहर से आने वाले लोगों को लघुशंका के लिए भी जगह तलाशनी पड़ती है और शर्मशार होना पड़ता है. खास बात यह है कि प्रशासनिक स्तर पर स्वच्छता अभियान की बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत से यह आज भी दूर है. नगर निगम द्वारा कई बार इस संबंध में कवायद भी आरंभ हुई, लेकिन वह कवायद नगर निगम से बाहर सरजमीं पर नहीं पहुंच सकी. ऐसे में शौचालय और यूरिनल सार्वजनिक जगह पर सपना ही बना हुआ है.

दशकों पुराने बने शौचालय हुए खंडहर
शहर की आबादी तेजी से बढ़ी है और बाहर से आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है. लेकिन महज पांच जगहों पर सार्वजनिक शौचालय संचालित हो रहा है. उनकी भी सेहत कुछ अच्छी नहीं है. इनमें से अधिकांश खंडहर हो चुके हैं. बमुश्किल दो शौचालय ही फिलहाल कामचलाऊ है. समस्या यह है कि नये शौचालय का निर्माण नहीं हो रहा है, जबकि पुराने की मरम्मती भी नहीं हो रही है. पूर्णिया से गुलाबबाग के बीच महज पांच शौचालय चालू है जिसमें लखन चौक, मधुबनी हाट, हॉस्पिटल गेट, सोनौली चौक गुलाबबाग की स्थिति बदतर है.
नगर निगम भी बना है उदासीन
शहर में शौचालय और यूरिनल के निर्माण को लेकर नगर निगम भी उदासीन है. बीते वर्षों में नगर निगम की बैठकों में सार्वजनिक शौचालय और यूरिनल का मुद्दा जनहित में उठाया भी गया तो वह बैठक तक ही सीमित रह गया. बीते दो-तीन वर्षों में नगर निगम की बैठकों में कई बार इस संदर्भ में प्रस्ताव भी लाये गये. प्रस्ताव के बाद वर्ष 2014-15 में निगम द्वारा यूरिनल और शौचालय के निर्माण हेतु सर्वे भी कराया गया था. इतना ही नहीं जिला योजना समिति की बैठक में भी वर्ष 2015 में प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन विडंबना है कि यह सभी प्रस्ताव व सर्वे फाइलों में ही कैद रह गये.
लाखों खर्च, नहीं हुआ कोई खास लाभ
वर्ष 2014-2015 में निगम द्वारा बाड़ीहाट के अंबेदकर नगर में शौचालय निर्माण कराया गया. इसके अलावा दो चलंत शौचालय भी लाखों की लागत से खरीदी गयी. लेकिन इसका लाभ दो वर्ष गुजरने के बाद भी शहर के लोगों को नहीं मिल रहा है. चलंत शौचालय जेल चौक के पास फुटपाथ पर अपनी उपेक्षा पर आंसू बहा रहा है. वहीं अंबेदकर नगर में बना नया शौचालय निर्माण के बाद भी आरंभ नहीं हो सका है. जबकि तत्काल ही सार्वजनिक शौचालय और यूरिनल की जरूरत आएनसाह चौक, गिरजा चौक, खुश्कीबाग हाट, जीरो माइल आदि स्थानों पर है, जहां हर रोज हजारों लोग पहुंचते हैं. विडंबना यह है कि इस मूलभूत सुविधा की चिंता जिम्मेवारों को नहीं है.

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