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जगाने वाली घंटी है सांसद आदर्श ग्राम योजना की विफलता
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक छअपवादों को छोड़ दें तो लगभग पूरे देश में सांसद आदर्श ग्राम योजना प्राय: विफल हो गयी है. चुने गये ग्राम शायद ही कहीं आदर्श बन पा रहे हैं. याद रहे कि इस महत्वाकांक्षी योजना को इस देश में पहले से जारी विकास, निर्माण और कल्याण की अन्य योजनाओं से जोड़ […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
छअपवादों को छोड़ दें तो लगभग पूरे देश में सांसद आदर्श ग्राम योजना प्राय: विफल हो गयी है. चुने गये ग्राम शायद ही कहीं आदर्श बन पा रहे हैं. याद रहे कि इस महत्वाकांक्षी योजना को इस देश में पहले से जारी विकास, निर्माण और कल्याण की अन्य योजनाओं से जोड़ दिया गया है.
अलग से फंड का प्रावधान नहीं है. व्यवस्था यह की गयी थी कि जारी चालू योजनाओं के पैसों से ही चुने हुए गांवों को आदर्श गांव बना दिया जाएगा. पर,यह काम नहीं हो सका. क्योंकि पहले से जारी अधिकतर योजनाएं भी लगभग विफल ही हैं. क्योंकि उनमें से अधिकतर कागजों पर हैं. वे योजनाएं आम तौर पर अफसरों, इंजीनियरों ,ठेकेदारों,नेताओं तथा अन्य संबंधित लोगों की लूट के साधन हैं. अस्सी के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि हम दिल्ली से तो सौ पैसे भेजते हैं,पर उनमें से सिर्फ पंद्रह पैसे गांवों तक पहुंच पाते हैं. उनके अनुसार 85 पैसे बिचौलिये लूट लेते हैं.
आज भी स्थिति में कितना फर्क आया है? सांसद आदर्श ग्राम योजना की विफलता इस सवाल का जवाब है. भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाकर चुनाव जीतने वाली केंद्र की राजग सरकार ने यह उम्मीद की थी कि संबंधित क्षेत्रों के सांसद इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि कम से कम आदर्श ग्रामों में सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचारमुक्त हों. पर वे भी लाचार साबित हुए. क्योंकि भ्रष्टाचार के राक्षस पूरे देश में इतना अधिक ताकतवर हो चुके हैं कि चुनाव लड़ने वाले लोग उनसे पंगा नहीं लेना चाहते.
एक उपाय यह भी
सरकारें अरबों-अरब रुपये गांवों के विकास व वहां लोगों के कल्याण के नाम पर आवंटित करती हैं. इन पैसों में से कुछ वास्तव में खर्च भी होते हैं. पर अधिकांश राशि लूट ली जाती है.
सरकारों का डिलेवरी सिस्टम ध्वस्त है. सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने हाल ही में लिखा है कि ‘इस देश में कोई भी चीज रिश्वत के बिना आगे नहीं बढ़ती.’ कुछ योजनाओं की तो कोई खबर ही जनता को नहीं होती और उसके पैसों की ऊपर-ऊपर ही बंदरबांट हो जाती है. सन 2005 में प्रारंभ नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत केंद्र सरकार ने अब तक लगभग एक लाख करोड़ रुपये से भी अधिक राशि जारी की. राज्य सरकारों के भी अपने स्वास्थ्य बजट होते हैं.
इसके बावजूद हाल में एक हृदय विदारक खबर मिली. वाहन नहीं मिलने के कारण ओडिशा के दीना मांझी को अपनी पत्नी की लाश अपने कंधे पर रखकर दस किलोमीटर ढोनी पड़ी. यह तो एक नमूना था. ऐसे दृश्य देश के अधिकतर हिस्सों में विभिन्न स्वरूपों में देखे जा सकते हैं. सरकारी धन की ऐसी लूट के खिलाफ जनता को जागृत करने के लिए सरकारें चाहें तो वे एक काम कर सकती हैं.
यह धन आम लोगों से मिले टैक्स के पैसे ही तो आते हैं. कुछ प्रत्यक्ष कर और ज्यादा परोक्ष कर के जरिये सरकारें पैसे वसूलती हैं.
सरकार ग्राम पंचायत स्तर तक बड़े-बड़े बोर्ड लगवाए. उन पर यह लिखा रहे कि इस साल विकास और कल्याण के किन-किन मदों में सरकार उन इलाके में कितना पैसा खर्च करने वाली है. साथ ही गत साल किन मदों में कितना खर्च किया गया. प्रखंड स्तर पर उन सूचनाओं को छाप कर बंटवाया जाए. लोगबाग यह फर्क देख लेंगे कि कागज पर कितना खर्च हो रहा है और सरजमीन पर कितना लग रहा है. फिर तो जागरूक लोग हिसाब मांगेंगे. इसके साथ ही कुछ अच्छे सार्वजनिक कार्यकर्ता उभर सकते हैं. बाद में राजनीति में जाएंगे. इससे राजनीति भी बदलेगी. उपर्युक्त सूचनाएं जनता तक पहुंचाने के लिए सूचना पटों और बुकलेट पर जो खर्च आएगा, वह विकास व कल्याण के फंड में से निकाला जा सकता है.
नया ‘लाल’ बड़ा या पुराना नटवर लाल?
यदि आज नटवर लाल जीवित होता तो वह बिहार परीक्षा बोर्ड टॉपर घोटाले के आरोपितों के कारनामों को देखकर शर्मिंदा हो जाता. नटवर लाल का ‘नाम’ तो बहुत हुआ, पर उसके कारनामे अत्यंत सीमित प्रभाव वाले थे. वह कुछ पैसे वालों को ठगता था. पर टॉपर घोटाले के आरोपितों ने तो पीढ़ी को बर्बाद किया. बोर्ड से जुड़ी शिक्षा-परीक्षा से आम तौर पर गरीब लोगों की संतानें जुड़ी होती हैं. उनका भारी नुकसान हुआ. यह सब लालकेश्वर-बच्चा गिरोह के उदय से पहले से ही चल रहा था. पर पहले इस विनाश का स्वरूप इतना अधिक भयानक नहीं था.
इसे संभालने के लिए राज्य सरकार को बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. सन् 62 के केदारनाथ बनाम आज के देशद्रोही राजद्रोह और मानहानि को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला सही समय पर आया है. गत 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि सरकार की आलोचना करने पर किसी पर देशद्रोह या मानहानि का मामला नहीं चलाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार सरकार के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि संविधान पीठ के 1962 के उस फैसले में जो दिशा निर्देश दिये गये हैं,उनका आज भी पालन करना होगा. याद रहे कि वामपंथी नेता केदार नाथ सिंह ने 26 मई 1953 को बरौनी की एक सभा में तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की तीखी आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि ‘बरौनी में सीआइडी के कुत्ते घूम रहे हैं. इस सभा में भी कई सरकारी कुत्ते शामिल हैं. भारत की जनता ने अंग्रेजों को तो भगा दिया.
किंतु कांग्रेसी गुंडों को गद्दी पर बैठा दिया. यह जनता की गलती थी. ये जनता का खून चूस रहे हैं. इन गुंडों को भी हम सत्ता से हटा देंगे.’ इस तीखे भाषण के बाद केदारनाथ सिंह पर देशद्रोह का केस चला. लोअर कोर्ट ने उन्हें सजा दे दी. पटना हाइकोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी. मामला सुप्रीम कोर्ट गया. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश भुनेश्वर प्रसाद सिंहा के नेतृत्व वाले संविधान पीठ ने केदार नाथ सिंह को सजामुक्त करते हुए राजद्रोह के मामले में कार्रवाई करने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये. उसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में भी सही माना है.
यह संयोग ही था कि उस समय के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बिहार के अविभाजित शाहाबाद जिले के मूल निवासी थे. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले को लेकर कुछ हलकों में एक उलझन देखी जा रही है. क्या सबसे बड़ी अदालत के ताजा फैसले से जेएनयू के विवादित छात्र नेताओं को राहत मिल सकती है? याद रहे कि गत फरवरी में जेएनयू परिसर में कश्मीर के अलगाववादियों और आतंकवादियों के पक्ष में नारे लगाये गये थे. उसको लेकर कुछ छात्र नेताओं पर राष्ट्रद्रोह का केस हुआ है.
उसमें ये नारे भी लगे थे कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्ला इंशा अल्ला.’ ‘लड़ के लेंगे आजादी.’ इनके अलावा इस देश में कुछ अन्य लोग हथियारों के बल पर सत्ता परिवर्त्तन की कोशिश में लगे हुए हैं. वे भूमिगत हैं और उनके बौद्धिक समर्थक सतह के ऊपर अभियान चला रहे हैं. जाहिर है कि इन दो तरह के लोग केदार नाथ सिंह की तरह नहीं हैं. भले केदार नाथ सिंह की जुबां अत्यंत तीखी, असंसदीय और अशालीन थी. पर वे न तो हथियार के बल पर कांग्रेसी सरकार को उलटना चाहते थे और न ही भारत के टुकड़े करना चाहते थे.
और अंत में
पिछले ही महीने सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि छह सप्ताह के भीतर वह यह बताये कि उसने देश भर में पेट्रोल और डीजल में हो रही मिलावट को रोकने के लिए क्या उपाय किये हैं. इस बीच इस महीने यह खबर भी आ गई कि भुजिया में मार्बल के धूल की मिलावट हो रही है ताकि उसे भुरभुरा और कुरकुरा बनाया जा सके! कहां जा रहा है यह देश?
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