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अभी 10 हजार मामले हैं लंबित

मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और दो सदस्यों के पद, जिनमें से खाली हैं दो पद पटना : राज्य मानवाधिकार आयोग में इन दिनों मामलों की सुनवाई की गति एकदम धीमी हो गयी है. 10 हजार से ज्यादा मामले पहले से लंबित पड़े हुए हैं और रोजाना 30 से 40 शिकायतें राज्य के सभी जिलों से […]

मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और दो सदस्यों के पद, जिनमें से खाली हैं दो पद
पटना : राज्य मानवाधिकार आयोग में इन दिनों मामलों की सुनवाई की गति एकदम धीमी हो गयी है. 10 हजार से ज्यादा मामले पहले से लंबित पड़े हुए हैं और रोजाना 30 से 40 शिकायतें राज्य के सभी जिलों से आ रही हैं. बावजूद इसके आयोग में मामलों की सुनवाई की प्रक्रिया एकदम से बेहद धीमी पड़ गयी है. इसकी मुख्य वजह मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और दो सदस्यों को मिलाकर कुल तीन पद हैं, जिसमें दो खाली पड़े हैं. इस वर्ष 2 नवंबर को आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बिलाल नजकी ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से अध्यक्ष का पद खाली ही चल रहा है. यह पद भरा ही नहीं कि 30 नवंबर को इसके एक सदस्य नीलमणि का भी कार्यकाल समाप्त हो गया. इसके बाद आयोग में सिर्फ एक सदस्य जस्टिस मानधाता सिंह ही बचे हैं.आयोग में सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और नीलमणि के कार्यकाल को इससे पहले दो बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है.
अध्यक्ष समेत तीन सीटों वाले आयोग में दो सीटें खाली होने के बाद सिर्फ एक सदस्य जस्टिस मानधाता सिंह ही बचे हुए हैं. महज एक सदस्य के लिए इतनी बड़ी संख्या में मामलों की सुनवाई करना बेहद कठिन काम है. गौरतलब है कि जस्टिस बिलाल नजकी जब आयोग के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने राज्य सरकार को पत्र लिखा था कि अध्यक्ष समेत कुल सदस्यों की संख्या तीन से बढ़ाकर पांच कर दी जाये. आयोग में दो सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए कई बार सरकार से अनुरोध किया जा चुका है, लेकिन सदस्यों की संख्या कम हो गयी. वर्तमान में महज एक सदस्य ही बचे हैं.
मानवाधिकार आयोग में 2008 से 2016 के बीच लंबित मामलों की संख्या करीब 10 हजार है. इसमें सबसे ज्यादा मामले पुलिस, माफिया, शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवाकाल, महिला उत्पीड़न से संबंधित हैं. हाल में बहुचर्चित गर्भाशय घोटाले में आयोग ने ऐतिहासिक फैसला दिया था. इसके बाद आरोपी डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई तो हुई, लेकिन पीड़ितों को मुआवजा देने का जो आदेश दिया था. वह अभी तक पूरा नहीं हुआ है. इसकी सुनवाई चल रही है, लेकिन सदस्यों के पद अचानक खाली होने से ऐसे कई अहम मामलों की सुनवाई लटक गयी है.

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