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350वां प्रकाश पर्व : प्रकाशोत्सव के रंग में रंगे गुरुद्वारे

प्रकाशोत्सव के रंग में रंगे गुरुद्वारे बाल लीला गुरुद्वारा, पटना साहिब तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब से थोड़ी दूर हरमंदिर गली में स्थित बाललीला मैनी संगत गुरुद्वारा है. बाल लीला गुरुद्वारा प्रमुख बाबा गुरुबिंदर सिंह, बाबा सुखविंदर सिंह, प्रबंधक कमेटी के सचिव सरदार राजा सिंह ने बताया कि बचपन में गुरु महाराज ने यहां […]

प्रकाशोत्सव के रंग में रंगे गुरुद्वारे
बाल लीला गुरुद्वारा, पटना साहिब
तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब से थोड़ी दूर हरमंदिर गली में स्थित बाललीला मैनी संगत गुरुद्वारा है. बाल लीला गुरुद्वारा प्रमुख बाबा गुरुबिंदर सिंह, बाबा सुखविंदर सिंह, प्रबंधक कमेटी के सचिव सरदार राजा सिंह ने बताया कि बचपन में गुरु महाराज ने यहां चमत्कार किया था. दरअसल, फतह चंद मैनी बड़े जमींदार थे, उनको राजा का खिताब मिला था. पत्नी रानी विश्वंभरा देवी थी. राजा दंपति को संतान का सुख नहीं मिला था.
बचपन के गोबिंद राय (श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज) साथियों के साथ के साथ वहां खेलने आते थे. रानी विश्वंभरा देवी गोबिंद राय जैसे बालक का संकल्प कर रोज प्रभु से प्रार्थना करती थी. अंतर्यामी गोबिंद राय एक दिन रानी की गोद में बैठ गये और मां कह कर पुकारा, रानी खुश हुई और धर्म पुत्र स्वीकार कर लिया. धर्म पुत्र स्वीकार करने की स्थिति में फतहचंद मैनी परिवार ने अमरदान कर दिया. हालांकि, बाद में रानी को चार पुत्र हुए. बालाप्रीतम गोिबंद राय बाग में खेलते व पौधों को पानी देते थे. तब से यह स्थान बाललीला गुरुद्वारा बन गया.
बाल लीला गुरुद्वारा प्रमुख बाबा गुरुबिंदर सिंह, बाबा सुखविंदर सिंह, प्रबंधक कमेटी के सचिव सरदार राजा सिंह ने बताया कि गुरुपर्व की तैयारी अंतिम चरण में है़ उसमें बाललीला गुरुद्वारा की ओर से तीन जगहों पर टेंट सिटी बाइपास, टॉल प्लाजा और चौकशिकारपुर उपरि सेतु के पास बनायी जा रही है. संगत के ठहरने के लिए विशेष इंतजाम किये गये हैं. जन्मोत्सव को लेकर यहां जो धार्मिक कार्यक्रम होता है, उसमें चार जनवरी को श्री गुरुग्रंथ साहिब का अखंड पाठ बाल लीला गुरुद्वारा में रखा जायेगा.
गंगा-जमुनी तहजीब की है मिसाल
बताया जाता है कि गुरुनानक देव जी के दो पुत्र थे. एक श्रीचण बाबा और दूसरे लक्ष्मीचंद्र बाबा. श्रीचण बाबा ने मुंगेर प्रवास के दौरान ही इस गुरुद्वारा की नींव रखी थी. संत बाबा परदेशी रामजी उदासीन द्वारा निर्मित प्राचीन संगत 1934 में आये विनाशकारी भूकंप में पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था. इसके बाद 1935 के बसंत पंचमी में महंत रामदास जी संत उदासीन ने फिर से इस गुरद्वारे का निर्माण कराया. संगत प्रबंधन की मानें तो यहां समाधि की पूजा होती है. इसके साथ हिंदू धर्म के सभी देवी-देवताओं की भी पूजा-अर्चना की जाती है. गुरुद्वारे में गुरु व चेले की दो समाधियां आज भी अवस्थित हैं, जिनकी पूजा-अर्चना की जाती है. इस गुरुद्वारो में गंगा-जमुनी तहजीब की िमसाल दिखती है. लोग यहां काफी श्रद्धा के साथ आते हैं और अरदास लगाते हैं.
