Advertisement
नाव हादसे के दौरान हुई प्रशासनिक गलतियों की पूरी रिपोर्ट, मॉनीटरिंग में चूका प्रशासन
किसी भी आयोजन को सफल बनाने के लिए निचले स्तर पर कड़ी मेहनत, सजगता और मुस्तैदी से ड्यूटी के बड़े मायने होते हैं. सभी ड्यूटी प्वाइंट और व्यवस्था के पल-पल की मॉनीटरिंग इससे भी बड़ी जिम्मेवारी मानी जाती है. गंगा दियारे में आयोजित पतंग उत्सव में आला अधिकारी इस प्वाइंट पर पूरी तरह चूक गये. […]
किसी भी आयोजन को सफल बनाने के लिए निचले स्तर पर कड़ी मेहनत, सजगता और मुस्तैदी से ड्यूटी के बड़े मायने होते हैं. सभी ड्यूटी प्वाइंट और व्यवस्था के पल-पल की मॉनीटरिंग इससे भी बड़ी जिम्मेवारी मानी जाती है. गंगा दियारे में आयोजित पतंग उत्सव में आला अधिकारी इस प्वाइंट पर पूरी तरह चूक गये. नाव कैसे चल रही है. कितने लोग आ-जा रहे हैं. पर्यटन विभाग की मुफ्त व्यवस्था का क्या हाल है, जो लोग दियारे में गये हैं, वे सही सलामत कैसे लौटेंगे. इन सभी बिंदुओं पर किसी ने विचार नहीं किया था. अब हादसे के बाद लाख बहाने हैं.
आरोप-प्रत्यारोप हैं. जांच की बातें हैं, पर 24 लोगों की मौत का जिम्मेवार कौन है? इसकी स्वीकारोक्ति नहीं हो सकी है. चूक पर पड़ताल करती विजय सिंह की रिपोर्ट
न जर्जर नाव की मरम्मत न क्षमता की पड़ताल
इतना बड़ा आयोजन और सारी तैयारी हवा में. आयोजन से पहले एनआइटी घाट से संचालित होनेवाली नावों की हालत चेक नहीं की गयी. ऐसी कई नाव शनिवार को गंगा में चक्कर लगा रही थीं, जिनकी हालत जर्जर थी. नाव की क्षमता पर भी ध्यान नहीं दिया गया. कोई उसे चेक करनेवाला नहीं था कि 25 की क्षमतावाली नाव पर दोनों तरफ से अनवरत 50 से अधिक लोग कैसे आ और जा रहे हैं. यह प्रशासन की बुनियादी चूक है, जिसने इतने बड़े हादसे को न्योता दिया.
सुरक्षा ड्यूटी किस बात की, जब नहीं देख सके आेवरलोड
कहने के लिए मकर संक्राति के दिन पर्यटन विभाग, पुलिस के जवान, आपदा प्रबंधन, एसडीआरएफ की टीम की एनआइटी घाट से लेकर उस पार गंगा दियारा तक तैनाती की गयी थी. लेकिन यह तैनाती किस काम की, जब पूरे दिन सभी नावें ओवरलोड दौड़ती रहीं, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. अगर पूरे दिन का सीसीटीवी फुटेज खंगाला जाये, तो साफ हो जायेगा कि जिम्मेदार अधिकारी किस तरह से अपनी सेवा दे रहे थे. हादसा तो अंतिम क्षण में हुआ, लेकिन जोखिम तो पूरे दिन बना हुआ था. नाव पर चढ़ने को लेकर भीड़ पर किसी का नियंत्रण नहीं था.
सिर्फ 28 नावों से 50 हजार से अधिक लोग पहुंचे दियारा
एनआइटी घाट से कुल 28 नावों का संचालन होता है. सभी नावें अलग-अलग क्षमता की हैं. ये सभी निजी हैं और प्रशासन की अनुमति से चलती हैं. नावों की क्षमता 25 से लेकर 35 लोगों की ही है, लेकिन शनिवार को मकर संक्रांति के मौके पर दियारा में आयोजित पतंग उत्सव में भाग लेने के लिए सभी नावों पर 50 से 80 लोग चढ़े देखे जा सकते थे. इन 28 नावों से 50 हजार से अधिक लोगों ने गंगा पार किया. जिम्मेवार अधिकारी सेल्फी लेने, मौज काटने में मशगूल थे. अगर अधिकारी मुस्तैद होते तो इतना बड़ा हादसा टाला जा सकता था.
