पटना: एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रो डीएम दिवाकर ने कहा कि भारत में आर्थिक वृद्धि तो हो रही है, लेकिन रोजगार के अवसर कम पैदा हो रहे हैं. गरीब राज्यों का खर्च तो बढ़ता जा रहा है, लेकिन अमीर राज्यों के मुकाबले वे अब भी काफी पीछे हैं.
पिछड़े राज्यों के लिए रघुराम राजन कमेटी के पैमाने की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि पिछड़े राज्यों का आकलन प्रदर्शन के आधार पर करना ठीक नहीं है. यह समावेशी नजरिया नहीं होगा. पिछड़े राज्यों के पास साधनों की कमी है.
उन्होंने ये बातें संस्थान में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंस इंस्टीट्यूशंस (आइएएसएसआइ) की 14वीं सालाना कॉन्फ्रेंस में कहीं. ‘भारतीय विकास का क्षेत्रीय प्रारूप’ पर आयोजित कॉन्फ्रेंस का समापन शनिवार को हो गया. शनिवार को ‘आर्थिक वृद्घि और विकास’ सत्र में भारत में खाद्य संकट के समाधान में नीति-निर्माताओं की असफलता, बिहार के आर्थिक विकास की हालत और भविष्य की संभावनाएं, भारत के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की भूमिका आदि विषयों पर चर्चा हुई. केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार के पूर्व वाइस चांसलर प्रो जनक पांडेय ने कहा कि समाजशास्त्र तभी सामयिक है, जब समाज को उससे फायदा हो. हाल के दिनों में रिसर्च के तरीकों में आये बदलाव पर उन्होंने प्रकाश डाला. समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो जनक पांडेय ने की. प्रो डीएम दिवाकर ने कॉन्फ्रेंस का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया. धन्यवाद ज्ञापन एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रो बीएन प्रसाद ने किया.
बढ़ रही विषमता
प्रो विनय कंठ ने कहा कि आर्थिक वृद्धि के साथ विषमताएं भी बढ़ती जा रही हैं. उन्होंने शिक्षा के अधिकार के कई पहलुओं पर चर्चा की. कंठ ने कहा कि सबके बावजूद शिक्षा पर सरकारी खर्च कम है और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा दिया जा रहा है. आइएएसएसआइ के सदस्य सचिव प्रो एसके गुप्ता ने कहा कि विकास पर चर्चा के केंद्र में गरीबी को होना चाहिए. प्रो सुनील रे ने कहा कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से इनसान की परेशानी गहराती जा रही है. बिहार खुद के विकास मॉडल के साथ ही आगे बढ़ सकता है. कृषि और जल संसाधनों में संभावनाओं का विकास करना होगा.