पर्यटन विभाग की मानें तो बिहार के प्रसिद्ध गुरुद्वारे में पर्यटकों को ले जाया जायेगा़ इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है़ लेकिन मुंगेर के जिस गुरुद्वारा पक्की संगत का जिक्र है, वहां किसी प्रकार की कोई तैयारी नहीं है. गुरुद्वारा के प्रबंधक संतोष कुमार ने बताया कि एक दो माह पहले कुछ सिख धर्मावलंबी यहां आये थे, लेकिन इस संबंध में किसी प्रकार की कोई बात नहीं की. वहीं पर्यटन विभाग द्वारा भी किसी प्रकार की तैयारी के संबंध में सूचना नहीं दी गयी है़ कमेटी के प्रबंधक ने बताया कि प्रकाशोत्सव को लेकर हम अपनी ओर से तैयारी कर रहे हैं़
21 दिनों तक ठहरे गुरु तेगबहादुर
गुरु नानक पातिशाही जी ने ‘सरबत का भला’ के लिए चार ‘उदासी’ (आध्यात्मिक, सामाजिक एवं वैचारिक यात्रा) की थी. पहली उदासी सन् 1500 से 1506 तक की थी. इसी क्रम में वाराणसी से गया जाने के समय सासाराम रुक कर उन्होंने आगे की यात्रा की थी. तीसरे नानक गुरु अमरदास जी ने जगतगुरु गुरुनानक देव महाराज की यात्रा के दौरान उनके ठहराव वाली जगहोंको चिह्नित कर वहां पक्के तौर पर संघत की स्थापना की और संचालन के लिए मसंद (धार्मिक प्रचारक सेवादार) की नियुक्ति की थी.
इसी क्रम में संत चाचा फग्गुमल साहेब को सासाराम के लिए मसंद बना कर फगवाड़ा (पंजाब) से भेजा था. वह अपना संपूर्ण जीवन यहीं बिताये. सिख धर्म के इतिहास में दो महापुरुषों में एक, संत चाचा फग्गुमल ऐसे थे, जिन्हें छह गुरुओं के दर्शन का सौभाग्य मिला था. नौवें गुरु हिंद की चादर गुरुतेग बहादुर महाराज सन् 1666 में अपनी पूरब दिशा की उदासी यात्रा के दौरान बिहार के प्रवेश द्वार सासाराम में संत चाचा फग्गुमल साहेब के अरदास पर परिवार सहित पधारे. गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के जत्थेदार सर्वजीत सिंह खालसा के मुताबिक, गुरु तेगबहादुर जी महाराज 21 दिनों तक सासाराम में रहे थे.
चाचा फग्गुमल गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के प्रधान सरदार सर्वजीत सिंह खालसा ने बताया कि प्रकाशोत्सव पर पांच रथों व जत्थों के आने की संभावना है. रथ के साथ जो पटना से देश भ्रमण पर निकला पहला जत्था 17 को आया. वहीं, दूसरा जत्था ज्ञानी संत प्रीतपाल सिंह का है, जो गुरुद्वारा सागर साहेब, सुखनाझील, चंडीगढ़ से आयेगा. यह जत्था 30 दिसंबर को सासाराम पहुंचेगा. तीसरे जत्थे (जिसमें अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड आदि देशों के श्रद्धालु होंगे) का रथ शिरोमणि गुरुद्वारा श्री अमृतसर से चला है, जो यहां पहुंचेगा.
तीन सिख गुरुओं के चरण से पवित्र पटना साहिब की धरती
तीन सिख गुरुओं के पावन चरण से पवित्र हुई पटना साहिब की धरती पर ही श्री गुरु गोिबंद सिंह जी महाराज का जन्म हुआ. जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह, धर्म प्रचार कमेटी के चेयरमैन सरदार महेंद्र पाल सिंह ढिल्लन व शिक्षाविद् प्रो लाल मोहर उपाध्याय बताते हैं कि सिख धर्म के पांच प्रमुख तख्तों में दूसरा तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब है, जहां पर पौष सूदी सप्तमी के दिन संवत 1723 में 22 दिसंबर 1666 को दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का प्रकाश (जन्म) हुआ था.
जिस समय गुरु महाराज का जन्म वर्तमान के तख्त श्रीहरमंदिर जी पटना साहिब में हुआ था, उस समय पिता व नवम गुरु तेग बहादुर जी गुरु मिशन की प्रचार के लिए घुबड़ी असम की यात्रा पर गये थे.
नवम गुरु की पत्नी माता गुजरी गर्भवती थीं. ऐसे में जब गुरु महाराज गायघाट स्थित बड़ी संगत गुरुद्वारा पहुंचे, तो वहां से मुंगेर रवाना होने से पहले गुरु महाराज ने परिवार वालों को अच्छी हवेली में रखने का आदेश व संगत को आशीर्वाद दे प्रस्थान कर गये. जहां गुरु महाराज का जन्म हुआ, वहां सालस राय जौहरी का आवास होता था, यहां पर श्रावण संवत 1563 में सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी महाराज भक्त जैता मल के यहां ठहरे थे, जो गायघाट बड़ी संगत गुरुद्वारा है. वहीं से सालस राय जौहरी निमंत्रण पर निवास स्थान पहुंचे थे. यही हवेली मे दशमेश गुरु का जन्म हुआ और यह दूसरा बड़ा तख्त बन गया. श्री गुरु गोिबंद सिंह जी महाराज ने अपनी रचना दशमग्रंथ में आत्मकथा विचित्र नाटक में लिखा है, तही प्रकाश हमारा भयो, पटना शहर बिखै भव लयो, जबकि सिख पुस्तक गुरुमत फिलास्फी में भी वर्णित है पटने जन्म, आनंदपुर वासी, गोबिंद सिंह नाम अविनाशी है.
चलेगा अटूट लंगर, गुरुवाणी का लाइव टेलीकास्ट
संगत के लिए गुरुवाणी का सीधा प्रसारण पंडालों के साथ टेंट सिटी व प्रमुख जगहों पर एलइडी टीवी द्वारा किया जायेगा. तख्त साहिब में पांच दिनों तक विशेष दीवान सजेगा. प्रबंधक कमेटी की ओर से गुरु का अटूट लंगर भी आधा दर्जन जगहों पर आयोजित किया जायेगा. साथ ही संगत लाने ले जाने व ठहरने की व्यवस्था भी की गयी है. राज्य सरकार व प्रबंधक कमेटी की ओर से गांधी मैदान, बाइपास थाना क्षेत्र में एनएच पर पार्किंग स्थल व कंगन घाट के पास टेंट सिटी का निर्माण कराया जा रहा है. लंगर की व्यवस्था तख्त साहिब, गांधी मैदान टेंट सिटी, गुरुद्वारा गुरु के बाग, बड़ी संगत गुरुद्वारा गायघाट के साथ अन्य जगहों पर होगी. इ रिक्शा, बस व अन्य वाहनों की व्यवस्था संगत को लाने के लिए हुई है, ताकि संगत को किसी तरह की परेशानी से नहीं जूझना पड़े.
प्रभातफेरी आज से: शताब्दी गुरुपर्व को लेकर तख्त साहिब में तैयारी के बारे में प्रबंधक कमेटी के महासचिव सरजिंदर सिंह व सचिव महेंद्र सिंह छाबड़ा ने बताया कि धार्मिक आयोजन की शुरुआत 24 दिसंबर की प्रभातफेरी से होगी, जो तीन जनवरी तक चलेगी. उसी दिन तख्त साहिब से बड़ी प्रभातफेरी निकलेगी. चार जनवरी को गांधी मैदान से नगर कीर्तन निकलेगा, जो तख्त साहिब तक आयेगा. पांच जनवरी को तख्त साहिब में मुख्य समारोह होगा, जिसमें मध्य रात को गुरु महाराज का प्रकाश पर्व मनाया जायेगा. विशेष दीवान गांधी मैदान तख्त साहिब में सजेगा, जिसमें देश-विदेश से आये रागी कीर्तन करेंगे, जबकि संत प्रचारक कथा -प्रवचन करेंगे. 31 दिसंबर को होगा विशेष विशेष कीर्तन दरबार होगा.
