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कोडिंग सिस्टम से ट्रैक होंगी सरकारी बिल की गड़बड़ियां

पटना : अब सरकारी बिलों की गड़बड़ियां आसानी से पकड़ में आ सकेंगी और उन्हें तुरंत दूर किया जा सकेगा. सभी तरह के सरकारी बिलों को ट्रैक करने के लिए एक खास कोडिंग सिस्टम तैयार की जा रही है. इससे इस बात तक की जानकारी मिल पायेगी कि कौन-सा सरकारी बिल किस प्रखंड के किस […]

पटना : अब सरकारी बिलों की गड़बड़ियां आसानी से पकड़ में आ सकेंगी और उन्हें तुरंत दूर किया जा सकेगा. सभी तरह के सरकारी बिलों को ट्रैक करने के लिए एक खास कोडिंग सिस्टम तैयार की जा रही है. इससे इस बात तक की जानकारी मिल पायेगी कि कौन-सा सरकारी बिल किस प्रखंड के किस कार्यालय का है.
यह बिल कब और किस काम के लिए जारी किया गया है. इन तमाम बातों की सटीक जानकारी बिल पर दर्ज कोड नंबर को देख कर ही मिल जायेगी. वित्त विभाग इसे लागू करने में जुटा है. मौजूदा समय में सरकारी बिलों पर 17 अंक होते हैं, जिसके आधार पर सिर्फ संबंधित विभाग का ही पता चलता है. लेकिन आनेवाले समय में बिलों पर 49 अंक तक की संख्या दर्ज रहेगी. इस विशेष कोडिंग सिस्टम से बिल के बारे में पूरी विस्तृत जानकारी मुख्यालय स्तर पर मिल जायेगी. यह व्यवस्था वित्तीय वर्ष 2018-19 से पूरी तरह से लागू होगी, लेकिन वर्ष 2017 में इसका डेमो किया जायेगा.
वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने सरकारी बिलों में गड़बड़ियों को रोकने और इसके जेनरेट होनेवाले सटीक स्थान का पता लगाने समेत अन्य वित्तीय सुधारों को लागू करने के लिए पूर्व सीजीआर सीआर सुंदरमूर्ति की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी थी. कमेटी ने एक साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन केंद्र सरकार अब इसे लागू करने जा रही है.
इस रिपोर्ट के आधार पर सरकारी बिल के कोड नंबर को 49 अंकों का करने से संबंधित प्रस्ताव पर जल्द ही केंद्र को राज्य सरकार अपनी अनुशंसा भेजने जा रही है. फिलहाल वित्त विभाग इस पर मंथन करने में जुटा है. वित्त प्रबंधन में सुधार करने के मामले में यह व्यवस्था जीएसटी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पहल होगी.
अभी है यह समस्या
वर्तमान में कोई सरकारी बिल सिर्फ 17 अंकों का होता है. ऑडिट के दौरान किसी तरह की गड़बड़ी सामने आने पर बिल से सिर्फ यही पता चल पाता है कि यह किस विभाग का है. अभी उस विभाग को यह बिल भेजा जाता है और उससे गड़बड़ी के बारे में स्पष्टीकरण पूछा जाता है. विभाग में बिल आने के बाद यह पता किया जाता है कि यह किस जिले के किस प्रखंड या अंचल के कार्यालय का है. इस प्रक्रिया में महीनों लग जाता है, जिससे ऑडिट बाधित होती है और गड़बड़ी उजागर नहीं हो पाती है. बिल कई बार रास्ते में ही गुम हो जाते हैं, जिससे गड़बड़ी उजागर ही नहीं हो पाती है.
अब होगी यह सुविधा नयी कोडिंग सिस्टम से ऑडिट या जांच के दौरान तुरंत यह पता चल जायेगा कि यह बिल किस विभाग, किस जिले, किस प्रखंड के किस कार्यालय का है. इसके आधार पर तुरंत संबंधित कार्यालय को ट्रैक कर उससे पूछताछ की जायेगी. इसमें समय नहीं लगेगा और किसी तरह की वित्तीय गड़बड़ी नहीं बच पायेगी और न ही बिल के लंबित होने का कोई चक्कर ही रहेगा.

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