दाना-पानी का है अभाव, समझें पक्षियों का दर्दकंकड़बाग में रहनेवाले संजय कुमार पक्षियों को दाना-पानी दे कर करते हैं उनका संरक्षणचिड़ियों की मनमोहक चहचहाहट सुनते हुए सुबह उठने की आदत डालना चाहते हैं, तो आप को एक प्रण लेना होगा. प्रण, पक्षियों को दाना-पानी देने और उन्हें संरक्षित करने का. गर्मी शुरू हो गयी है. इसी के साथ पानी की समस्या भी सामने आने लगी है. आप तो इस समस्या से दो-चार हो लेंगे, लेकिन इस मौसम में पक्षियों को काफी परेशानी होती है. उन्हें न ही पानी, न ही दाना मिल रहा है. पानी और दाने का काफी अभाव है. इसी अभाव को शहर के कुछ लोग अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार दूर कर रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं, पटना दूरदर्शन में कार्यरत कंकड़बाग (लोहियानगर) के रहने वाले संजय कुमार. यह 1997 से पक्षियों को दाना-पानी दे रहे हैं. लाइफ रिपोर्टर. पटनागरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला…. जी हां, निदा फाजली की यह कविता बहुत कुछ कह जाती है और जब आपको भी यह समझ आ जायेगी तो आप भी चिड़ियों को दाना-पानी देने का काम करने लगेंगे. वैसे आजकल परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है? पर कंकड़बाग में रहने वाले संजय काफी समय से प्रकृति और इसमें रहने वाले जीवों के प्रति अपने दायित्वों को निभा रहे हैं. तभी तो इनके घर में रोज सुबह बड़ी संख्या में पक्षी दाना चुगने आते हैं और पूरे दिन दाना चुगने व पानी पीने के लिए इनकी आवाजाही लगी रहती है. वे बताते हैं, इसकी शुरुआत 1997 से ही हुई. यह परंपरा अचानक शुरू हो गयी और सुबह होते ही चिड़ियों को दाना खिलाने का काम मैंने शुरू किया. अब तो पक्षियों को दाना देने में मजा आने लगा है. वजह यह है कि जब मनुष्य को भूख-प्यास लगती है तो वह मांग लेते हैं, लेकिन पक्षी तो हमलोगों के ही भरोसे रहते हैं इसलिए मैं इनके लिए दाना-पानी गैलरी में रखने लगा. जिस दिन पानी खत्म हो जाता है या नहीं रहता है तो उस दिन पक्षी इंतजार में मंडराने लगते हैं और खूब शोर-शराबा करते हैं. जब पानी और दाना मिल जाता है, तो बैठकर दाना चुगते हैं. गौरैया के लिए बनाये तीन घर संजय कुमार कहते हैं कि मेरे घर में गौरैया काफी संख्या में आती हैं. चिड़ियों का झुंड हमेशा इकट्ठा हो जाता है. सुबह होते ही पूरी गैलरी चिड़ियों से भर जाती है. सबसे अधिक गौरैया आती हैं. इनके लिए फरवरी के पहले हफ्ते में तीन घर भी मैंने बनाये. वहीं दाना-पानी के लिए गौरैया, कबूतर, मैना, तोता, गिलहरी, पंडुक, बुलबुल, कौआ आते हैं. इनके लिए स्पेशल खुद्दी (चावल का छोटा टुकड़ा) लाया हूं. वहीं इसके साथ और भी खाने के लिए सामग्री देते हैं. उन्होंने कहा कि कभी-कभी अनेक प्रकार के पक्षी भी यहां आते हैं. वहीं गौरैया का पूरा झुंड पास के पेड़ पर रहता था, लेकिन जिस दिन इनके लिए प्लाइ का घर बनाया, उसी दिन यहां पर कई गाैरैया आकर रहने लगीं. शुरूआत में कौआें ने किया तंग उन्होंने बताया कि जब शुरू-शुरू गौरैयों के लिए प्लास्टिक के बर्तन में पानी रखने लगा, तब कौवे उसे गिरा देते थे. उसमें गंदा डाल देते थे. इसके बाद गौरैया वह पानी नहीं पीती थी. लेकिन, धीरे-धीरे कौवों ने तंग करना बंद कर दिया. अब वो भी पानी पी कर चले जाते हैं. पहले पानी रखनेवाले बर्तन को वे गिरा देते और फोड़ देते, लेकिन अंत में गमले में बर्तन को रख दिया. उसे चार-पांच दिनों पर साफ भी करता हूं. पक्षियों के लिए पानी है ही नहीं गर्मी शुरू हो गयी है और शहर में लोगों के लिए जगह-जगह पनशाला खुलता है, लेकिन पक्षियों के लिए कहीं भी दाना-पानी नहीं रखा जाता. पहले तो गली-गली नल व कच्ची सड़क थी, पक्षियों को वहां से पानी मिल जाता था. लेकिन, अब तो पक्की सड़क बन गयी और गली-मुहल्लों के नाले समाप्त हो गये, इस कारण गरमी में पक्षी भूख व प्यास से तड़पने लगते हैं. इसके साथ शहर के पेड़ भी खत्म होने लगे. इसी संकट को महसूस करते हुए पक्षियों की संख्या काफी कम हो गयी. पिछले दो साल में पक्षियों की संख्या में काफी कमी आयी है. अगस्त माह में गौरैया का बहुत बड़ा झुंड यहां पर दिखा था. लेकिन अब 15-20 गौरैयों के झुंड ही यहां आते हैं. चिड़ियों को दें दाना-पानीउन्होंने कहा कि लोगों को इसके लिए जागरूक होना होगा और पक्षियों को दाना-पानी अपने गैलरी व छत पर देना होगा. छत पर छोटे-छोटे पेड़ भी लगायें, जिससे चिड़ियां वहां आयें. उनके लिए घर भी तैयार करें. पर्यावरण संतुलन के लिए पक्षियों को बचाना बहुत जरूरी है. हाल ही में संजय कुमार को गौरैया दिवस पर गौरैया संरक्षण के लिए अवार्ड दिया गया. जब घर आया तो सभी बहुत जोर-जोर से आवाज देने लगे. उन्होंने कहा कि यह आवाज सुन कर काफी खुशी हुई और मैंने कहा कि यह तुम लोगों का ही अवार्ड है. चिड़ियों के बसेरे ही हो गये खत्मचिड़िया या खास कर गाैरैया और मैना आंगन में रहने वाले पक्षी हैं. अांगन समाप्त होने से इन्हें भी परेशानी हुई है. इसके साथ पेड़-पौधों कट गये. शहर में पक्की सड़क बन गयी. मुहल्ले में चलने वाले नाले बंद हो गये. घर की छतों पर अनाज सुखाने की परंपरा भी समाप्त हो गयी. इसके साथ अन्य कारणों से पक्षियों को दाना-पानी मिलने में परेशानी होने लगी.
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दाना-पानी का है अभाव, समझें पक्षियों का दर्द
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