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शोध केंद्र के रूप में कब होगी पहचान
उपेक्षित : 22 जुलाई, 2009 को पूर्ण सूर्यग्रहण को लेकर चर्चा में आया था तारेगना मसौढ़ी : 22 जुलाई, 2009 को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर पूर्ण सूर्यग्रहण को लेकर चर्चा में आया तारेगना सात साल बीतने के बाद गुमनामी के अंधेरे में डूबा रह गया है. उस वक्त कौतूहल का विषय बना यह स्थान आज भी […]
उपेक्षित : 22 जुलाई, 2009 को पूर्ण सूर्यग्रहण को लेकर चर्चा में आया था तारेगना
मसौढ़ी : 22 जुलाई, 2009 को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर पूर्ण सूर्यग्रहण को लेकर चर्चा में आया तारेगना सात साल बीतने के बाद गुमनामी के अंधेरे में डूबा रह गया है.
उस वक्त कौतूहल का विषय बना यह स्थान आज भी उपेक्षित है. गौरतलब है कि अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा ने 2007 में घोषणा की थी कि 22 जुलाई, 2009 को सबसे लंबी अवधि तीन मिनट 48 सेकेंड को लगनेवाला पूर्ण सूर्यग्रहण को देखने के लिए तारेगना सबसे उपयुक्त जगह होगा़ ऐसा स्पेस वैज्ञानिक अमिताभ पांडेय व बिक्रांत नारंग समेत कई वैज्ञानिकों ने 2007 में ही कहा था. उस दौरान कई वैज्ञानिकों की टीम तारेगना का दौरा कर चुकी थी.
अंततः 22 जुलाई का वह दिन आया और उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एवं उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों के अलावा देश- दुनिया के दर्जन भर से अधिक वैज्ञानिकों समेत देश व राज्य ही नहीं विदेशी सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ा था.
तारेगना पर वैज्ञानिक व इतिहासकार कर रहे हैं शोध : मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद स्पेस वैज्ञानिक अमिताभ पांडेय, सचिन बांभा व अमित वर्मा के साथ -साथ काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान के निदेशक विजय कुमार चौधरी ,सहायक निदेशक संजीव कुमार सिन्हा, शोध अन्वेषक मानव रंजन मनमंस, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, विभाग के अमिताभ घोष ने इसमें काम शुरू कर दिया है.
इसके तहत उनके द्वारा तारेगना के साथ-साथ खगौल एवं बिहटा के तारेगना टाप का कई बार दौरा कर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सरकार को सौंप चुके हैं. इसकी जानकारी स्पेस वैज्ञानिक अमिताभ पांडेय ने देते हुए बताया कि इस पूरे मामले में स्थानीय निवासी सहित अवकाशप्राप्त शोध पदाधिकारी सिद्धेश्वर नाथ पांडेय ने साथ रहते हुए कई जानकारी उपलब्ध करवाई है.
गौरतलब है कि स्थानीय निवासी सिद्धेश्वर नाथ पांडेय ने लगातार 25 वर्षों से आर्यभट और तारेगना को लेकर अपने तमाम तरह के शोधों से पहले ही यह प्रमाणित कर चुके हैं कि आर्यभट की ना सिर्फ यहां वेधशाला थी, बल्कि तारेगना में उनके द्वारा स्थापित वेधशाला में लोग खगोलीय विज्ञान के रहस्यों की जानकारी हासिल करने आते थे. सीनियर सिटीजन समाचार पत्रिका के जनवरी 2008 के अंक में प्रकाशित लेख में प्रमाण के साथ दावा किया था कि तारेगना में आर्यभट की वेधशाला थी.
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