पर्यटन विभाग की नाव भी हुई बंद, लौटने को अफरा-तफरी
पर्यटन विभाग की तरफ से नाव के लिए मुफ्त सेवा का एनाउंसमेंट किया गया था, लेकिन तैयारी नदारद थी. उस पार नाव के ठहराव स्थल के लिए बनायी गयी बांस की चचरी दोपहर तक नहीं चली और टूट गयी. चचरी टूटने से सरकारी नाव को बंद कर दिया गया. अब 150 की क्षमतावाली नाव ने लोगों को दियारा तक पहुंचा तो दिया, लेकिन वापसी के दौरान हाथ खड़े कर दिये. अतिरिक्त नाव की व्यवस्था भी नहीं की गयी. इससे दियारा से लौटनेवालों की संख्या बढ़ने लगी. लोग दिन ढलता देख कर आनन-फानन में नाव की क्षमता भूलकर उस पर सवार होने लगे.
जल्दी वापसी का एनाउंस, नाव बंद की सूचना से मचा हड़कंप
प्रशासन की तरफ से सबसे बड़ी चूक तब हुई, जब दोपहर बाद पर्यटन विभाग की नाव का परिचालन बंद कर दिया गया और इसकी सूचना प्रसारित की गयी. यह कहा गया कि दियारा में मौजूद लोग वापसी करें पर्यटन विभाग की नाव बंद हो गयी है. इससे लोगों में अचानक से अफरा-तफरी मच गयी. इस आपाधापी में जैसे ही कोई नाव एनआइटी घाट से दियारा पहुंचती लोग लपक कर चढ़ जाते. कितने लोग चढ़ रहे हैं कोई देखनेवाला नहीं. महिलाएं, बच्चे सब सवार हो रहे थे. भीड़ जिस तेजी से वापसी कर रही थी, उसी तेजी से एनआइटी घाट से लोग दियारा भी जा रहे थे.
लाठी भांज कर मचा दी वापस लौटने की होड़
शाम के चार बजे से दियारा में हालात बेकाबू होने लगे. लोग वापसी के लिए हड़बड़ाये थे. इस बीच पुलिस जवानों को आदेश दिया गया कि दियारा में घूम रहे लोगों को जल्दी वापसी कराइए. इस पर पुलिस के जवान लोगों को जबरदस्ती वापसी के लिए घाट की तरफ भेजने लगे. भीड़ चूंकि खुले मैदान में फैली हुई थी इसलिए पुलिस ने लाठी भी भांजनी शुरू कर दी. हॉस्टल के कुछ छात्रों को पुलिस की लाठी भी खानी पड़ी. इसके बाद पूरा दियारा खाली होने लगा और लोग घाट पर जमा हो गये.
पर्यटन विभाग का स्टीमर ठीक नहीं और दे दिया लोगों को न्योता
पर्यटन निगम द्वारा एमवी गंगा विहार और एमवी कौटिल्य विहार स्टीमर जहाज का संचालन किया जाता है. एमवी गंगा विहार में 80 पर्यटकों के बैठने की क्षमता है. वहीं, एमवी कौटिल्य विहार की क्षमता 35 पर्यटकों की है. पर्यटन निगम के कर्मचारियों का कहना था कि स्टीमर ठीक नहीं रहने के बावजूद पर्यटन निगम ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों को आमंत्रित कैसे कर लिया. एमवी गंगा विहार का एक इंजन पिछले एक साल से खराब पड़ा है.
इसके लिए पर्यटन निगम की ओर से कोलकाता की एक कंपनी को पत्र लिख कर इंजन को ठीक करने का आग्रह किया गया था, लेकिन निगम के अधिकारियों की उदासीनता के कारण अब तक मरम्मत नहीं हो पायी है. बुकिंग आने पर इसका संचालन पर्यटन निगम की ओर से किया जाता है. पतंग महोत्सव के दौरान इसका संचालन नहीं किया गया क्योंकि नदी के उस पार उतरने और चढ़ने के लिए जेटी की व्यवस्था नहीं थी. इसके बदले केवल एमवी कौटिल्य विहार का संचालन पर्यटन निगम ने किया.
