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23 वर्ष बाद छात्र नेता आदित्य की पिटाई मामले में सुलहनामा

पूर्णिया : 23 वर्ष बाद तत्कालीन समाजवादी छात्र नेता कुमार आदित्य पर पुलिस उपाधीक्षक और उसके अंगरक्षक द्वारा जानलेवा हमला और बाद में पुलिस हाजत में बंद किये जाने के मामले का पटाक्षेप सोमवार को हो गया. तत्कालीन आरक्षी उपाधीक्षक रामविलास महतो द्वारा इस मामले में गलती माने जाने के बाद मामले में सुलहनामा की […]

पूर्णिया : 23 वर्ष बाद तत्कालीन समाजवादी छात्र नेता कुमार आदित्य पर पुलिस उपाधीक्षक और उसके अंगरक्षक द्वारा जानलेवा हमला और बाद में पुलिस हाजत में बंद किये जाने के मामले का पटाक्षेप सोमवार को हो गया. तत्कालीन आरक्षी उपाधीक्षक रामविलास महतो द्वारा इस मामले में गलती माने जाने के बाद मामले में सुलहनामा की प्रक्रिया कोर्ट में पूरी की गयी.
इस मौके पर श्री कुमार के अधिवक्ता दिलीप कुमार दीपक भी मौजूद थे. गौरतलब है कि इस घटना के बाद उस समय पूर्णिया में व्यापक आंदोलन और धरना प्रदर्शन का आयोजन हुआ था. घटना के बाद श्री कुमार द्वारा सीजेएम के यहां मामला दर्ज कराया था. जिसमें कोर्ट द्वारा आपराधिक संज्ञान लिया गया था और उनके खिलाफ गैर जमानतीय वारंट भी जारी किया गया था. बावजूद मुकदमा चल रहा था और 23 वर्ष के बाद उसका पटाक्षेप हुआ है. सुलहनामा के मौके पर बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे. इस मौके पर श्री आदित्य ने कहा कि ‘ आशा करता हूं कि किसी भी जुर्म के खिलाफ सभी साथी इसी एकजुटता के साथ खड़े रहें ‘ .
आठ मार्च 1994 को आरएनसाह चौक पर हुई थी घटना
दरअसल 08 मार्च 1994 की शाम संध्या 06 बजे आरएनसाह चौक पर तत्कालीन समाजवादी छात्र नेता कुमार आदित्य के नेतृत्व में प्रदर्शन किया जा रहा था. इसी दौरान उक्त स्थल पर पहुंचे तत्कालीन आरक्षी उपाधीक्षक रामविलास महतो एवं उनके अंगरक्षक सकलदीप पासवान ने श्री आदित्य की पिटाई की थी. इस हादसे में आदित्य के दांत भी टूट गये थे. उसके बाद उन्हें पकड़ कर केहाट थाना ले जाया गया था और वहां से पीआर बांड पर धमकी देकर छोड़ा गया था. उसके बाद श्री आदित्य द्वारा न्यायिक दंडाधिकारी के यहां न्याय की गुहार लगायी गयी थी.
16 मार्च को पूर्णिया में हुआ था व्यापक बंद
कुमार आदित्य की पिटाई के बाद पुलिसिया जुर्म के खिलाफ समाजवादी पार्टी और आधा दर्जन छात्र संगठनों के आह्वान पर 16 मार्च 1994 को पूर्णिया बंद का आह्वान किया गया था. उस वक्त पूर्णिया बंद का जनजीवन पर व्यापक असर पड़ा था. धरना प्रदर्शन के अलावा मशाल जुलूस निकाले गये थे. इस दौरान तोड़फोड़ और आगजनी भी हुई थी. तब इस मामले में रईसुल आजम, सैयद रौशन अली, जावेद तुफेल, उपेंद्र सिंह, दिलीप यादव, राजेश यादव के साथ-साथ कुमार आदित्य के खिलाफ भी केहाट थाना में मुकदमा दर्ज हुआ था. मामले की गूंज विधानसभा में भी सुनी गयी थी, जब विधायक नरेंद्र सिंह ने छात्र नेता पर पुलिसिया बर्बरता का मामला उठाया था.
मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने लिया था संज्ञान
कुमार आदित्य के आवेदन पर तत्कालीन मुख्य न्यायिक दंडा
धिकारी ने आरक्षी उपाधीक्षक श्री महतो के अलावा उनके अंगरक्षक और चालक के खिलाफ आपराधिक संज्ञान लिया था. उक्त फैसले के विरोध में आरक्षी उपाधीक्षक द्वारा क्रीमिनल रिवीजन संख्या 334/94 दायर किया गया था. लगभग 10 वर्षों की सुनवाई के बाद सत्र न्यायालय द्वारा आरक्षी उपाधीक्षक के क्रीमिनल रिवीजन को खारिज कर दिया गया. उसके बाद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के यहां से सम्मन वारंट निर्गत किया गया. बाद में आरक्षी उपाधीक्षक द्वारा जमानत कराया गया और न्यायिक प्रक्रिया में वे शामिल हुए. तब से यह मामला लगातार चल रहा था, जिसका पटाक्षेप सुलहनामा के आधार पर हुआ है.
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