29.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शौचालय-यूरिनल है नहीं, कैसे स्वच्छ होगा शहर

पूर्णिया : शहर की सूरत तेजी से बदली है. बड़े-बड़े मॉल खुले हैं तो शहर शिक्षा का हब और स्वास्थ्य नगरी में तब्दील हो चुका है. बीते वर्षों से स्वच्छता की हवा भी चल रही है, जोर-शोर से नारे भी लगाये जा रहे हैं, लेकिन विडंबना यह है कि इन सबों के बीच जिला मुख्यालय […]

पूर्णिया : शहर की सूरत तेजी से बदली है. बड़े-बड़े मॉल खुले हैं तो शहर शिक्षा का हब और स्वास्थ्य नगरी में तब्दील हो चुका है. बीते वर्षों से स्वच्छता की हवा भी चल रही है, जोर-शोर से नारे भी लगाये जा रहे हैं, लेकिन विडंबना यह है कि इन सबों के बीच जिला मुख्यालय जन सुविधाओं से वंचित है. हजारों लोग हर दिन प्रमंडलीय मुख्यालय आते हैं,

लेकिन यहां शौचालय और यूरिनल जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव लोगों को खूब खटकता है. स्पष्ट है कि यह व्यवस्था स्वच्छता अभियान के दावे पर बड़ा सवाल है. महत्वपूर्ण तो यह है कि शौचालय और यूरिनल को लेकर पिछले कई वर्षों से योजना समिति की बैठक में और नगर निगम के बैठकों में प्रस्ताव आते रहे हैं. वर्ष 2011-12 में निगम के बोर्ड ऑफ सशक्त स्थायी समिति में शहर के आठ सार्वजनिक जगहों पर यूरिनल को लेकर फैसले भी लिये. वहीं दर्जन भर जगहों पर शौचालय बनाने का निर्णय भी लिया गया था. लेकिन सभी फैसले आज भी धरातल से दूर है.

दशकों पुराना शौचालय हुआ खंडहर : वैसे तो शहर में दो दशक पहले तकरीबन दर्जन भर शौचालय सुलभ इंटरनेशन के तहत संचालित हो रहे थे. आज जब शहर की सूरत बदली है और आबादी बढ़ी है तो महज पांच सुलभ शौचालय शहर के विभिन्न कोने में संचालित हो रहे हैं. इनमें से अधिकांश खंडहर हो चुके हैं. दो शौचालय की स्थिति कुछ बेहतर है. जाहिर है कि बढ़ती आबादी के अनुपात में यह नाकाफी साबित हो रहा है. खास बात यह है कि नये शौचालय का निर्माण नहीं हो रहा है, जबकि पुराने की मरम्मती भी नहीं हो पा रही है. बदहाली का आलम यह है कि प्रमंडलीय बस पड़ाव में बना शौचालय भी बंद हो चुका है. वही पूर्णिया से गुलाबबाग के बीच महज पांच शौचालय बहरहाल कार्यरत है. जिसमें लखन चौक, मधुबनी हाट, अस्पताल गेट और सोनौली चौक गुलाबबाग की स्थिति बदतर है. हां समाहरणालय परिसर स्थित शौचालय की स्थिति बेहतर है. वजह शायद यह है कि यहां तमाम आलाधिकारी मौजूद रहते हैं.
सरजमी पर नहीं उतर सका प्रस्ताव : शहर में शौचालय और यूरिनल के निर्माण को लेकर बीते पांच-छह वर्षों में नगर निगम की बैठकों में कई बार प्रस्ताव लाये गये. वर्ष 2011 में शहर के लगभग एक दर्जन जगहों पर यूरिनल लगाने के बोर्ड के फैसले पर सशक्त स्थायी समिति ने भी मुहर लगायी थी. वहीं तकरीबन दस बार से अधिक हुई बैठकों में आये प्रस्ताव के बाद वर्ष 2014-15 में निगम द्वारा यूरिनल और शौचालय के निर्माण हेतु सर्वे भी कराया गया था. इतना ही नहीं जिला योजना समिति की बैठक में भी वर्ष 2015 में प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन विडंबना यह है कि यह सभी प्रस्ताव व सर्वे फाइलों तक सीमित रहे, सरजमी पर नहीं उतर सका.
चलंत शौचालय साबित हो रहा अनुपयोगी
वर्ष 2014-15 में निगम द्वारा बाड़ीहाट के अंबेदकर नगर में शौचालय निर्माण किया गया. साथ ही दो चलंत शौचालय भी लाखों की लागत से खरीदी गयी थी. जनसुविधा के नाम पर जनता से वसूली गयी लाखों की राशि तो खर्च कर दी गयी, लेकिन इसका लाभ दो वर्ष गुजरने के बाद भी शहर के लोगों को नहीं मिल सका है. चलंत शौचालय महज प्रदर्शनी बना हुआ है. वहीं अंबेदकर नगर में बना नया शौचालय निर्माण के बाद चालू ही नहीं हो पाया है. शौचालय और यूरिनल को लेकर निगम की कार्यशैली का हाल यह है कि खीरू चौक पर बनने वाला शौचालय जन विरोध के कारण रूक गया और राजेंद्र बाल उद्यान के पास आनन-फानन में टेंडर देकर बनवाया जा रहा सार्वजनिक शौचालय डीएम के आदेश के बाद रोक दिया गया जो अब तक नहीं बन पाया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें