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बिहार को रिवर्स गियर में ले जाना अब किसी के लिए संभव नहीं

खास बातचीत : 2005 में नीतीश कुमार के शासन के आने केबाद राज्य में काफी कुछ बदला है, राज्य की धाक कायम हुई है, इन सबसे अलग यह कि प्रदेश में राजनीति का आधार बदल गया है पटना : शहाबुद्दीन प्रकरण का राज्य में सत्ताधारी गंठबंधन और उसकी राजनीति पर असर पड़ेगा क्या? जवाब : […]

खास बातचीत : 2005 में नीतीश कुमार के शासन के आने केबाद राज्य में काफी कुछ बदला है, राज्य की धाक कायम हुई है, इन सबसे अलग यह कि प्रदेश में राजनीति का आधार बदल गया है
पटना : शहाबुद्दीन प्रकरण का राज्य में सत्ताधारी गंठबंधन और उसकी राजनीति पर असर पड़ेगा क्या?
जवाब : ऐसा मुझे नहीं लगता. ऐसा कहने का वास्तविक आधार है. बिहार उस जगह से काफी आगे निकल चुका है, जब ‘स्टेट’ को कमजोर माना जाता था. 2005 में नीतीश कुमार के शासन के आने के बाद राज्य में काफी कुछ बदला है. राज्य की धाक कायम हुई है. इन सबसे अलग यह कि राजनीति का आधार बदल गया है. यह आधार अब शिफ्ट होकर विकास के एजेंडे पर टिक गया है. इससे जुदा होना किसी भी राजनीति के लिए कठिन है.
शहाबुद्दीन ने कहा, नीतीश कुमार परिस्थितियों के नेता हैं?
जवाब : बुनियादी तौर पर इससे डेवलपमेंट के एजेंडे पर फर्क नहीं पड़नेवाला. दरअसल, हमें यह समझना होगा कि शहाबुद्दीन ने यह बात कही ही क्यों? शहाबुद्दीन का राजनीति में पदार्पण तब हुआ, तब राज्य की वैसी धाक नहीं थी, जैसी अभी है.
स्टेट जब कभी और कहीं भी कमजोर होगा, तो ऐसे लोग मजबूत होते हैं. उस दौर को आप देखेंगे, तो पायेंगे कि न जाने कितने ऐसे लोग राजनीति में आये. ऐसे बाहुबली चुनाव भी जीत गये. पर, जैसे-जैसे शासन मजबूत होगा, ऐसे बाहुबली हाशिये पर चले जायेंगे. शहाबुद्दीन या दूसरे बाहुबली राजनीतिज्ञों को लेकर हमें इस हकीकत को समझने की जरूरत है. शहाबुद्दीन जब जेल गये थे, तब बिहार में शासन की वह धमक नहीं थी. अब जब वह बाहर आये, तो कानून का राज है. बीते 10 साल में एक लाख से ज्यादा अपराधियों को सजा हो चुकी है. ऐसा कानून के राज में ही संभव है.
इन घटनाओं का विकास की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
जवाब : दरअसल, एक दशक के दौरान राजनीति बदली है. वह राजद की राजनीति हो या कांग्रेस की. नीतीश कुमार ने विकास और सुशासन का जो एजेंडा तय किया है, कमोबेश तमाम राजनीतिक पार्टियां उसके इर्द-गिर्द आ गयी हैं. राजद में भी इस बदलाव को महसूस कर सकते हैं.
पहली बात, तो यह कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद विकास के एजेंडे के साथ खड़े हैं. एक प्रकार से यह राजद का नया अवतरण है. आज तेजस्वी यादव पार्टी का चेहरा बन कर उभरे हैं. इस बदलाव में ही राजनीति के कायांतरण की कहानी छुपी हुई है. खुद तेजस्वी यादव ने एक इंटरव्यू में विकास के एजेंडे को अहम बताया है. इसका मतलब यह है कि राजनीति पुराने ढर्रे पर नहीं चलेगी. बिहार का बजट कभी 25 हजार करोड़ का हुआ करता था, आज वह डेढ़ लाख करोड़ तक पहुंच गया है. लोगों की आकांक्षाएं बढ़ी हैं. नीचे तक पैसा पहुंच रहा है. इससे आर्थिक-सामाजिक बदलाव हुए हैं.
इससे हिंदीपट्टी में जाति आधारित राजनीति कमजोर होगी?
जवाब : विकास का एजेंडा तेज होगा, तो जाति, धर्म या अपराध पर आधारित राजनीति कमजोर होगी. बिहार में राजद और उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के भीतर बदलाव के इन चिह्नों को देखने-परखने की जरूरत है. राजद में तेजस्वी यादव और यूपी में अखिलेश यादव पुरानी राजनीतिक ढांचे से निकल कर उसे सुशासन-विकास पर खड़ा करना चाहते हैं. यूपी में मुख्तार अंसारी को लेकर सपा के भीतर के अंतर्विरोध को हम इसी रूप में देखते हैं.
तो क्या बाहुबलियों के लिए राजनीति में आना मुश्किल होगा?
जवाब : 80 या 90 के दशक में उनका जो रुतबा था, उसकी तुलना में बेशक उनका असर कम हुआ है. हमें याद रखना चाहिए कि राज्य के कमजोर होने की स्थिति में ही अलग-अलग किस्म की जातीय सेनाओं का भी उदय हुआ. भोजपुर के इलाके में ज्वाला सिंह या रणवीर सेना अस्तित्व में आये, तो सीवान में शहाबुद्दीन सामने आये. ये उत्पीड़ित जनसमुदाय के खिलाफ हिंसक थे.
ये अमीरों के पक्ष में थे. सीवान का ही उदाहरण लीजिए. वहां भाकपा (माले) के साथ शहाबुद्दीन का टकराव हुआ. वहां हमलों में पिछड़े-अति पिछड़े या मुसलमानों में पसमांदा को निशाना बनाया गया. ये पिछड़े नक्षत्र मालाकार या मोहन बिंद की तरह जनता के रॉबिन हुड नहीं थे.
यह आरोप लगाया जा रहा है कि नीतीश कुमार सुशासन के मोरचे पर कमजोर हुए है?
जवाब : ऐसा नहीं है. अगर ऐसा ही होता, तो लालकेश्वर के खिलाफ कार्रवाई कैसे हुई? तब तो राजबल्लभ यादव के खिलाफ कदम नहीं उठता. रॉकी यादव जेल कैसे चला गया? यही नहीं, कई राजनीतिज्ञ जेल गये. कई अब भी जेल में हैं.
सत्ताधारी गंठबंधन के अंदर ऐसे सवालों पर अंतर्विरोध बढ़ेंगे?
जवाब : गंठबंधन में शामिल दलों या विपक्ष ने भी विकास का कोई वैकल्पिक मॉडल नहीं दिया है. वे नीतीश कुमार के मॉडल को ही फॉलो कर रहे हैं. विकास के अलावा सात निश्चय का मामला हो या शराबबंदी का, आप देखेंगे कि राजद-कांग्रेस ने इस पर अपनी पूरी सहमति दी है. शराबबंदी पर तो भाजपा भी सहमत रही. इसके लिए बनाये गये कानून पर भले उसकी असहमति रही हो. मेरा मानना है कि बिहार को अब रिवर्स गियर में ले जाना किसी के लिए संभव नहीं है.

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