मां के साथ रुके थे गुरु गोिबंद िसंह
खलासा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोिबंद सिंह जी महाराज 1728 में पांच साल की आयु में मां गुजरी देवी, दादी नानकी देवी व मामा कृपाल सिंह समेत संगत के साथ पटना साहिब से आनंदपुर साहिब जाने के दौरान दानापुर में जमुनी माई की झाेंपड़ीनुमा घर में पहला पड़ाव किया था और रात्रि विश्राम भी किया था. मां जमुनी माई ने मिट्टी की हांडी में खिचड़ी बनाकर बालक प्रीतम समेत संगत को खाने के लिए अनुरोध किया था.
बालक प्रीतम ने हांडी को उठाकर संगत को खिचड़ी परोसा और खुद भी खिचड़ी खायी थी. इसके बाद भी हांडी में खिचड़ी जस-का-तस रह गयी थी. सुबह में बालक प्रीतम अपनी मां, दादी व मामा व संगत के साथ आनदंपुर साहिब जाने लगे, तो जमुना माई ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुआ कहा कि आपके दर्शन कैसे होंगे. इस पर बालक प्रीतम ने जमुना माई से कहा कि प्रत्येक दिन हांडी में खिचड़ी बना कर संगत को खिलायेगी, तो मैं बालक रूप में संगत में शामिल रहूंगा. उसके बाद जमुना माई ने आग्रह पर बालक प्रीतम ने अपने बालक रूप के चरणों का पद चिह्न छोड़ गये.
गुरुपर्व को लेकर हांडी साहिब गुरुद्वारे को आकर्षक तरीके से सजाया गया है़ समारोह को लेकर मेन रोड से गुरुद्वारा तक पथ निर्माण विभाग द्वारा सड़क बनवायी गयी है़ पटना सिटी से दानापुर हांडी साहिब गुरुद्वारा का दर्शन करने के लिए गंगा नदी में स्टीमर लचाने की सरकार ने घोषणा की है़ गुरुद्वारे के ग्रंथी परशुराम सिंह व धुरी सिंह ने बताया कि 28 दिसंबर से पांच जनवरी तक लुधियाना के बिटू बाबा द्वारा गुरुद्वारा में अटूट लंगर चलायेंगे. बाहर से आये श्रद्धालुओं के रहने के लिए तकिया पर हॉल की बुकिंग करायी गयी है.
देवघाट पर ठहरे थे गुरु नानकदेव
गया के गुरुद्वारे की नींव 6 मई, 1951 को हरियाणा के यमुनानगर के संत 1008 निश्चल सिंह ने रखी थी. यह 1955 में बन कर तैयार हो गया. गया के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने ‘दस सिख गुरुओं का जीवन चरित्र’ नाम की पुस्तक की चर्चा करते हुए बताया कि गया में गुरुनानक देव, गुरु तेग बहादुर सिंह के आने के प्रमाण मिलते हैं.
गुरुनानक देव के बड़े बेटे श्रीचंद जी के भी बाद में गया पहुंचे होने की चर्चा किताबों में है. गुरु तेगबहादुर जी गया में जब आये, तो शाहमीर तक्या के पास दुर्गास्थान मोड़ के समीप ठहरे थे और यहीं संगत किया था. कहते हैं कि गुरुनानक देव जी जब धर्म प्रचार के मकसद से भ्रमण पर निकले थे, तो नानकमते से चल कर वह अयोध्या पहुंचे थे. गया पहुंचने पर वह फल्गु नदी के किनारे स्थित विष्णुपद मंदिर के करीब देवघाट पर ठहरे.
धार्मिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक व पर्यटन के दृष्टिकाेण से अति प्राचीन गया शहर में लगभग हर धर्म व संप्रदाय के साधु-संतों के यहां पधारने का धार्मिक ग्रंथों व वेद-पुराणों में उल्लेख मिलता है.
सिखों के धर्मगुरुओं के भी गया आने के प्रमाण मिलते हैं. तख्त सच्चखंड श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में 28 दिसंबर से 12 जनवरी तक गुरु गोिबंद सिंह जी की 350वें प्रकाश पर्व की खुशी में महान नगर कीर्तन का आयोजन किया गया है. इसमें देश के कोने-कोने से सिखों का जत्था पटना पहुंच रहा है. सिखों का जो जत्था गया आ रहा है, उसमें यमुनानगर व आस-पास के लोग ही हैं.

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