पेट से चुल्लू भर पानी भी नहीं निकाल सके डाॅक्टर
मकर संक्रांति पर गंगा हादसे में आपदा प्रबंधन की कोई तैयारी नहीं थी. हादसे की सूचना मिलने के बाद गंगा किनारे किसी भी डूबनेवाले के पेट से न तो पानी निकालने की व्यवस्था की गयी और न ही वहां पर कोई मेडिकल टीम तैनात की गयी थी. जान बचाने के लिए गोल्डेन आवर (पहला आधा घंटा) के दौरान जान बचाने की कोई व्यवस्था नहीं थी. इधर, पटना मेडिकल काॅलेज अस्पताल के इमरजेंसी में भी किसी के शव से चुल्लू भर पानी नहीं निकला था. शनिवार को गंगा घाट पर मेडिकल टीम की तैनाती नहीं की गयी थी.
लोग सवाल पूछ रहे हैं कि लोग डूब कर मरे, तो किसी के पेट से पानी क्यों नहीं निकाला गया. आखिर अस्पताल पहुंचने का ही इंतजार क्यों होता रहा. जब मरीज अस्पताल पहुंचे, तो इमरजेंसी में डूबनेवालों के इलाज से अधिक चिकित्सकों पर पदाधिकारियों के सावालों के जवाब देने में अधिक समय गुजर रहा था. इमरजेंसी के अंदर आपदा को लेकर कोई अलग से तैयारी नहीं थी. गंगा से निकाले गये सभी लोगों के शव को इमरजेंसी के आॅपरेशन थियेटर में रखे गये थे. स्वास्थ्य विभाग में निदेशक प्रमुख (आपदा) कार्यरत है. इसके अधीन हर जिलों में एक टीम तैयार की गयी है. इसका काम है कि किसी भी तरह की घटना होने के बाद तत्काल उस स्थल पर पहुंच कर प्राथमिक उपचार के साथ मरीजों को उच्च स्तर के अस्पताल में पहुंचाना. हादसे में स्वास्थ्य विभाग के आपदा चिकित्सा की टीम नजर नहीं आयी. पीएमसीएच के वरीय चिकित्सक भी मानते हैं कि मेडिकल में आपदा की टीम सिर्फ कागजों पर ही गठित है.
गोताखोर को हादसे के बाद बुलाया गया, फिर डूबते को कौन बचाता?
पतंग उत्सव में भारी भीड़ के एनआइटी से गंगा दियारे जाने की पूरी संभावना थी. पर्यटन विभाग ने मेले और पतंगबाजी के आयोजन कर प्रचार-प्रसार भी किया था. मुफ्त में नाव के दावे किये थे. लेकिन, इस बड़े आयोजन को सफल बनाने में जुटे जिला प्रशासन के सहयोगी विभाग आपस में तालमेल नहीं बना सकें. शनिवार के पूरे दिन की हलचल और प्रबंधन पर गौर करें, तो आपदा प्रबंधन, पुलिस अधिकारी और पर्यटन विभाग के बीच समन्वय की भारी कमी दिखी.
पूरे दिन नाव भगवान भराेसे चलती रही. हद तो तब हो गयी जब पर्यटन विभाग की नाव का परिचालन भी ठप हो गया, एनआइटी घाट पर तैनात जिला प्रशासन के सीओ ने करीब चार बजे एसडीआरएफ के सभी आठ टीमों को आदेश दिया कि वह गंगा में गश्ती छोड़ कर लोगों को दियारे से वापस लाने का काम करें. एसडीआरएफ के रक्षा दल लोगों को ढोने में जुट गये. अब सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में ही हो गया. दूसरी गलती यह की गयी, जब गंगा में गश्ती नहीं हो पा रही थी, तो मुख्य गोताखोर राजेंद्र साहनी और उसके टीम को पहले ही बुलाना चाहिए था. यही कारण था कि जब नाव हादसा हुआ, तो एसडीआरएफ लोगों को ढोने में लगी थीं. करीब 45 मिनट बाद टीम मौके पर पहुंची.
