Advertisement
स्त्रियों में खून की कमी का असर पूरे जीवन चक्र पर पड़ता है
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बिहार की एक-तिहाई महिलाएं सामान्य से कम कद-काठी की हैं नासिरूद्दीन पटना : पटना के फुलवारीशरीफ की रहने वाली रानी की उम्र 26-27 साल होगी. 15-16 साल की उम्र में शादी हो गयी. दस साल में वह पांच बच्चों की मां बन गयी. कमजोरी और […]
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बिहार की एक-तिहाई महिलाएं सामान्य से कम कद-काठी की हैं
नासिरूद्दीन
पटना : पटना के फुलवारीशरीफ की रहने वाली रानी की उम्र 26-27 साल होगी. 15-16 साल की उम्र में शादी हो गयी. दस साल में वह पांच बच्चों की मां बन गयी. कमजोरी और थकान उसकी आंखों से झलकती है. उसकी कमजोरी का असर बच्चे-बच्चियों में भी देखा जा सकता है. घर की आमदनी का जरिया सीमित है. पति ठेला चलाता है. वह भी अक्सर बीमार ही रहता है. खाने का हाल तो यह है कि हर रोज नये सिरे से जुगाड़ करना पड़ता है. यह कोई अकेली रानी की कहानी होती तो कोई बात नहीं थी. राज्य में दस में छह लड़कियां/महिलाएं ऐसी ही कमजोर हैं या जिनमें खून की कमी है. इसी का असर है कि छह से पांच साल तक की उम्र के दस में से लगभग छह बच्चे/बच्चियां कमजोर हैं या इनमें खून की कमी है. ऐसा नहीं है कि मर्दों में खून की कमी नहीं है. लेकिन ऐसे मर्दों की तादाद स्त्रियों से लगभग आधी है.
स्त्रियों के शरीर में खून की कमी का सिर्फ उनके प्रजनन स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि पूरे जीवन चक्र पर असर पड़ता है. अगर लड़की को बचपन में और माहवारी शुरू होने के बाद खान-पान ठीक नहीं मिलता है, तो उसकी पूरी जिंदगी कमजोरी के चक्र में फंस जाती है. राष्ट्रीय परिवार स्वासथ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के ताजा आंकड़े हमें बताते हैं कि बिहार की एक तिहाई महिलाएं सामान्य से कम कद-काठी (बीएमआई) की हैं. हालांकि, इस संख्या में दस सालों में 15 फीसदी की गिरावट आयी है फिर भी यह संख्या अच्छी नहीं कही जा सकती है. इसका मतलब हुआ कि स्त्रियों की लंबाई और वजन का तालमेल ठीक नहीं है. यह पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे कुपोषण के चक्र की भी निशानी है. बीएमआई कम होने की वजह से यह जगह कम होती है. इससे गर्भ का विकास ठीक नहीं होता है. शिशु कमजोर पैदा होते हैं.
शायद इसीलिए, बिहार में पांच साल से कम उम्र वाले 48.3 फीसदी बच्चे-बच्चियां सामान्य से कम कद के हैं. वहीं इसी उम्र के 20.8 फीसदी बच्चे-बच्चियां कमजोर हैं और 43.9 फीसदी का वजन कम है. गर्भ से लेकर जिंदगी के आखिरी तक-उम्र के हर पड़ाव पर वह भेदभाव की शिकार है. इसमें एक अहम भेदभाव खान-पान से भी जुड़ा है. आमतौर पर घरों में आज भी अच्छे और पौष्टिक खाने पर पहला हक लड़कों का माना जाता है और हम बेटियों को बिना खिलाये, जिंदगी के दंगल में उतारना चाहते हैं. इसलिए स्त्रियों की सेहत सुधारने के लिए विभेद के इस नजरिए से भी दो-चार होना जरूरी है. महिला सशक्तीकरण की पहली सीढ़ी, स्त्री की बेहतर सेहत है. यह समाज में भी उसकी हैसियत का आइना है.
वैसे, हालात बदले हैं. बिहार ने पिछले दशक में महिला सशक्तीकरण के मामले में काफी तरक्की की है. आंकड़े बताते हैं कि कई पैमाने पर फिसड्डी रहने वाला बिहार अब ऊपरी पायदान की ओर कदम बढ़ा रहा है. इसलिए सिर्फ मां बनने की खातिर ही नहीं बल्कि बतौर इंसान स्त्री की सेहत पर खास ध्यान दिये जाने की जरूरत है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement