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रेल हादसा : जिंदगी का सफर : है ये कैसा सफर, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं…

क्षतिग्रस्त बोगी में दबे संजीत ने जीजा को व्हाट्सएप पर भेजी सेल्फी लिखा-50/50 चांस है, साढ़े पांच घंटे बाद जिंदा निकाला रविशंकर उपाध्याय पटना : साढ़े पांच घंटे से ज्यादा वक्त तक क्षतिग्रस्त बोगी अंदर शरीर का 70% हिस्सा दबा था, सांस ऊपर- नीचे हो रही थी और जान हलक में फंसी हुई थी, लेकिन […]

क्षतिग्रस्त बोगी में दबे संजीत ने जीजा को व्हाट्सएप पर भेजी सेल्फी लिखा-50/50 चांस है, साढ़े पांच घंटे बाद जिंदा निकाला

रविशंकर उपाध्याय

पटना : साढ़े पांच घंटे से ज्यादा वक्त तक क्षतिग्रस्त बोगी अंदर शरीर का 70% हिस्सा दबा था, सांस ऊपर- नीचे हो रही थी और जान हलक में फंसी हुई थी, लेकिन यह केवल हिम्मत और बुद्धिमता थी, जिसके कारण मौत पर जिंदगी की जीत हो गयी. मुजफ्फरपुर में सरकारी विभाग में इंजीनियर सत्यनारायण सिंह के छोटे बेटे संजीत भोपाल के कॉरपोरेट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.

शनिवार की शाम करीब 6:30 बजे इंदौर-पटना एक्सप्रेस में सवार हुए. जब ट्रेन वहां से चली, तो ज्यादा झटके दे रही थी. उन्होंने टीटीइ से शिकायत भी की, लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. रात तीन बजे के ठीक पहले नींद खुली और जैसे ही हादसा हुआ, उन्होंने शरीर के 30% हिस्से को झटका देकर पांच सेकेंड के अंदर दबने से बचा लिया. लेकिन, बायां हाथ दब गया और पेट पर पूरा दबाव लोहे के रॉड का था. उसके पास दो मोबाइल थे, पैंट वाला मोबाइल तो दब गया, लेकिन संयोग से एक मोबाइल ऊपर वाले पॉकेट में था. उन्होंने दाहिने हाथ का इस्तेमाल कर तुरंत व्हाट्सएप पर पटना में रह रहे अपने भाई संदीप को सूचना दी. संदीप ने तुरंत अपने बहनोई संजय कुमार सिंह को बताया. इसके बाद संजय सिंह के साथ व्हाट्सएप चैटिंग लगातार पांच घंटे तक हुई. उन्होंने संजीत को लगातार ढांढ़स बंधाया और इधर जान-पहचान के लोगों को मौके पर भेजा. तसवीर भी मांगी और उसके जरिये संदीप ने ट्वीटर पर रेलवे को सूचित किया, तो उसे मदद मिली और सुबह करीब साढ़े आठ बजे रेस्क्यू टीम ने गैस कटर का इस्तेमाल कर उसके साथ दो और लोगों को बाहर निकाला. अभी वे अभी कानपुर के हाॅस्पिटल में इलाजरत है, वहां उसकी हालत खतरे से बाहर हैं.

संजय (3:22 बजे): ट्रेन कहां दुर्घटनाग्रस्त हुई है?

संजीत (3:43 बजे): 19321- यह कह कर उसने लोकेशन देखने का इशारा किया

संजीत (3:43 बजे): व्हाट्सएप कॉल करता है, जो रीसिव नहीं हुआ

संजय (6:51 बजे): जितेंद्र पहुंच चुका है. उसका नंबर यह है-वह तुम्हारे लिए बेस्ट करेगा

संजीत (7:12 बजे): 50/50

संजीत (7:12 बजे): कोई ठीक नहीं, जल्दी, धंसता जा रहा, प्लीज

संजय (7:36 बजे): बस तुरंत हो रहा है, रेस्क्यू टीम वहीं है

संजीत (7:37 बजे): नहीं निकल पा रहे, उपर नीचे से फंसा हूं, सांस रुक रही है

संजय (7:38 बजे): नहीं, हिम्मत रखो, लंबी सांस लेते रहो, सभी आपके साथ हैं, बी ब्रेव

संजीत (7:55 बजे): पेट पूरा दब गया

संजय (7:58 बजे): बाहर निकलने की कोशिश करो

संजय (8:07 बजे): क्या तसवीर भेज सकते हो? तुम एक बहादुर आदमी हो

संजय (8:08 बजे): लोग बोगी में पहुंच गये हैं, सांस लेते रहो

संजीत (8:25 बजे): अपना दायां हाथ आगे कर वह दो सेल्फी भेजता है देखें पेज 03 भी

10 घंटे तक मौत से लड़्रती रही, दो बार मम्मी-पापा को फोन िकया िदल्ली से जब तक मामा पहंुचते, कोमल हार गयी जिदंगी की जंग

अनिकेत त्रिवेदी

पटना : हादसा कितना भी दर्दनाक हो, जख्म चाहे जितने भी गहरे हो, कुछ लोग फिर भी हिम्मत नहीं हारते. कुछ ऐसी ही हिम्मतवाली थी डेंटल की छात्रा कोमल सिंह. इंदौर-पटना ट्रेन हादसा रविवार तड़के 3:10 बजे हुआ था. कोमल ट्रेन के बी-3 के 30 नंबर बर्थ पर सफर कर रही थी. हादसे के बाद वह ट्रेन में फंस गयी. पहले छह घंटे तक निकालने कोई नहीं आया. फिर उसने दिन के नौ बजे दानापुर में अपनी मां धर्मशीला देवी को फोन किया. बोली- मां, ट्रेन पलट गयी है. मैं फंसी हूं, अभी तक कोई निकालने नहीं आया. मां जवाब ही देती कि फोन कट गया. फिर परिवारवाले दिल्ली और लखनऊ के रिश्तेदारों को फोन कर वहां पहुंचने को कहा. दिन में 11 बजे एक बार फिर पिता पुष्पजीत सिंह से कोमल की बात हुई.

बोली-पापा, मैं अब भी फंसी हूं. और रोने लगी, बोली- मेरा खून बह रहा है. बाद में उसे एक बजे ट्रेन से निकाला गया. सांस लगभग थमने को था. वहीं, कैंप में आॅक्सीजन दिया गया. और दिल्ली से जब तक इसके मामा पहुंच पाते, दोपहर लगभग डेढ़ बजे तक (10 घंटे) मौत से लड़ने के बाद कोमल जिदंगी की जंग हार गयी.

अगर तुरंत राहत मिलती तो बच जाती जान

कोमल बक्सर के डुमरांव के पुराना थाना की रहनेवाली है. मां धर्मशीला देवी दानापुर में शिक्षिका हैं, जबकि पिता पुष्पजीत सिंह सासाराम में सरकारी अधिकारी हैं. पुष्पजीत सिंह ने बताया कि कोमल की मौत तुरंत राहत नहीं मिलने के अभाव में हुई है. उसे 10 घंटे बाद बर्थ से निकाला जा सका. हम लोग इतने दूर थे कि उस समय तुरंत मौके पर पहुंच नहीं सके. कोमल भोपाल के मेडिकल कॉलेज में डेंटल की छात्रा थी. उसने दूसरे समेस्टर की परीक्षा दी थी. अभी रिजल्ट नहीं आया है, लेकिन वो अब तीसरे समेस्टर की क्लास कर रही थी.

कोमल का अंतिम संस्कार बक्सर के गंगा घाट पर किया गया. चाचा अजीत सिंह ने बताया कि कोमल घर से 10 दिन पहले ही गयी थी. घर में शादी थी. उसे आना तो नहीं था, लेकिन फिर उसने अचानक प्लान बना लिया. मम्मी को बोली थी, मैं आ रही हूं. मेरा टिकट कन्फर्म हो गया है.

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