काम आयी देहाती तकनीक, राजेंद्र के प्रयास से निकाले गये 24 शव
कंट्रोल रूम से गोताखोर राजेंद्र को फोन किया गया, तो वह सुल्तानगंज थाना क्षेत्र के बालू घाट अपने घर पर था. उसको भी मौके पर पहुंचने में काफी समय लगा. हादसे के दौरान जो लोग तैर कर बाहर निकले, वह ही बच सके. कुछ मछुआरों ने छलांग लगा कर कुछ लोगों को बचाया. लेकिन, 24 लोग जो हादसे के शिकार हुए वह इस लापरवाही का ही नतीजा था.
35 साल से गोताखोर राजेंद्र : जिला प्रशासन ने मुख्य गोताखोर के रूप में संविदा पर राजेंद्र साहनी को बहाल किया है. यह पिछले 35 सालों से सेवा दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि जैसे ही कंट्रोल रूम से सूचना मिली, वह अपने 20 लोगों की टीम के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने यह भी बताया कि जहां हादसा हुआ है, वहां पर 13 से 20 फुट ही पानी था. लेकिन, ओवरलोड होने के चलते नाव डूब गयी. राजेंद्र ने कहा कि प्रशासन पूरी तरह से उदासीन है. ड्यूटी तो लेता है, पर एक साल से भुगतान नहीं किया है. यहां बता दें कि राजेंद्र के ही प्रयास से कुल 24 शव बरामद की गयी. नाव को भी ढूंढ़ कर निकाला गया. उसकी देहाती तकनीक काम आयी.
ये अधिकारी कर रहे कैंप एनडीआरएफ की तीन विशेष टीमें अगले दो दिनों तक घटना स्थल के पास कैंप करेगी. इसमें एनडीआरएफ के कमांडेंट विजय सिन्हा, सेकेंड कमांडेंट रविकांत, डिप्टी कमांडेंट कुलदीप गुप्ता, सहायक कमांडेंट अरविंद मिश्रा आदि शामिल हैं. 150 जवान नाव, लाइफ जैकेट, लाइफ ट्यूब के साथ मौजूद रहेंगे. आपदा प्रबंधन के एडीएम शशांक शेखर सिन्हा समेत अन्य लोग मौजूद रहे.
एनआइटी पहुंचे जनप्रतिनिधि
नाव हादसे के बाद रविवार की सुबह एनआइटी घाट पर जनप्रतिनिधियों के पहुंचने का क्रम जारी रहा. लेकिन, सभी लाेग एनआइटी घाट से ही जायजा लेकर वापस लौट गये. इसमें केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, बांकीपुर विधानसभा के विधायक नितिन नवीन, विधायक अरुण सिन्हा, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय समेत अन्य लोगों ने हादसे के बाद राहत कार्य की जानकारी ली.
परिवहन विभाग को भी निबंधित नावों के बारे में नहीं है जानकारी
राज्य की नदियों में कितनी नावें परिचालित हो रही हैं, इससे परिवहन विभाग भी अनभिज्ञ है. नाव के निबंधन के बारे में नियमावली बनी, लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो रहा है. नियमावली के तहत नाव पर क्षमता के अनुसार यात्रियों को लोड करना है. इसके साथ ही सभी नाव पर खतरे को लेकर चिह्नित भी करना है. परंतु नियम का पालन न तो नाविक कर रहे हैं, न ही जिला प्रशासन इसे गंभीरतापूर्वक लेता है.
परिवहन विभाग द्वारा जब 2011 में नाव नियमावली बनायी गयी, तो उसके बाद नाव के निबंधन की प्रक्रिया शुरू हुई. लगभग दो हजार नावों का निबंधन हुआ. नाविकों को जिला परिवहन कार्यालय जाकर अपनी नाव का निबंधन कराना है. निबंधन के लिए जिला प्रशासन के स्तर पर बीडीओ, एसडीओ को भी कार्रवाई कर इसकी पहल करानी है. विभागीय सूत्र ने बताया कि पिछले कुछ साल से नाव के निबंधन के बारे में जिले से कोई रिपोर्ट नहीं आ रही है. जबकि विभाग द्वारा नाव के निबंधन के बारे में सूचित किया जाता है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement